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समाज में अपराध के खिलाफ सशक्त सोच बने

06:36 AM Jan 11, 2024 IST
विश्वनाथ सचदेव

पिछले डेढ़ साल में पहली बार बिलकिस बानो के चेहरे पर मुस्कान आयी है। सामूहिक बलात्कार और हत्या के अपराधियों को सज़ा में मिली छूट के खिलाफ बिलकिस बानो की याचिका पर निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में 11 अपराधियों को मिली छूट को धोखाधड़ी (फ्रॉड) कहा है। और गुजरात सरकार की इस कार्रवाई को अनधिकार चेष्टा भी। उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार बलात्कार और हत्या के इन ग्यारह दोषियों को यदि सज़ा में कोई छूट मिलती भी है तो वह गुजरात सरकार के नहीं, महाराष्ट्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती, जहां न्यायालय ने सज़ा सुनाई थी। ज्ञातव्य है कि आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे इन अपराधियों को सन‍् 2002 के गुजरात दंगों के दौरान ‘अमानुषिक अपराध’ करने के लिए दोषी पाया गया था। संभव है न्यायालय के नवीनतम निर्णय को देखते हुए अब यह अपराधी महाराष्ट्र सरकार से सज़ा की छूट पाने की कोशिश करें।
ज्ञातव्य यह भी है कि डेढ़ साल पहले जब इन अपराधियों को गुजरात सरकार ने अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए सज़ा में छूट दी थी तो जेल से छूटने पर इन अपराधियों का सार्वजनिक स्वागत हुआ था, इन्हें मालाएं पहनाई गयी थीं, माथे पर तिलक लगाया गया था। यही नहीं, विश्व हिंदू परिषद जैसी संस्थाओं ने इन्हें नायक की तरह प्रस्तुत किया था। एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने और बिलकिस की 3 वर्ष की बच्ची समेत उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने वालों को मान देने की मानसिकता पर भी आज सवाल उठाना ज़रूरी है।
न्यायालय ने अपना काम किया है, आगे भी कानून के शासन के ऐसे उदाहरण मिलते रहेंगे। न्याय के लिए लड़ने वाली बिलकिस बानो को देश में समर्थन भी मिला है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी इस तरह का समर्थन पीड़ितों को मिलता रहेगा। लेकिन सवाल जो उठता है वह यह है कि कानून के शासन में विश्वास करने वाले समाज में अपराधियों को समर्थन देने की मानसिकता कैसे और क्यों पनपती है। डेढ़ साल पहले जब यह ग्यारह अपराधी जेल से बाहर आये थे तो मालाएं पहनाकर इनका स्वागत करने वालों को भी अपराधी क्यों न माना जाये? कानून भले ही ऐसे तत्वों को अपराधी न मानता हो, पर आपराधिक मानसिकता के आरोप से ये मुक्त नहीं हो सकते। यह अवसर इस मानसिकता के खिलाफ भी आवाज उठाने का है। सामूहिक बलात्कार को अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार ‘मनुष्यता के खिलाफ अपराध’ माना गया है। किसी भी सभ्य समाज में ऐसे अपराध के लिए सज़ा होनी चाहिए। साथ ही, अपराधी वे भी हैं जो ऐसे अपराध को समर्थन देते हैं, महिमा-मंडित करते हैं।
कुछ ही अर्सा पहले हमने मणिपुर में भी एक घृणित कृत्य होते देखा था। वहां महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़कों पर घुमाया गया, उनके साथ दुराचार हुआ और समाज का एक वर्ग तमाशबीन बना देखता रहा। सच तो यह है कि यह व्यवहार बलात्कार के अपराध से कम नहीं है। मणिपुर की उन अभागी महिलाओं को न्याय कब मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं, पता नहीं। पर सवाल उठता है कि उन अपराधियों को सज़ा दिये जाने की बात क्यों नहीं होती जो ऐसे अपराधों को या तो मूक समर्थन देते रहते हैं, या फिर ऐसे अपराधियों को मालाएं पहनाकर उनका अभिनंदन करते हैं।
कौन हैं वे लोग, जिन्होंने बिलकिस बानो और उसके परिवार के साथ अत्याचार करने वालों का जेल से बाहर आने पर स्वागत-सत्कार किया? यह ग्यारह लोग निरपराधी घोषित होकर जेल से नहीं छूटे थे, ‘इन्हें ‘सद‍्व्यवहार’ के नाम पर सज़ा में छूट दी गयी थी, इसलिए ये बाहर आए थे। यह सही है कि हमारे देश में इस छूट का प्रावधान है, पर क्या यह भी सही नहीं है कि कुछ अपराध ऐसे भी होते हैं जिनमें सज़ा में इस तरह की छूट नहीं होनी चाहिए? बलात्कार अपने आप में जघन्य अपराध है, सामूहिक बलात्कार और भी बड़ा अपराध है, और बलात्कार करके हत्या करना इस बड़े से भी बड़ा अपराध! जेल की सज़ा के दौरान ‘सद‍्व्यवहार’ के नाम पर ऐसे अपराधियों को यदि कोई छूट मिलती है तो विवेक का तकाज़ा है कि उस पर सवालिया निशान लगे।
सवाल यह भी है कि यदि अपराधी अपने कृत्य पर खेद प्रकट नहीं करता, यह अनुभव नहीं करता कि उससे कोई गलती ही नहीं, अपराध हुआ है, तो उसके व्यवहार को सद‍्व्यवहार की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है? क्या यह हकीकत नहीं है कि बिलकिस बानो जैसी महिलाओं को लगातार आतंक के साये में जीना पड़ता है? लगातार उन पर दबाव होता है कि वह अपनी शिकायत वापस ले लें? हकीकत यह भी है कि पिछले डेढ़ साल में, यानी जब से ये अपराधी कथित सद‍्व्यवहार का पुरस्कार पाकर जेल से बाहर आये हैं, बिलकिस बानो चैन की नींद नहीं सो पायी?
अब उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद बिलकिस बानो ने अपने वकील के माध्यम से यह कहलवाया है कि जैसे कोई मनो भारी पहाड़ उसके सीने से उतर गया है। डेढ़ साल में पहली बार अपने बच्चों से लिपट कर उसने खुशी के आंसू बहाये हैं। बिलकिस का यह कहना कम महत्वपूर्ण नहीं है कि ‘मैं सुप्रीम कोर्ट की आभारी हूं कि उसने मुझे, मेरे बच्चों को, और सब महिलाओं को समान न्याय के अधिकार देने की उम्मीद जगाई है।’ बिलकिस बानो ने उन जैसे सैकड़ों लोगों का आभार भी व्यक्त किया है जो अदालती लड़ाई में उसके साथ खड़े रहे। वह देश के उन करोड़ों लोगों की भी आभारी हैं जिनकी सहानुभूति उसे मिली है। ऐसे लोग हमारे देश में जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने में गर्व का अनुभव करते हैं। पर उनका क्या जो अन्याय करके या अन्याय का समर्थन करके स्वयं को गौरवान्वित समझते हैं?
अपराधियों का साथ देना या उनका समर्थन करना शर्म की बात होनी चाहिए। ऐसी शर्म किसी सभ्य समाज को भी परिभाषित करती है। मणिपुर की सड़कों पर महिलाओं के साथ दरिंदगी करने वाले हों या बलात्कार और हत्या के घोषित अपराधियों का अभिनंदन करने वाले, मनुष्यता को कलंकृत करते हैं ये लोग। मनुष्यता का तकाज़ा है कि समाज में अपराध के विरुद्ध भावना पनपे। इसके लिए हर स्तर पर, हर संभव कोशिश होनी चाहिए। बिलकिस बानो के इस कांड में जिसने भी गलत व्यवहार किया है, वह दंड का भागी है। सिर्फ कानून ही दंड नहीं देता, समाज भी उचित और विवेकपूर्ण व्यवहार करके आपराधिक तत्वों को सज़ा दे सकता है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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