संयम से सफलता
स्टीफेंसन ने रेलवे इंजन का आविष्कार किया। जैसा कि संसार का नियम है, ईर्ष्यालु लोग विरोध करने के लिए खड़े हो गए। एक दिन प्रतिज्ञा अनुसार इंजन को प्रदर्शन और परीक्षा के लिए जनता के सम्मुख लाया गया और उसके साथ गाड़ी के कुछ डिब्बे जोड़ दिए गए। जब इंजन को चलाया गया तो वह आगे बढ़ने की बजाय ऊपर को उछलने लगा। यह देखते ही दर्शकों की ओर से फब्तियां कसी जाने लगीं। इसके आविष्कारक का उपहास उड़ाया गया। मित्र बड़े खिन्न और उदास हुए। परंतु आविष्कर्ता स्टीफेंसन न तो प्रसन्न था और न ही उदास। वह केवल इस बात पर विचार कर रहा था कि दोष कहां है? त्रुटि कौन-सी है? जांच-पड़ताल के बाद स्टीफेंसन ने त्रुटि भांप ली। जब दूसरा प्रदर्शन हुआ तो इंजन ने सीटी दी और रेल फटाफट वेग से आगे बढ़ी। पहली बार ऐसा दृश्य देखकर लोग आश्चर्यचकित रह गए। जो त्रुटि स्टीफेंसन ने भांपी वह यह थी कि पहिए ज्यादा भारी न थे, जिस कारण इंजन आगे बढ़ने के स्थान पर ऊपर को उठता था। त्रुटि दूर करने पर आविष्कर्ता को सफलता प्राप्त हुई। आज स्टीफेंसन को सारी दुनिया जानती है परंतु उपहास करने वालों का नाम कोई नहीं जानता।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन