इलाज से आंखों को नुकसान की भरपाई का हक
कंज्यूमर राइट्स
आंखों के दवा से इलाज या सर्जरी के दौरान डॉक्टर की लापरवाही के चलते दृष्टि चली जाये, निगाह में कमी आ जाये तो पीड़ित उपभोक्ता आयोग में गुहार लगा सकता है। मोतियाबिंद सर्जरी में लापरवाही में सर्जरी की गलतियां, गलत लेंस, ऑपरेशन के बाद संक्रमण आदि शामिल हैं।
श्रीगोपाल नारसन
यदि आंखें न हों या फिर किसी चिकित्सक की लापरवाही से आंखें ठीक होने के बजाय खराब हो जाएं तो जिंदगी में अंधेरा छा जाता है। मोतियाबिंद की सर्जरी में जब चिकित्सक यानि सर्जन या सर्जिकल टीम आंखों के उपचार में अपने कर्तव्य का उल्लंघन करती है, तो यह चिकित्सीय लापरवाही का मामला बन जाता है। यह मोतियाबिंद को पूरी तरह हटाने में विफलता या सर्जरी के दौरान आंख को नुकसान पहुंचाना हो सकती है। जिससे रोगी को दृष्टि से जुड़ी समस्याएं या जीवन भर रोशनी से वंचित होना पड़ सकता है। आमतौर पर 50 में से लगभग 1 मोतियाबिंद सर्जरी में लापरवाही होती है। सर्जरी की लापरवाही के बाद आंख की पूरी रोशनी 1000 मामलों में से केवल एक मामले में ही जाती है। इस सर्जरी की लापरवाही का दावा करने वाले 45 प्रतिशत लोग गलत लेंस का उपयोग करने जैसी त्रुटियों के शिकार होते हैं। जबकि मोतियाबिंद सर्जरी की 15 प्रतिशत लापरवाही गलत सर्जरी के कारण होती है। जबकि मोतियाबिंद सर्जरी से दृष्टि में सुधार की सफलता दर काफी अधिक है।
पहला मामला : अनुपयुक्त सर्जरी कक्ष
मोतियाबिंद सर्जरी में लापरवाही के दावों में सर्जरी के दौरान की गई गलतियों से लेकर गलत लेंस लगाने से लेकर ऑपरेशन के बाद संक्रमण और अत्यधिक दर्द पैदा करने वाली गलतियां तक शामिल हैं। एक नामी मेडिकल कॉलेज में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद 3 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई और 15 लोगों की आंखों को नुकसान पहुंचा। ऑपरेशन प्रक्रिया सही नहीं अपनाई गई थी, जिससे संक्रमण आंखों में फैल गया, नेत्र रोग विभाग की लापरवाही के कारण लोग अंधेपन का शिकार हो गये। आरोप है कि सर्जरी कक्ष नेत्र शल्य चिकित्सा के लिए अनुपयुक्त था,इसलिए यह स्थिति पैदा हुई। नेत्र ऑपरेशन में 15 लोगों की आंखों को नुकसान पहुंचा था, संक्रमण के शिकार हो गए। एक मरीज ने कहा, ‘मैं मोतियाबिंद सर्जरी के बाद घर गया तो अचानक दिखना बंद हो गया, मैं फिर से अस्पताल गया। डॉक्टर साहब ने आंख का लेंस निकाल लिया और इंजेक्शन लगाकर चले गये, लेकिन आंखों में रोशनी नही लौटी।’
दूसरा मामला : सर्जरी के बाद दृष्टिहीनता
इसी तरह भोजपुर जिले में एक निजी नेत्र अस्पताल में एक महिला के मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद उसकी एक आंख की रोशनी चली गई। दरअसल, जांच के बाद डाक्टर ने महिला की दाईं आंख में मोतियाबिंद होने की बात कही और ऑपरेशन कराने की सलाह दी थी। डॉक्टर ने महिला की एक आंख में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया। लेकिन ऑपरेशन सफल नहीं हो पाया। डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए जमा कराए पैसे मरीज के परिजन को लौटा दिए और बोला कि अब मरीज की आंख की रोशनी नहीं आएगी। यह सुनते ही मरीज की जिंदगी में अंधेरा छा गया। पीड़ित महिला ने बताया कि ऑपरेशन थिएटर में प्रसिद्ध चिकित्सक के बजाय कोई सामान्य महिला चिकित्सक थी। हालांकि, नेत्र विशेषज्ञ ने आरोप नकारा था।
अस्पताल की लापरवाही उजागर
एक अन्य मामले में मध्य प्रदेश के इंदौर में जिला प्रशासन को मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान एक चिकित्सालय की ओर से कथित गंभीर लापरवाही के प्रमाण मिले थे। जिससे 15 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई थी। जांच में अस्पताल की लापरवाही सामने आने के बाद प्रदेश सरकार से सिफारिश की गई है कि इस अस्पताल को मरीजों की किसी भी सर्जरी की अनुमति नहीं दी जाए।
गलत इलाज मामले में डॉक्टरों पर जुर्माना
आंखों का गलत इलाज करने पर उत्तर प्रदेश के राज्य उपभोक्ता आयोग ने दो डाक्टरों पर 7.5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। जुर्माने की ये रकम उन्हें वर्ष 2015 से 12 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ अदा करनी होगी। गाजियाबाद निवासी एक महिला की आंखों में सूजन आ गई थी। उन्होंने एक अस्पताल के दो डाक्टरों को दिखाया। डॉक्टरों ने प्रेड-फोर्ट की दवा आंख में डालने के लिए दी। आराम न मिलने पर अन्य दवा दी गयी। ये दवाएं कई महीनों तक लगातार दी गईं। मरीज ने दूसरे अस्पताल में दिखाया, तो मालूम हुआ दोनों आंखों में मोतियाबिन्द हो चुका है व ये आपरेशन से ठीक होंगी। पीड़िता ने जिला उपभोक्ता आयोग गाजियाबाद में परिवाद दाखिल किया, जिसे खारिज कर दिया गया। फिर राज्य उपभोक्ता आयोग लखनऊ में अपील की तो पीठासीन जज ने फैसला दिया कि ये दवाएं स्टेरॉयड श्रेणी की हैं। बहुत दिन तक इनका इस्तेमाल करने से आंख में धुंधलापन, जलन, आंखों से पानी निकलना आदि समस्याएं होने लगती हैं। राज्य उपभोक्ता आयोग ने पाया कि इस मामले में डॉक्टरों ने लापरवाही की है। -लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।