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आगरा से पहले बुरहानपुर में बनना था ताजमहल!

06:45 AM Aug 09, 2024 IST

सोनम लववंशी
बुरहानपुर भारत के महत्वपूर्ण विरासतों की भूमि है। यही वो शहर है जहां मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल का देहांत हुआ था। मुमताज और शाहजहां के प्रेम का प्रतीक ताजमहल जिसे कभी बुरहानपुर में बनना था पर दुर्भाग्य से, कुछ कारणों से इतिहास में बुरहानपुर का स्थान छीन इसे आगरा को दे दिया। लेकिन आज भी इस शहर में मौजूद ऐतिहासिक धरोहर इसे अनूठा बनाती है। माना जाता है कि यहां के काले ताजमहल से प्रेरणा लेकर ही आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया गया। बुरहानपुर का इतिहास फारुकियों एवं मुगलों से संबंधित है। यहां पारंपरिक पर्यटन के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य और एेतिहासिक धरोहरों के बेजोड़ नमूने हैं। पहाड़ों से गिरते झरने, जमीन के अंदर अस्सी फीट की गहराई में मौजूद पानी की नहर और मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक के लिए अजेय रहे असीरगढ़ के किले जैसी कई ऐतिहासिक धरोहरें यहां मौजूद हैं। हिन्दू धर्मं-ग्रंथों में बुरहानपुर को भृग्नपुर कहा गया है। यह नाम भृगु ऋषि के नाम पर रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां भृगु ऋषि ने कठोर तप किया, और ताप्ती नदी के किनारे बैठकर भृगु संहिता की रचना भी की थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बुरहानपुर शहर का नाम प्रसिद्ध चिश्ती संत ख्वाजा बुरहानुद्दीन ग़रीब के नाम पर रखा गया था। इसीलिए शायद इस शहर में कई दरगाहें हैं।

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प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना

बुरहानपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित बादलखोरा का जंगल और ऊंची पहाड़ी से गिरता झरना हर किसी को रोमांचित करता है। यहां कई तरह की जड़ी-बूटियां कुदरत के खजाने का अद्भुत उदाहरण है। धूलकोट क्षेत्र में स्थित बसाली का झरना और ठाठर बलडी गांव के पास जंगल में मौजूद सीता गुफा की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम वनवास के समय यहां रुके थे। लक्ष्मण जी ने बाण चलाकर इस झरने का निर्माण किया था, आज भी इस झरने में वर्ष भर पानी बहता रहता है।

नागझिरी घाट

ताप्ती नदी के इस क्षेत्र को रामक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता हैं। मान्यता है कि यहां भगवान राम ने अपने पिता महाराज दशरथ का पिंडदान किया और शिवलिंग की स्थापना की। इस स्थान को वर्तमान समय में नागझिरी घाट के नाम से पुकारा जाता है। इस घाट पर 12 शिव मंदिर हैं, जिन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्वरूप माना जाता है। भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में ताप्ती तट के जिन क्षेत्रों का भ्रमण किया, उसका उल्लेख स्कंद पुराण के ताप्ती महात्म्य में है। यहां श्रीराम झरोखा मंदिर में श्रीराम, लक्ष्मण और माता जानकी की प्रतिमा वनवासी रूप में विद्यमान है। यह स्थान पुरातन समय में संत-महात्माओं को आकर्षित करता था, उन्होंने इसी स्थान को अपनी साधनास्थली बनाया।

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चार सौ वर्ष पुरानी जल संरचना

दुनिया के किसी भी देश में ऐसी कोई जल संरचना नहीं है जो चार सौ वर्ष पहले जमीन से अस्सी फीट नीचे बनाई गई हो, और सैकड़ों लोगों की प्यास बुझा रही है। मध्यकालीन भारत की इस अद्भुत जल यांत्रिकी का नजरा बुरहानपुर में देख सकते हैं। ये लालबाग क्षेत्र स्थित कुंडी भंडारे के नाम से मशहूर है जो पर्यटक को रोमांचित करती है। कुंडी भंडारा विश्व की एकमात्र जीवित भूमिगत जल वितरण प्रणाली है। जिसका निर्माण 1612 से 1615 ईस्वी के बीच मुगल बादशाह अकबर के खास सूबेदार अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना ने कराया था। यह एक अनोखा जल प्रबंधन है जिसमें प्राकृतिक जल गंतव्य स्थान तक भूमिगत प्रणाली द्वारा ले जाया जाता है। सतपुड़ा पर्वतों से ताप्ती नदी की ओर जाते ताजे झरने के जल को नगर तक लाया जाता है। इस जल प्रबंधन के लिए 100 से भी अधिक कुएं खोदे गए हैं जो इस जल को एकत्र करते हैं तथा नगर तक पहुंचाते हैं।

काला ताज महल

जिस तरह आगरा का ताजमहल शाहजहां और मुमताज के प्रेम का प्रतीक है उसी तरह काला ताजमहल शाहनवाज खान और उसकी पत्नी के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना के बेटे शाहनवाज खान के मकबरे को ‘काला ताज महल’ कहते हैं। यह एक खूबसूरत स्मारक है, जिसका आकार ताज जैसा है। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट शाहजहां ने काला ताजमहल देखने के बाद ही आगरा में ताजमहल के निर्माण करने का निर्णय लिया। इसे नवाब खान का मकबरा भी कहा जाता है।

आहुखाना

बुरहानपुर के शाही दुर्ग से ताप्ती नदी के उस पार जैनाबाद की ओर एक शिकार-खाना है। जिसे अहुखाना कहा जाता है। इसका प्रयोग मुगल स्त्रियों द्वारा शिकार हेतु किया जाता था। अतीत में इस शिकार-खाने के विशाल परिसर में कई हिरणों को खुला छोड़ दिया जाता था ताकि उन्हें मार कर मुग़ल स्त्रियां भी शिकार का आनंद ले सके। वर्तमान में शिकार-खाने के परिसर के चारों ओर बगीचा बनाया गया है। अहुखाना की प्रसिद्धि का एक कारण यह भी है कि मुमताज महल की मृत्यु के पश्चात उनके पार्थिव देह को आगरा ले जाने से पूर्व 6 माह की अवधि के लिए यहां दफनाया गया था। शाहजहां ने ताप्ती के इसी तट पर मुमताज महल के लिए एक भव्य मकबरा बनाने का फैसला किया था, लेकिन राजस्थान के मरकाना से संगमरमर लाने में आने वाली कठिनाइयों और मिट्टी की बनावट के कारण, आगरा को चुना गया।

दरगाह-ए-हकीमी

दरगाह-ए-हकीमी बुरहानपुर का सर्वाधिक संरक्षित स्थल है। श्वेत रंग के मकबरों पर चांदी के नक्काशे द्वार हैं। दरगाह-ए-हकीमी है, जो बोहरा समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, सैयद अब्दुल तैयब जकीउद्दीन का विश्राम स्थल है। इस मकबरे के चारों ओर के बगीचे काफ़ी मनमोहक हैं। दर्शनार्थी इस दरगाह में घोड़ागाड़ी अथवा तांगे पर बैठकर आते हैं।

असीरगढ़ का किला

हिन्दू महाकाव्यों के अनुसार असीरगढ़ दुर्ग एक प्राचीन दुर्ग है। बरसात के दिनों में इसकी सुंदरता पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है। चौदहवीं शताब्दी में बनाया गया यह किला हमेशा अजेय रहा है। युद्ध करके न तो मुगल इस पर कब्जा कर पाए थे और न अंग्रेज। इस पर जिसने भी कब्जा किया छल-कपट से ही कर पाया। किले में मौजूद प्राचीन शिव मंदिर को गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में आज भी अश्वत्थामा भगवान शिव का पूजन करने आते हैं।

मुमताज महल का हमाम

शाही किले का सबसे अनोखा भाग हमाम अर्थात‌् शाही स्नानगृह। इसका उपयोग मुमताज महल करती थी। इस हमाम की विशेषताएं थीं नीले-हरे रंग में रंगी छत तथा इसकी प्रणाली जो इसे एक उत्तम जल स्रोत बनाती है। इस दुर्ग का एक अन्य आकर्षण है इसकी प्राचीर जहां से ताप्ती नदी का घाट तथा नदी के उस पार स्थित जैनाबाद देख सकते हैं।

शाही किला

बुरहानपुर का शाही किला एक जीवंत किला है जहां पुराने बुरहानपुर का एक भाग अब भी निवास करता है। इसके प्रवेशद्वार को शनिवारा कहा जाता है। यह लाल रंग में रंगा एक बहुमंजिला द्वार है। इस द्वार के भीतर प्रवेश कर संकरी गलियों ओर पुराने घरों से होते हुए शाही किले के मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंचते हैं।

सभी चित्र लेखिका

जामा मस्जिद

जामा मस्जिद बुरहानपुर के व्यस्त बाजार के मध्य स्थित एक बड़ी मस्जिद है जिसमें काले पत्थर में बनी दो ऊंची मीनारें हैं। इसकी एक खास बात यह है कि यहां संस्कृत में लिखे शिलालेख हैं। जबकि बड़े-बड़े मनकों की एक लम्बी जपमाला भी यहां मौजूद है।

समृद्ध जैन नगर

एक समय यह शहर जैन नगरी के रूप में भी जाना जाता था, जहां काष्ठकला कारीगरी से सुसज्जित जैन मंदिर विद्यमान थे। यहां भगवान पार्श्वनाथ का मंदिर अपनी उत्कृष्टता के लिए विश्व प्रसिद्ध था। लेकिन 1857 ई. में हुए अग्निकांड में यह मंदिर पूरी तरह जल गया था। बाद में यहां नए मंदिर का निर्माण किया गया। जिसमें भगवान शांतिनाथ के 12 चित्रों के साथ 24 जैन तीर्थकरों के चित्रों को उकेरा गया है।
हवाई मार्ग : यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा इंदौर शहर में है, जो बुरहानपुर से लगभग 210 किलोमीटर दूर है। इसकी दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, रायपुर, नागपुर आदि प्रमुख शहरों से अच्छी कनेक्टिविटी है। पर्यटक इस हवाई अड्डे से बुरहानपुर की यात्रा के लिए सीधी बस सेवा या टैक्सी ले सकते हैं।
रेल मार्ग : बुरहानपुर रेलवे स्टेशन है, जो मुंबई, दिल्ली, इलाहाबाद, आगरा, ग्वालियर, जबलपुर और भोपाल से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग : बुरहानपुर महाराष्ट्र राज्य की सीमा के बहुत करीब है, और इसलिए सड़क मार्ग से इसकी अच्छी कनेक्टिविटी है। इंदौर से बुरहानपुर और भुसावल, जलगांव, औरंगाबाद जैसे राज्य के अन्य हिस्सों के लिए लगातार बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

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