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जाति बताइए बार-बार... बेड़ा होगा पार

06:51 AM Dec 22, 2023 IST

प्रदीप मिश्र

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अनुभव बाबू और उम्मीद प्रसाद कुछ महीने से जाति को लेकर लगातार ट्रिक आजमा रहे हैं। तीन राज्यों में चुनाव प्रचार के दौरान एक ने कहा कि जाति छल है तो दूसरे ने बिना देर किए जवाब दिया कि ये बल है। बात चलते-चलते दल है... दलदल है... तक पहुंच गई। परिणाम आने पर जातियों का संतुलन साधा गया। लगा कि अगर यह बाधा दूर नहीं करते तो समझो आधा गया। अचानक दोनों महानुभावों को दिव्य-ज्ञान यानी इसका हल मिल गया। उन्हें लगा कि बात दूर तलक जानी चाहिए। सच है कि जाति इतिहास है। जाति अहसास है। राजनीतिक दलों द्वारा खुल्लमखुल्ला कहा जाता रहा है ‘जितनी जिसकी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ इसलिए मत कहिए इसे बीमारी।
इसलिए दोनों इस पुनीत जिम्मेदारी को भयंकर तरीके से पूरा करने के लिए संकल्पबद्ध हो गए हैं। एक ने जब समूह बनाकर संकेत दिए कि निलंबन उनका स्वावलंबन है। निष्कासन के बाद बाहर भी उनका आसन है। जो इसमें आते हैं, उनका कद बढ़ जाता है। ये रिकॉर्ड का हिस्सा है, जनप्रतिनिधि का बहीखाता है। हम जोकरी कर हाट लगाएंगे। आपका हट बताकर वाट लगाएंगे। बिना खर्चा ज्यादा चर्चा होने पर दूसरे को असहनीय पीड़ा हुई। शर्मशार होकर उसने दहला मारा। कहा- मुंह खोलो। कुछ अपनी जाति पर बोलो। इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा। लगने लगा कि दिसंबर की सर्दी में विरोध करते हुए पुतले जलाना स्वास्थ्य के लिए अभ्यास है। अपनी जाति बताने और उसे एकजुट करने का उत्तम प्रयास है। सबको बताना है कि यह भी मानसिक विकास है। अन्यथा तो हमारा और आपका जीवन व्यर्थ और बकवास है। हम मिलकर बताएंगे कि जाति संस्कार है। जाति पुरस्कार है। जाति अकड़ है। जाति पकड़ है। जो जाति एक है, वही नेक है। जिसके अलग-अलग विचार हैं, वह ‘फेक’ है।
कबीरदास ने जब कहा था ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान, मोल करो तरवार का पड़ा रहन दो म्यान।’ तब निर्वाचन नहीं होता था। विचारों का वाचन होता था। अब सर्वज्ञात पक्ष है कि सज्जन प्राणी स्वयं ही राजनीति में अपना प्रवेश निषेध मान लेते हैं। यही नहीं, चुनाव सज्जन छोड़िए, जन भी नहीं लड़ता है। इसलिए अब चहुंओर चर्चा में सिर्फ अनुभव और उम्मीद हैं। जातियां इनकी मुरीद और आयोजनों की चश्मदीद हैं। संदेश दिया जा रहा है कि अब तक के यही हैं प्रमुख समाचार और विचार। 2024 तक घर-घर खूब करो इनका प्रचार। अपना सर्वस्व न्योछावर करना है। बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से खाली हुई जगह को जाति से ही भरना है।
जाति के लोग साथ न दें तो वियोग बनता है। यह सब कुछ अच्छे से जानती प्यारी जनता है। हमने मिलकर जाति की ज्योति जब-जब जलाई है। पूरे देश में इसकी रंग-बिरंगी रोशनी समाई है। इस बार भी यही प्रयास करेंगे। अगले पांच साल देश का विकास करेंगे।
दरअसल, दोनों का पता है कि जिस दिन देश में सब भारतीयों की जाति एक हो जाएगी। राजनीति नए रूप में नजर आएगी।

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