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रमजान के महीने के अंत के बाद आज ईद मनाई जा रही है। इस बार की रमजान पर राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में खुशगवार माहौल बना रहा। इससे सारे देश और दुनिया में एक संदेश तो साफ तौर पर चला गया कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) अब मुसलमानों के लिए कोई मुद्दा नहीं रहा। याद करें कि इसी शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ महिलाओं ने लंबा धरना दिया था। धरने देने वाली महिलाएं कह रही थीं कि सीएए के बहाने मुसलमानों को प्रताड़ित किया जाएगा। धरना कोविड के फैलने के कारण सरकार ने सख्ती से बंद करवा दिया था। उस समय धमकी दी जा रही थी कि सीएए के खिलाफ धरना फिर शुरू होगा। पर यह नहीं हुआ। गृह मंत्री अमित मोदी बार-बार मुसलमानों को भरोसा देते रहे कि सीएए से उन्हें घबराने की कोई वजह नहीं है। इसका सकारात्मक असर हुआ। जब केन्द्र सरकार ने सीएए की पिछली 11 मार्च को अधिसूचना जारी की तो एक बार लगा कि इसका विरोध होगा। पर कहीं कुछ नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले सीएए की अधिसूचना के बाद उम्मीद थी कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सीएए को लागू करने के मसले को लोकसभा चुनाव में उठाएंगे। लेकिन हैरानी की बात है कि किसी भी दल ने इसे मुद्दा नहीं बनाया।
दरअसल लोकसभा चुनावों का एजेंडा इस बार कुछ बदला- बदला सा है। आम तौर पर कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी पार्टियां मोदी को कट्टर हिन्दुत्ववादी बताकर सेकुलर एजेंडे के साथ चुनाव मैदान में उतरती हैं, पर इस बार मुद्दा ईडी, सीबीआई और तानाशाही को बनाया जा रहा है। कांग्रेस भी उन मुद्दों को चुपचाप किनारे रख कर आगे बढ़ रही है, जिन पर भाजपा को घेरती रही है। सीएए, एनआरसी और धारा 370 जैसे मुद्दे कांग्रेस के घोषणापत्र से ही गायब हैं। आम आदमी पार्टी मुख्यमंत्री केजरीवाल जेल की सलाखों के पीछे वाली तस्वीर को अपनी चुनावी कैंपेन में प्रमुखता से पेश कर रही है।