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देश व समाज के शिल्पकार हैं शिक्षक

08:16 AM Sep 04, 2021 IST

बंडारू दत्तात्रेय

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जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था, ‘शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो एक व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। उनके इसी उल्लेख को ध्यान में रखकर शिक्षक को कर्तव्य, निष्ठा से देश और समाज के नर्व निर्माण में अपना योगदान देना होगा। यही भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्ण को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और शिक्षक का आदरस्वरूप सम्मान होगा, जिनके जन्मदिन (5 सितंबर) को शिक्षक दिवस के रूप में पूरा राष्ट्र मनाता है। डॉ राधाकृष्णन ने भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका की परिकल्पना की थी। वह स्वयं भी आशा और आदर्श जीवन की हर खोज में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए हमेशा उत्साही रहे हैं। उन्होंने 40 वर्षों तक अध्यापन का कार्य कर देश समाज व युवा पीढ़ी को दिशा दी और अध्यापक से देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद तक पहुंचे।

असल में अध्यापक समाज के ऐसे शिल्पकार हैं जो राष्ट्र के भविष्य के कर्णधार बच्चों को तराशने का कार्य करते हैं। शिक्षक एक मजबूत राष्ट्र के लिए फव्वारे के रूप में काम करता है, जो अपना ज्ञान चारों ओर फैलाता है। एक शिक्षक ही सफल राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। आदर्श शिक्षक पथ प्रदर्शक के साथ-साथ वह पवित्र आत्मा हैं जो युवा पीढ़ी के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पण के साथ काम करते हैं।

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विचारशील बनाना भी जिम्मेदारी

शिक्षक होने का अर्थ केवल कक्षा में विद्यार्थियों को सम्बोधित करना या किताबी ज्ञान देना ही नहीं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा बच्चों को विचारशील व कल्पनाशील बनाना है तथा सामाजिक चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार करना है। अध्यापन कार्य एक सतत प्रक्रिया है, जो पारे की तरह कभी किसी स्थान विशेष पर नहीं टिकती बल्कि सदैव आगे प्रवाहित होती रहती है। अध्यापक हमेशा ज्ञान गंगा को प्रवाहित करता रहता है। यह ज्ञान गंगा अविरल प्रवाहित रहे, इसके लिए अध्यापक को हमेशा नए अनुसंधान व विश्व में शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे सभी बदलाव तथा नयी चीजें सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए ताकि वे सर्वोत्तम मानव संसाधनों का उपयोग कर जो युवाओं का रोजगार योग्य बनाने व विचारशील चरित्रवान युवाओं को तैयार कर सके। शिक्षक में छात्रों में जीवन के उतार-चढ़ाव को भांपने का पर्याप्त लचीलापन भी होना चाहिए। हमें हैरानगी तब होती है जब पता चलता है कि सर्वश्रेष्ठ छात्रों ने शीर्ष संस्थानों से अध्ययन कर प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल स्थान प्राप्त किया है। हम सामान्य समाज के युवाओं व विद्यार्थियों को पिछड़ा हुआ देखते है। हमें ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को भी गुणवत्ता की शिक्षा उपलब्ध करवानी होगी। शिक्षण का अर्थ केवल बच्चों के दिमाग को प्रज्वलित करना ही नहीं बल्कि उनके दिलों पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ना भी है। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में शिक्षा की नयी तकनीकें आने से भी गूगल कभी भी गुरु की जगह नहीं ले सकता। आज हम संचार के नए युग में जी रहे हैं। कोविड -19 महामारी ने हमें ऑनलाइन शिक्षण के महत्व का अहसास कराया है। शिक्षकों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), ब्लॉक-चेन टेक्नोलॉजी, डिजिटल क्लासरूम, जैसे नए उपकरणों और प्रौद्योगिकी की बारीकियों के उपयोग में पारंगत होकर विद्यार्थियों के सामने आना चाहिए। उन्हें कंप्यूटर क्रांति का अधिक से अधिक उपयोग कर विद्यार्थियों से जुड़ना होगा। शिक्षकों को एक ‘डिजिटल ज्ञान बैंक‘ बनाकर युवाओं को शिक्षा जगत में हो रहे बदलावों से रू-ब-रू करवाना होगा।

उच्च शिक्षा का बढ़ता दायरा और चुनौती

चिकित्सा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, मानविकी और सामाजिक विज्ञान से, हमने शिक्षा के लगभग हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। आज हमारे पास आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों के साथ-साथ विश्व स्तरीय शिक्षण संस्थान हैं। विश्वभर में हमारे यहां सबसे अधिक उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित हैं। उच्च शिक्षा रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 2018-19 की तुलना में 2019-20 में 3.85 करोड़ है, जिसमें 11.36 लाख की वृद्धि दर्ज की गई है। यूडीआईएसई प्लस 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार, स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सकल नामांकन अनुपात में 2018-19 की तुलना में अत्याधिक सुधार हुआ है। ये आंकड़े हमारे युवाओं को शिक्षा के साथ सशक्त बनाने व हमारे सामूहिक समर्पण सरकार की जवाबदेही और दृढ़ संकल्प को व्यक्त करते हैं जो हमें आत्मनिर्भर बनाने में उत्साहित करते हैं।

आज यह एक चुनौती तथा एक अवसर भी है कि शिक्षकों को स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालयों में और अधिक सक्रिय भूमिका निभानी है। शिक्षा ही बेरोजगारी, गरीबी, असमानता और यहां तक कि भेदभाव सहित कई चुनौतियों का एकमात्र समाधान है। समाज के वंचित वर्गों के बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। हमें उन्हें निरंतर शिक्षा से जोड़कर उनके ड्रॉपआउट को भी रोकना होगा। समानता, न्याय, बंधुत्व और स्वतंत्रता व नैतिक मूल्यों पर आधारित नव भारत के निर्माण के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में मील का पत्थर साबित होगी। हमारे शिक्षक इस महान कायापलट के वाहक होंगे। हमें शिक्षा में रोबोटिक नहीं बल्कि युवाओं को गतिशील और बहुप्रतिभाशाली कौशल से लैस करना है।

ग्रेड और अंक से भी आगे है जहां…

शिक्षक वर्ग से आग्रह व अपील है कि वे दृढ़तापूर्वक देश व समाज कल्याण के लक्ष्य को ध्यान में रखकर युवाओं का मार्ग दर्शन करें। शिक्षक को बच्चों की देखभाल के लिए एक मां की तरह कार्य करने की आवश्यकता है। एक सामान्य शिक्षक सिर्फ व्याख्यान के माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाता है। अच्छे शिक्षक विस्तार से पढ़ाते हैं, जबकि श्रेष्ठ शिक्षक छात्रों को प्रभावी तरीके से सिखाने का कार्य करते हैं। मुझे अपने भौतिकी के अध्यापक श्री रामैया गारू और तेलुगू शिक्षक स्वर्गीय श्री शेषचार्य आज भी याद हैं। वे आदर्श शिक्षक थे, जिनके शब्दों ने छात्रों के दिल और दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ी है। छात्रों और शिक्षकों के बीच एक प्रभावी व उचित संचार ही सर्वोपरि है। शिक्षकों को यह समझने की जरूरत है कि केवल ग्रेड और अंक मायने नहीं रखते। अध्यापन एक महान पेशा है। पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति पद के बाद भी अध्यापन जारी रखा। शिक्षण कोई नौकरी नहीं बल्कि एक ऐसा धर्म है जिससे समाज व राष्ट्र का निर्माण होता है। विश्वास है कि शिक्षक के त्याग, तपस्या और बलिदान के साथ-साथ सरकारों का समर्थन देश को एक नए युग में ले जाएगा। एक नया भारत जो समावेशी होगा जहां कोई भी वंचित व पिछड़ा नहीं होगा। भारतवर्ष को फिर से विश्वगुरु का दर्जा प्राप्त होगा।

(लेखक हरियाणा के राज्यपाल हैं)

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