ईमानदारी की मिठास
रूस की राज्य क्रांति के बाद शासन की बागडोर क्रांति के नेता लेनिन के हाथ में आ गई। उन्होंने एक दिन राज्य के प्रमुख नागरिकों की बैठक आयोजित की। लेनिन की पत्नी ने सभी लोगों के लिए चाय तैयार की। सभी ने चाय को मुंह लगाया तो वह उन्हें फीकी मालूम हुई। कुछ तो फीकी चाय चुपचाप पीते रहे और कुछ धीमे-धीमे बातें करते रहे। लेनिन लोगों के हाव-भाव देखकर समझ गए कि सभी चाय के बारे में बातें कर रहे हैं। वह मुस्कराते हुए बोले, ‘क्षमा करना अतिथियो, दरअसल चीनी खत्म हो गई है। इसलिए आपको फीकी चाय पीनी पड़ रही है।’ बैठक समाप्त होने पर एक धनी व्यक्ति ने कुछ ही देर बाद उनके घर चीनी की एक बोरी भिजवा दी। चीनी की बोरी देखकर लेनिन ने अपने सचिव को बुलाया और बोले, ‘किसी ने यह चीनी की बोरी भिजवाई है। इसे तुरंत सरकारी गोदाम में जमा करा दीजिए। यह राज्य की संपत्ति है। राज्य के संसाधनों के निजी उपयोग का हमें कोई अधिकार नहीं है। यदि हम ऐसा करते हैं तो भ्रष्टाचार करते हैं। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने की अपेक्षा हमें फीकी चाय पसंद है।’ यह सुनकर उनकी पत्नी व सचिव दोनों ही लेनिन के प्रति नतमस्तक हो गए।
प्रस्तुति : सुभाष बुड़ावन वाला