जीवन राग पढ़ाओ फिर बेटा बचाओ
शमीम शर्मा
सबसे ज्यादा नशा किसमें होता है, सवाल के जवाब में एक नौजवान का कहना था कि किताबों में सबसे ज्यादा नशा है जिन्हें खोलते ही नींद आ जाती है। और शायद यही वजह है कि वे अध्ययन से विमुख होते जा रहे हैं। अधिकांश विद्यार्थियों की बात करें तो साहित्य के पठन-पाठन की बात तो भाड़ में जाये, वे पाठ्यक्रम में लगी पुस्तकें भी नहीं खोल रहे हैं। पांच प्रश्न संस्कृति विकसित हो गई है। वे चाहते हैं कि इंपोर्टेंट पांच प्रश्नों को अध्यापक निशान लगा दे और वे रट लें या उनकी पर्चियां बना लें।
आज के युवा होते बच्चों को चड्डी-बनियान के दसियों ब्रांड याद हैं। घड़ी-जीन्स के भी कई-कई ब्राण्ड पता हैं। कारों की दसियों कम्पनियों का पता है, पिज्जा-बर्गर और कार्टून करैक्टर के भी हर बच्चे को पांच-सात नाम पता हैं पर अपने देश के राष्ट्रपिता या अपनी राष्ट्रपति का नाम नहीं पता। पांच देशों की राजधानियों के नाम बताने के लिये भी उन्हें जोर लगाना पड़ता है। भारत माता की जय जयकार करने वाले उतने शहीदों के नाम नहीं बता सकते जितनी हमारे हाथों की अंगुलियां हैं। हम क्या सीख रहे हैं और क्या ही सिखा रहे हैं। मुझे लगता है कि समूची शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारा खूब सार्थक हुआ। बेटियों ने मेरिट में पर्मानेंट-सी जगह बना ली है। उनकी परफोरमेंस पर एक सुख की सांस ली जा सकती है पर अब एक नारा नया रूप ले चला है। और वह है- बेटा बचाओ। आये दिन बेटों की असामयिक मौतों के समाचार से अखबार रंगा होता है। कारण की तह में जाने पर पता चलता है कि नशा ही वजह है। घूंट-घूंट से बेटा बोतल तक जा पहुंचता है। चुटकी से पुड़िया और फिर पुड़े तक पहुंच जाता है। एक सिगरेट से पैकेट तक की आदत बना लेता है। कभी हेरोइन, कभी अफीम को वह अपना आहार बना लेता है और फिर जल्द ही यमराज के साथ कदमताल करता है। हमारे नौजवान एक बार भी अपने घरवालों से संबंधों की बात नहीं सोचते। नशा सारी संवेदनशीलता को निगल जाता है। घरों में एक-एक दो बच्चे हैं और उनमें से भी अधिकांश घरों के बच्चे बोतल या पुड़िया की गिरफ्त में आ चुके हैं। नारा सही उभर रहा है- बेटा बचाओ।
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एक बर की बात है अक नत्थू नैं किमें घणी ए डोच ली तो वो बोल्या- आई लव यू। धोरै बैठी रामप्यारी गुर्राते होये बोल्ली- तैं बोल्लै है अक तेरी या बोतल? नत्थू बोल्या- भागवान! बोल तो मैं ए रह्या हूं पर तेरे ताहिं किमें नीं कह रह्या, मैं तो इस बोतल ताहिं बतलाण लाग रह्या हूं।