राष्ट्रभक्ति का वसीयतनामा
देश के स्वाधीनता संग्राम में वीर सावरकर का विशिष्ट योगदान रहा है। यही वजह है कि उन्हें आज भी आदर से याद किया जाता है। वे शांतिपूर्ण तरीके से देश को आज़ाद करने के प्रयासों में लगे रहे। उनके जीवन का लक्ष्य हिंसा-अहिंसा के तर्क से परे देश की आज़ादी थी। इसके बावजूद उन्हें अंग्रेजों ने तरह-तरह से यातनाएं दीं और कालेपानी की सजा भी दी। आजाद भारत में देश की विषम परिस्थितियों से वे खासे परेशान रहते थे। देश विभाजन की टीस हमेशा उन्हें कचोटती रही। कालांतर में चीन के हमले व पाक युद्ध ने उन्हें खासा परेशान किया। फिर उन्हें अहसास हो गया कि अब उनका स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है। तब उन्होंने दवा लेनी तक बंद कर दी। उन्होंने अपने डॉक्टर से कह दिया कि उन्हें शांति से विदा लेने दी जाए। हालांकि, देश के हालात से उपजा कष्ट उन्हें जीवनपर्यंत परेशान करता रहा। जीवन के अंतिम समय में जब उनकी वसीयत पूरी होने को थी, उन्होंने लिखवाया कि मैं देशवासियों से आग्रह करूंगा कि वे हड़ताल का सहारा न लें, जिससे देश के विकास की गति थम जाती है। उन्होंने विश्वास जताया कि देशवासी उनकी बात का ध्यान रखकर राष्ट्र प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देंगे।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा