बरसात में रखें खास एहतियात
झमाझम का मौसम कई तरह की संक्रामक व गैर संक्रामक बीमारियों का जोखिम लेकर आता है। नमी, उमस में कई कीटाणु पनपते हैं वहीं गलत खानपान रोग की वजह बनता है। इम्युनिटी कमजोर होती है। ऐसे में सावधानी जरूरी है। इस मौसम में रोगों से बचाव के लिए एहतियात-संभाल से जुड़े इन्हीं महत्वपूर्ण विषयों पर दिल्ली स्थित जनरल फिजीशियन डॉ. चारू गोयल से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
बरसात के मौसम ने दस्तक दे दी है। गर्मी से राहत पाकर मन भले ही खिल उठता हो, लेकिन बारिश के चलते कई लोगों के लिए हेल्दी रहना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। शरीर में पित्त बढ़ जाता है, इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। जहां पेयजल दूषित होने की समस्या रहती है वहीं वायरस, बैक्टीरिया पनपने से कई खाद्य पदार्थ विषाक्त हो जाते हैं। जो संक्रामक बीमारियों को न्यौता देते हैं। ऐसे में एहतियात बरतना जरूरी है।
खांसी-जुकाम
बारिश में भीगने में बहुत मजा आता है, लेकिन गीले कपड़ों में ज्यादा देर रहने, पंखे, कूलर या एसी में कपड़े सुखाने पर हवा लगने से सर्दी-जुकाम होना आम है। वायरल बुखार की चपेट में भी आ सकते हैं। बचाव के उपाय : बारिश में ज्यादा देर न भीगें। यथाशीघ्र तौलिये से अच्छी तरह पौंछ कर कपड़े बदल लें या शॉवर लें। हल्के और सूती कपड़े पहनें ताकि ये जल्दी सूख जाएं। गर्म दूध, कॉफी, चाय, ग्रीन टी या सूप पिएं। भाप ले सकते हैं।
आई फ्लू
मानसून में आंखों में होने वाला आई फ्लू यानी कंजक्टिवाइटिस इंफेक्शन मूलतः तीन तरह का होता है- वायरल, एलर्जिक और बैक्टीरियल। आई फ्लू संक्रामक होता है जो एक व्यक्ति से दूसरे में बहुत जल्दी फैलता है। इसमें आंखें लाल होना, सूजन, इचिंग, पानी निकलना व आंखें चिपचिपी होना जैसी समस्याएं होती हैं। बचाव के उपाय- आमतौर पर एक हफ्ते में खुद ठीक हो जाता है। फिर भी साफ-सफाई बरतें, आंखों को ताजे पानी या बोरिक एसिड मिले पानी से बार-बार धोएं। आंखों में बार-बार हाथ न लगाएं और न मलें। एलर्जिक आई फ्लू होने पर नॉन स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लेमेट्री मेडिकेशन की जरूरत होती है। बैक्टीरियल में एंटी बैक्टीरियल आई ड्रॉप डालने के लिए दी जाती है। तौलिया, रुमाल किसी के साथ शेयर न करें। किसी को इन्फेक्शन है तो दूरी बनाएं।
पेट संबंधी रोग
बारिश के मौसम में डाइजेस्टिव सिस्टम काफी प्रभावित होता है। खाने में लापरवाही बरतने या ठीक से न बनाया गया खाना खाने की वजह से व्यक्ति डायरिया की चपेट में आ सकते हैं। दूषित खाना खाने या गंदा पानी पीने से रोटावायरस और नोरोवायरस गैस्ट्रोइंटरराइटिस इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। डायरिया में दिन में 4-5 बार लूज मोशन, डिहाइड्रेशन व उल्टियां भी हो सकती हैं। पेट में तेज दर्द, मरोड़, बुखार व कमजोरी हो सकती है। बचाव के उपाय- पीड़ित को ओआरएस का घोल या नमक-चीनी की शिकंजी लगातार देते रहे। प्रोबॉयोटिक्स दही लें। उल्टी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन और दस्त रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल दवाई दी जाती है। नारियल पानी, नींबू पानी, छाछ, दाल के पानी के साथ-साथ खिचड़ी, दलिया जैसा हल्का खाना दें।
हैजे की आशंका
जलभराव के कारण पेयजल में कई बार सीवेज का पानी मिल जाने से पानी दूषित हो जाता है जिसे पीने से हैजा होने की आशंका बढ़ जाती है। इसमें शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं, इचिंग,उल्टियां व बुखार होता है। बचाव के उपाय- पानी फिल्टर किया या उबालकर पिएं। पानी की बोतलों को भी स्टर्लाइज़ करना चाहिए।
हेपेटाइटिस ए और ई संक्रमण
संक्रमित या बासी भोजन खाने, दूषित पानी पीने और सफाई न रखने से हेपेटाइटिस ए और ई वायरल इंफेक्शन का खतरा भी रहता है। इसे जॉन्डिस या पीलिया भी कहा जाता है। व्यक्ति का लीवर प्रभावित होता है। थकान, 3-4 दिन तक हल्का बुखार, सिर दर्द, उल्टियां, कमजोरी, त्वचा और आंखों में पीलापन जैसी समस्याएं होती हैं। बचाव के उपाय- क्लोरीन युक्त फिल्टर किया या उबला पानी पिएं। 20 लीटर पानी में 500 मिलीग्राम क्लोरीन की गोली मिलाकर पानी साफ करें। बाहर का खाना न खाए। डॉक्टर की सलाह से हेपेटाइटिस ए वैक्सीन लगवाएं।
स्किन इंफेक्शन
बरसात के मौसम में भीगने, गीले कपड़े पहनने, व गंदे पानी में जाने से कई तरह के स्किन इंफेक्शन हो जाते हैं।
घमौरियां और रेशेज- स्किन में ज्यादा मॉयश्चर रहने से घमौरियां सीने या गर्दन पर होती हैं जो धीरे-धीरे दूसरे अंगों में भी फैल जाती हैं। स्किन में लाल रैशेज पड़ जाते हैं, काफी इचिंग होती है। रैशेज ज्यादातर बगल, कमर और चेस्ट के निचले हिस्से में होते हैं। बचाव के उपाय- घमौरियां टेलकम पाउडर लगाने से ठीक हो जाती हैं। एसी और कूलर में रहें। दिन में एकाध बार बर्फ से सिंकाई करें। कैलेमाइन लोशन लगाएं।
फोड़े-फुंसियां- बरसात के दिनों में इम्युनिटी कमजोर होने की वजह से बैक्टीरिया स्किन को भी प्रभावित करते हैं। उनकी स्किन पर फोड़े-फुंसियां, बालतोड़, पस वाले लाल दाने हो जाते हैं। जिसमें दर्द भी रहता है। बचाव के लिए दानों पर फ्यूसिडिक एसिड और म्यूपिरोसिन नामक एंटीबॉयोटिक क्रीम, क्लाइंडेमाइसिन लोशन लगाएं।
फंगल इंफेक्शन- बारिश में संक्रामक रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज की समस्या भी देखने को मिलती है। रिंग की तरह रैशेज होते हैं। इनमें खुजली रहती है। बचाव के लिए यथासंभव प्रभावित जगह को स्वच्छ और सूखा रखें। डॉक्टर की सलाह पर क्लोट्रिमाजोल एंटी फंगल क्रीम लगाएं व टेबलेट ले सकते हैं।
बालों में फंगल इंफेक्शन- इस मौसम में बालों में फंगल इंफेक्शन हो सकता है। डेंड्रफ हो जाती है, जड़ें कमजोर पड़ जाती हैं और बाल झड़ने लगते हैं। बचाव के लिए बालों को साफ और सूखा रखें। ऑयल कम लगाएं। माइल्ड एंटी डेंड्रफ शैंपू इस्तेमाल करें।