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करेले जैसी जीभ पर चाशनी का लेप

06:47 AM Aug 29, 2024 IST
करेले जैसी जीभ पर चाशनी का लेप
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शमीम शर्मा

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जाट कहे सुण जाटनी इसी गांव में रहना, बिल्ली ऊंट ले गई तो हां जी हां जी कहना। यह कहावत इलेक्शनों में नेताओं पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। जिन लोगों ने जनता की एक फली कभी फोड़ी नहीं आज वे हर काम के लिये हां भर रहे हैं। करेले जैसी जीभ वाले नेता अब जुबान पर चाशनी का लेप चढ़ा रहे हैं। लट्ठ की तरह जो कभी मुड़ना-तुड़ना जानते ही नहीं थे, वे भी झुक-झुक कर दोहरे हुए जा रहे हैं। जिनके सामने ये देश निर्माता झुक रहे हैं, उनकी हालत पर दुष्यंत कुमार की चार लाइनें ज़हन में तैर रही हैं :-
सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर
झोले में उसके पास कोई संविधान है।
उस सिरफिरे को यूं नहीं बहला सकेंगे आप
वह आदमी नया है मगर सावधान है।
जिन्हें पक्का पता है कि उनका पत्ता कटेगा वे भी अपनी टिकट की बाट में रातों जागकर आंखें सुजाये बैठे हैं। उठते-बैठते, खाते-सोते हुए चारों तरफ एक ही रोमांच है कि किस को मिलेगी और किसकी कटेगी। अखबारों की सुर्खियों से लेकर टीवी चर्चाओं तक और गली, दुकान नुक्कड़ तक सिवाय टिकट के और कोई बात ही नहीं है। किसी जमाने में बॉबी और दीवार जैसी फिल्मों की टिकट के लिये लम्बी लाइन लगा करती थी पर आज चुनावी टिकटार्थियों की लाइनों ने तो हद ही पार कर रखी है। कोई किल्ले बेचकर, कोई नौकरी छोड़कर, कोई घुटने टेककर, कोई तलवे चाटकर टिकट लेने की कोशिश में उतावला हो रहा है। असंख्य कौए हंस की चाल चलने के चक्कर में अपनी चाल भी भूल रहे हैं। दूसरी तरफ इक्का-दुक्का ही नेता हैं जिन्हें अपने काम और ईमानदारी पर नाज़ है। ऐसे नेताओं की टिकट भी सीमेंट से बनी है जो टस से मस नहीं होती।
किसी पढ़े-लिखे साधारण से आदमी ने एक पार्टी के अध्यक्ष को फोन किया कि मैं एमएलए की टिकट के लिये आवेदन करना चाहता हूं। पार्टी अध्यक्ष ने खीझते हुए कहा- बेवकूफ हो क्या? वो चौंककर बोला- क्यूं टिकट लेने के लिए बेवकूफ होना जरूरी है? जीतने के सारे नुस्खों में सबसे कारगर है कि वंचितों को लोभ-प्रलोभन के चाबुक से हांका जाये। इसी स्थिति पर चुटकी लेते हुए किसी ने कहा है :-
गरीब की थाली में पुलाव आ गया
लगता है शहर में चुनाव आ गया।
इस तथ्य से सब सहमत हैं कि इतिहास व भूगोल बदलना तो बहुत कठिन कार्य है पर वोट से देश की तस्वीर जरूर बदली जा सकती है।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी बस मैं चढ़ी तो कंडक्टर ताहीं पचास का नोट देकै बोल्ली- महम की काट दे। कंडक्टर नैं नोट झोले मैं घाल लिया पर टिकट नीं काटी। रामप्यारी नैं तीन-चार बर टिकट मांगी तो कंडक्टर छोह मैं बोल्या- ताई क्यां खात्तर टिकट की रट लगा राखी है, तन्नैं के इलेक्शन लड़णा है?

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