स्त्री संवेदनाओं का सशक्त चित्रण
नीरोत्तमा शर्मा
स्त्री संवेदनाओं का सही चित्रण तब होता है जब समाज द्वारा उसके अभिव्यक्ति के अधिकार को छीन लिया जाता है। शैलजा पाठक का काव्य संग्रह ‘कमाल की औरतें’ इसी हकीकत का शाब्दिक चित्रण है। इस संग्रह में 167 कविताओं के माध्यम से दुनियाभर की औरतों की भावनाओं और संघर्षों को उकेरा गया है, जिसमें समाज के भेदभावपूर्ण रवैये को उजागर किया गया है।
इन कविताओं में औरतें अपनों द्वारा छली गई, पीड़ित और विद्रोही नजर आती हैं। वे दांपत्य जीवन को सतीत्व के भाव से जीती हैं, लेकिन साथ ही रिश्तों को स्वार्थ के लिए तार-तार करने में भी संकोच नहीं करतीं। अम्मा, बुआ, दादी, बहनें और भतीजियां इस संग्रह में शामिल हैं, जिन्हें विवाह से पहले और बाद में बोझ समझा गया। इनकी ज़िंदगी के सुख और दुख मायके से जुड़े हुए हैं, और इन्हें मायके से बुलावे का इंतजार रहता है। ‘किसी भी उम्र में लौटी लड़कियां आफ़त-विपत की तरह ही क्यों लगीं’ जैसी कविताओं में पाठक ने महिलाओं के शरीर के ऊपर समाज द्वारा की गई उपेक्षा और प्यार की कमी को उजागर किया है। कविताएं नदियों को आंख से साधने और पहाड़ को पीठ से बांधने का वर्णन करती हैं, जो इनकी असीम सहनशीलता को दर्शाता है।
पुरुषों के दोहरे व्यक्तित्व पर कटाक्ष करते हुए वे लिखती हैं, ‘आप चाहते हैं प्रेमिका को जार्जेट वाली साड़ी गिफ्ट करना/ और बारिश में उसे भीगते हुए देखना/ इन प्रेमियों को पत्नियां भीगी हुई कभी नहीं भाई।’ यह पंक्तियां समाज के भेदभाव और महिलाओं के प्रति असमान रवैये को स्पष्ट करती हैं। शैलजा पाठक का यह काव्य संग्रह आधुनिक लड़कियों की बेबाक छवि प्रस्तुत करता है। इन कविताओं में वर्णित नारियां हमारे आस-पास की हैं, जिन्होंने समाज की वर्जनाओं को ठेंगा दिखाकर जीवन को अपनी शर्तों पर जीने की हिमाकत की है।
पुस्तक : कमाल की औरतें कवयित्री : शैलजा पाठक प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 250.