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सुकून के आंसू

08:38 AM Apr 07, 2024 IST
सुकून के आंसू
चित्रांकन : संदीप जोशी
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प्रवासी पंजाबी कहानी
इंदिरा उस लड़की के मूल देश को लेकर कयास लगा रही थी कि उसको फोन पर लड़की के सिसकने की आवाज़ सुनाई दी। उसने लड़की की ओर देखा, वह बातें भी कर रही थी, रो भी रही थी और नैपकिन से आंसू भी पोंछ रही थी। इंदिरा सोच में पड़ गई, ‘वह क्यों रो रही थी और किसके साथ बातें कर रही थी। उसके साथ रूखा-सा बोलने वाली यह लड़की इतनी भावुक क्यों हो रही थी?’

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देविंदर कौर

अभी उसने फोन खोला ही था कि व्हाट्सएप पर ज़ारा का मैसेज था -‘हैप्पी मदर्ज़ डे, टू डियर मॉम इंदिरा...’ मैसेज पढ़कर उसकी सोच अतीत के पंखों पर उड़ान भरने लगी।
भारत से इंग्लैंड के दौरे पर आई इंदिरा अपनी कालेज की सहेली और उसके पति के साथ विक्टोरिया बस स्टेशन से विक्टोरिया कोच स्टेशन की ओर तेज-तेज कदमों से भाग रही थी। हालांकि, अर्थराइटिस की मरीज होने के कारण ऐसा करना उसके लिए काफी तकलीफ़देह हो रहा था। दरअसल कोच का समय हो जाने के कारण उन्हें कोच के छूट जाने का डर सता रहा था।
दो दिन पहले ही वे सब मिडलैंड से लंदन घूमने के लिए आए थे और सहेली के पति ने लंदन में मैरीआट होटल बुक करवा रखा था। दो दिन में उन्होंने लंदन की दर्शनीय इमारतें और म्यूजियम वगैरह देख लिए थे, जिसके कारण वे काफी थक भी गए थे। होटल से कोच स्टेशन, मिडलैंड वापस जाने के लिए उन्होंने पहले लोकल बस ली थी और बस स्टेशन उतरने के बाद ही उन्हें पता चला कि कोच स्टेशन पहुंचने के लिए काफी चलना पड़ेगा। बड़ी मुश्किल से वे कोच स्टेशन पहुंचे। कोच में काफी यात्री चढ़ चुके थे। उनसे पहले बस दो या तीन यात्री ही रहते थे। उन्होंने ईश्वर का शुक्रिया किया और कोच के पास पहुंच गए। कोच भरी होने के कारण उनको पीछे जाना पड़ा, जहां कुछ सीटें खाली दिखाई दीं। तीनों को अलग-अलग सीटों पर बैठना पड़ा। इंदिरा जिस सीट पर जाकर बैठने लगी, उसके सामने वाली सीट भी खाली थी, पर वहां भारी-भरकम शरीर वाली सवारी बैठी थी। उसने इधर ही बैठने के लिए सुनहरी बालों वाली लड़की से सीट पर रखा बैग उठा लेने को कहा ताकि वह बैठ सके।
लड़की ने दूसरी खाली सीट की ओर इशारा किया, पर इंदिरा ने जिद की कि वह इसी सीट पर बैठना चाहती है। उस लड़की ने बड़े अनमने मन से अपना बैग उठाया और इंदिरा के लिए सीट खाली कर दी। इंदिरा ने ‘थैंक यू’ कहा और सीट पर बैठ गई। कोच चलने ही वाली थी कि एक अन्य यात्री हांफता हुआ कोच के अंदर घुसा और उसके सामने वाली सीट पर आकर बैठ गया।
कोच चल पड़ी। इंदिरा का ध्यान साथ बैठी सुनहरे बालों वाली लड़की की ओर चला गया। वह फोन पर धीमे स्वर में किसी से बातें कर रही थी। उसके नयन-नक्श अंग्रेज लड़कियों जैसे नहीं थे। रंग गोरा था और गुलाबी रंगत लिए था, लेकिन नक्श से वह मिडल ईस्ट की लड़की लग रही थी। कपड़ों से वह पश्चिम की लग रही थी, लेकिन चेहरे-मोहरे और बालों से किसी अन्य देश से आई लड़की लगती थी।
इंदिरा को फोन पर बातें करती लड़की की आवाज़ सुनाई दी। लड़की ‘टी’ को ‘ती’ और ‘डी’ को ‘दी’ कह रही थी। इंदिरा का अंदाज़ा पक्का हो गया कि वह इंग्लैंड की लड़की नहीं थी।
इंदिरा उस लड़की के मूल देश को लेकर कयास लगा रही थी कि उसको फोन पर लड़की के सिसकने की आवाज़ सुनाई दी। उसने लड़की की ओर देखा, वह बातें भी कर रही थी, रो भी रही थी और नैपकिन से आंसू भी पोंछ रही थी। इंदिरा सोच में पड़ गई, ‘वह क्यों रो रही थी और किसके साथ बातें कर रही थी। उसके साथ रूखा-सा बोलने वाली यह लड़की इतनी भावुक क्यों हो रही थी?’ उसका दिल किया, उससे पूछे। फिर सोचा, नहीं, कहीं गुस्सा ही न मान जाए। यह इंग्लैंड था और किसी के निजी मामलें में दख़ल देना उसको ठीक नहीं लगा। पर यह लड़की तो इंग्लैंड की नहीं लगती। कहां से आई थी, क्यों रो रही थी, कहां जा रही थी, कितने ही सवाल उसके ज़हन में तैरने लगे। लड़की का रोना उसको तंग कर रहा था।
हिम्मत कर उसने लड़की को एक सेवन-अप और एक क्रिप्स का पैकेट पकड़ाना चाहा। लड़की ने तुरंत पकड़ कर थैंक्स कहा और अपनी झोली में रख लिया। उसने थोड़ी राहत महसूस की।
‘वाय आर यू क्राइंग? तुम क्यों रो रही हो? क्या बात है?’ इंदिरा ने हिम्मत करके लड़की से पूछ ही लिया। ‘नथिंग’ कहकर लड़की ने फोन बंद कर दिया। इंदिरा सोचने लगी, लड़की भला किसे फोन कर रही होगी? शायद अपने ब्वॉय-फ्रैंड को। हो सकता है कि वह इसको धोखा दे रहा हो। पर रोने की वजह? सवाल इंदिरा के मन में हलचल मचाए हुए थे। उसने फिर पूछा, ‘क्या बात है, तुम रो क्यों रही हो?’
‘कुछ नहीं,’ लड़की ने कहा और अपना मुंह साफ करने लगी। इंदिरा अंदर ही अंदर बेचैन हो रही थी। लड़की का रोना उसको तकलीफ़ दे रहा था। आखि़र, हिम्मत कर उसने लड़की को अपने कलावे में लेकर प्यार से पूछा, ‘क्या बात है? किसको फोन कर रही थी और क्यों रो रही थी?’ वह लड़की थोड़ा सहज हुई, ‘मेरी मां का फोन था। वह मुझे डांट रही थी कि मैं अपने पति को ईरान में छोड़कर इंग्लैंड क्यों आ गई?’ इंदिरा चौकन्नी हो गई। उसने फिर पूछा, ‘क्या बात हुई कि तेरा पति ईरान में है और तू यहां?’ वह बोली, ‘हां, मैं अपने पति को छोड़कर बड़ी मुश्किल से इस देश में पहुंची हूं और शरण लेने के लिए अर्जी दी हुई है।’ इंदिरा को उसकी बातों में दिलचस्पी होने लगी। उसने फिर पूछा, ‘ऐसी क्या बात हुई कि तुम अपने पति को छोड़कर यहां आ गई हो? वह क्यों नहीं आया?’
‘मैं बड़ी मुश्किल से उसको छोड़कर आई हूं। हमारी शादी को अभी 6 महीने ही हुए थे कि मुझे पता चला...’ लड़की फिर रोने लगी।
‘क्या पता चला?’
‘यही कि मेरा पति ईरान के किसी आतंकवादी ग्रुप के साथ जुड़ा हुआ है और कई-कई दिन घर से बाहर रहता है।’
‘पहले नहीं पता था?’
‘नहीं, मुझे पहले नहीं पता था। मैं ईरान में पत्रकार थी। वह मुझे एक बार किसी क्लब में मिला था। हमारी वहां बातचीत हुई और धीरे-धीरे हमारी दोस्ती बढ़ती गई और फिर हमने विवाह कर लिया। जब वह घर से बाहर रहने लगा तो मुझे शक हुआ। वह आतंकवादियों के ग्रुप के साथ काम करता था, यह कन्फर्म हो गया।’
‘मां के साथ क्या बात हो रही थी और तू रो क्यों रही थी?’
वह बताने लगी, ‘मेरी मां मुझे डांट रही थी कि मैं अपने पति को छोड़कर इंग्लैंड क्यों चली आई। मुझे हैरान थी कि मां होकर वह मुझे ऐसा क्यों कह रही थी? क्या कोई मां अपनी बेटी को मुसीबत में फंसा देखकर आराम से रह सकती है? मैंने मां से पूछा था तो उसका जवाब था, वह तेरा पति है, तुझे उसको यूं छोड़कर नहीं आना चाहिए था।’
इंदिरा को लगा, शायद यह लड़की झूठ बोल रही है, या शायद सच बोल रही है, पर जो भी हो, उसको लड़की पर दया आने लगी। उसने फिर पूछा, ‘यहां तेरा कोई दोस्त है?’
‘हां, एक दोस्त बना था, पर ज्यादा देर नहीं चल सका, क्योंकि मेरे पास रहने के लिए कोई पक्का ठिकाना नहीं था और वह मेरे साथ थोड़ी मौज-मस्ती करना चाहता था। कुछ दिन मेरे साथ रहकर मुझे छोड़कर चला गया।’ वह फिर सिसकने लगी, ‘इस दुनिया में कोई किसी का हमदर्द नहीं, मेरी मां भी मेरी नहीं। कोई तुम्हें प्यार नहीं करता, सब तुम्हें इस्तेमाल करना चाहते हैं। मैं इस दुनिया से नफ़रत करती हूं। यह दुनिया बड़ी ज़ालिम है। कहीं भी चैन नहीं, अपने देश में भी नहीं, यहां इंग्लैंड में भी नहीं। मैं बस भटक रही हूं।’
इंदिरा परेशान होने लगी। उसका मन किया, वह लड़की को अपने घर ले जाए, जब तक उसको इस देश में पनाह नहीं मिलती, वह उसे अपने घर में रख ले। पता नहीं क्यों, लड़कियों को दुखी देख इंदिरा दुखी और परेशान हो जाती थी। वह ईरानी लड़की की बातें सुनकर भी परेशान हो गई थी। उसने लड़की का ध्यान दूसरी तरफ ले जाना चाहा। उसने पूछा, ‘तू किस क्षेत्र में पत्रकारिता करती थी?’
‘हर क्षेत्र में।’ लड़की ने कहा, ‘स्त्रियों की समस्याओं में मेरी विशेष रुचि होती, क्योंकि ईरान में औरतों को मर्द की गुलामी सहनी पड़ती है। उनको अपने पति की हर बात माननी पड़ती है, गलत हो या ठीक।’
इंदिरा ने उससे पूछा, ‘फिर तूने वहीं रहकर वहां की औरतों के लिए काम क्यों नहीं किया?’
‘करती थी’, लड़की बताने लगी, ‘उनकी समस्याओं के बारे में अख़बारों, पत्रिकाओं में भी लिखती थी, पर मैंने शादी करके गलती जो की थी, उसके लिए मुझे वह देश छोड़ना पड़ा। मुझे अपने पति से डर लगता था। वह किसी समय भी मुझे मार सकता था। मैं मरना नहीं चाहती थी। मैं पत्रकारिता करना चाहती थी, अभी भी करना चाहती हूं, लेकिन मैं अभी परेशान हूं, मैं अभी खुद ठिकाना तलाश रही हूं। जब मुझे पनाह मिल जाएगी, मैं फिर पत्रकारिता का काम शुरू करूंगी। इस वक्त मैं अपसेट हूं, कोई भी मेरा मददगार नहीं, मैं दुनिया से नफ़रत करने लगी हूं।’
इंदिरा ने बात ही बदल दी, ‘अच्छा, बता तेरा नाम क्या है?’
‘ज़ारा।’
‘बहुत खूबसूरत नाम है।’
लड़की को जैसे थोड़ा सुकून मिला था, वह थोड़ा मुस्कराई। इंदिरा उसके साथ छोटी-छोटी बातें करने लगी, कई तरह की। लड़की भी उसके साथ घुलमिल गई लगती थी।
‘कहां जा रही हो?’
‘बरमिंघम, अपनी सहेली के पास। पर मैं उसके पास तीन रातों से अधिक नहीं रह सकती।’
‘क्यों?’
‘क्योंकि वह भी इधर असाइलम सीकर है। जो फ्लैट उसको मिला है, वह बहुत छोटा है और वह मुझे कानूनी तौर पर तीन दिन से ज्यादा नहीं रख सकती।’
‘कोई बात नहीं, तू मेरे पास आ जाना।’
‘थैंक यू,’ लड़की ने कहा और इंदिरा से लिपट गई। इंदिरा ने पूछा, ‘अच्छा, बता तुझे खाने में क्या पसंद है?’
‘मुझे रोस्ट चिकन बहुत पसंद है।’
‘ठीक है, जब तू मेरे पास आएगी तो मैं तेरे लिए रोस्ट चिकन बनाऊंगी।’ लड़की इंदिरा के निकट हो गई। उसने इंदिरा का फोन नंबर पूछा और अपने फोन में सेव कर लिया। इंदिरा ने भी ऐसा ही किया। अब दोनों ही व्हाट्सएप से जुड़ गईं।
बरमिंघम शहर आ गया। सवारियां अपनी सीटों पर से उठने लगीं। ज़ारा भी उठी, उसने एक बार फिर इंदिरा को हग किया, बोली, ‘यू आर लाइक माय मॉम। आज मैंने यह विचार फिलहाल मुल्तवी कर दिया है कि दुनिया में कोई किसी का हमदर्द नहीं।’ और वह अपना बैग लेकर कोच से उतर गई। ‘मां’ शब्द सुनते ही इंदिरा की आंखें भर आईं, पर इस बार उसकी आंखों में खुशी और सुकून के आंसू थे।

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अनुवाद : सुभाष नीरव

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