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तिरस्कार से ताकत

07:59 AM Sep 29, 2024 IST
तिरस्कार से ताकत
चित्रांकन : संदीप जोशी
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अनन्त शर्मा ‘अनन्त’

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वह खिड़की वाली सीट पर बैठी थी। उसकी नज़रें बाहर अंधेरे पर थीं। टिकट चेकर के आते ही उसने अपना आधार कार्ड दिखाया, ऑफिसर के हाथ से आधार कार्ड नीचे गिर गया। जैसे ही उसकी नज़र आधार कार्ड पर गई तो वह चौंक गया, क्योंकि उस पर लिखा नाम उसके अतीत से जुड़ा था।
मालती... मालती उसके दिमाग में हथोड़े की तरह लगा। अतीत के जिस इतिहास से वह पीछा छुड़ाना चाहता था, वह अतीत विकराल रूप धारण किए उसके सामने खड़ा था। वह सोचने लगा। ‘क्या यह वही मालती है, जिसके तार युवा अवस्था में उसके साथ जुड़े थे।’ उसने एक उड़ती-उड़ती नज़र मालती पर डाली। बीते हुए समय की ढेर सारी परतें उसके चेहरे पर थीं और उसका चेहरा बता रहा था कि संघर्ष ने उसके चेहरे को और भी परिपक्व बना दिया है। राजेश का मन हुआ कि वह चीख-चीख कर उससे पूछे कि क्यों चली आई, उसकी ज़िंदगी से? वह उससे पूछना चाहता था-
‘देखो-देखो क्या शाप लगा है तुम्हारा! करोड़पति का बेटा होते हुए भी नौकरी कर रहा हूं।’ परंतु ट्रेन में काफी यात्री थे और उसे सभी यात्रियों की टिकटें चेक करनी थीं। वह मालती की टिकट चेक करता हुआ आगे बढ़ गया।
आज तीस साल बाद वह मिली थी। अपने मां-बाप के मरने के बाद वह रेलवे में क्लर्क के रूप में चयनित हुआ था और आज वह ऑफिसर बन गया था। आंखों-आंखों में उसने उसे पहचाना तो सही, परंतु ढेर सारे यात्रियों के बीच उसकी कोई बातचीत नहीं हुई। वह उसे पूछना चाहता था कि वह क्या कर रही है? उसकी मां का क्या हुआ? परंतु वह कुछ न कह सका। उसने सोचा ‘धरती गोल है और कहीं न कहीं मुलाक़ात हो ही जाती है।’
***
राजेश के पिता करोड़पति थे। बड़ा लंबा-चौड़ा बिज़नेस था उनका। उनका बिज़नेस दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा था।
राजेश बड़ा मस्त लड़का था। हमेशा लड़कियों से घिरा रहता। लड़कियां शहद की मधुमक्खियों की तरह चिपकी रहतीं। परंतु वह उन चंचल लड़कियों को कोई भाव न देता।
इन्हीं दिनों उसके कॉलेज में भाषण प्रतियोगिता थी। राजेश को गरीबी के विषय में बोलना था। राजेश ने बहुत धुआंधार भाषण दिया। राजेश ने जैसे ही बोलना आरंभ किया ‘गरीब-अमीर आदमी को इस समाज ने बनाया है। आदमी जब पैदा होता है तो वह अमीर-गरीब नहीं होता। वह केवल मासूम बच्चा होता है। अमीर-गरीब, हिन्दू-मुसलमान, यह सब समाज उसे बनाता है।
तालियों की गड़गड़ाहट में सबसे ज्यादा तालियां मालती ने बजाई थीं। बजाती भी क्यों न? उसके दिल के तार जो राजेश ने छेड़ दिए थे।
मालती भी उसी कॉलेज में पढ़ती थी, जहां राजेश पढ़ता था। मालती राजेश के पड़ोस में रहती थी। मालती एक गरीब मां की बेटी थी। बाप गुज़र चुका था। पड़ोस में होने के कारण वह कभी-कभार राजेश से मिलने जाती। उसकी मां बर्तन मांज कर गुज़ारा करती और लड़की को पढ़ाती। राजेश के मां-बाप भी उसकी मदद करते।
मालती और राजेश दोनों यौवन की उस उम्र में थे जहां हार्मोन्स बड़ी तेजी से बदलते हैं। वह खिलंदड़ी उम्र चांद में प्रेमी-प्रेमिका को देखता। राजेश भी टिपिकल अमीरों की तरह नहीं था। कॉलेज में शे’रो-शायरी करना, लेनिन और मार्क्स पर धुआंधार भाषण देना। उसका कहना कि मैं अमीरी-गरीबी को नहीं मानता। मैं एक समाजवादी सोच का हूं। मार्क्स-लेनिन की तरह विचार हैं मेरे। वह छात्र संघ की यूनियन का प्रधान भी था। जब भी कोई नया टीचर स्टूडेंट को तंग करता था तो वह खड़ा हो जाता। कहता- ‘सारे संसार के मजदूरों एक हो जाओ।’
जब मालती यह सब सुनती तो उसे लगता कि वह राजेश के सीने से लग जाए। वह सोचती उसके विचार भी राजेश जैसे हैं। कितना अच्छा रहेगा, जब दो विचारों वाले एक साथ मिल जाएंगे।
***
उसकी मां ने देखा कि वह राजेश के प्रति आकर्षित है। उसके प्यार में पागल है, तो वह बुरी तरह से भड़की थी। बोली ‘क्या देख रही हूं? राजेश से प्यार करने लगी हो तुम। अरे बेवकूफ, अपनी औकात में रह, झोपड़ियों में रहकर महलों के सपने देखने लगी हो तुम।’
राजेश को याद आया कि उसकी मां ने उसे कहा था, ‘मालती तुम्हारे प्यार में अंधी हो चुकी है। पर मैं जानती हूं यह प्यार नहीं है। महज आकर्षण है, बेटा तू ही कुछ कर। यह दोनों परिवारों के लिए ठीक नहीं।’
मां के बोल नश्तर की तरह उसे चुभने लगे थे। मां बोली थी- ‘तू जानती है न राजेश के घर मैं काम करती हूं। क्या वे एक कामवाली की लड़की को सिंहासन पर बैठायेंगे?’
‘बैठाएंगे मां, जरूर बैठाएंगे। राजेश ऐसा लड़का नहीं। वह बड़ा सुलझा हुआ आदमी है। वह मार्क्स और लेनिन की बात करता है। वह समाजवाद की बात करता है। मां, वह मजदूरों का मसीहा है। वह नारे लगाता है, ‘सारे संसार के मजदूरों एक हो जाओ’। उसकी विचारधारा क्रांतिकारी है।’
राजेश को याद आ रहा था। जैसे वह कल की बात हो। मालती आई थी उसके पास और वह बोली थी, ‘राजेश तुम्हारी विचारधारा बड़ी क्रांतिकारी है। मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं। तुमसे शादी करना चाहती हूं।’
वह कह तो गई परंतु उसे ऐसे लगने लगा था जैसे तेज धूप में वह मीलों चली हो। उसने देखा कि उसका सीना ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। शादी का नाम सुनकर उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं।
‘शादी...शादी...शादी!’ राजेश को एक हज़ार वोल्टेज का करंट लगा।
राजेश को सब याद आ रहा था। बोला, ‘मालती दाद देता हूं तुम्हारी। तुमसे मैं सहानुभूति करता हूं और तुम इसे प्यार समझने लगी हो। अरे, तुम्हारी जैसी लड़कियां तो हमारे लिए टाइम पास होती हैं।’
राजेश को अभी तक याद है उसकी बातें। उसकी आंखें लाल हो गई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आंखों से खून टपक रहा हो।
राजेश को यह सब याद आने पर बड़ी पीड़ा का अनुभव हो रहा था। पिक्चर की तरह सब बातें साफ हो गई थीं।
मालती गुस्से से बोली, ‘क्या समाजवाद की बातें, लेनिन और मार्क्स की बातें, सब दिखावा है? सारे संसार के मजदूरों एक हो जाओ- क्या यह नारा बोलकर तुम मजदूरों से धोखा कर रहे हो। राजेश! तुम और तुम्हारा समाजवाद सब ढकोसला है, और कुछ नहीं। तुमने एक औरत का दिल दुखाया है, उसे अपमानित किया है। तुम कभी खुश नहीं रहोगे। यह एक औरत का शाप है।’
अपमान और दु:ख से उसकी आंखें उबल रही थीं। वह बोली, ‘औरत पैर की जूती नहीं है। तुम समझते हो तुमने मेरा अपमान किया है। मैं इस अपमान को अपनी ताकत बनाऊंगी।’
***
इतना सोचते-सोचते राजेश का सिर भारी हो गया। मालती उसके बाद कहां गई, उसे कुछ पता नहीं। आज वह मिली है और वह भी ट्रेन में। वह टिकट चेकिंग छोड़कर घर चला आया। उसने शराब का एक पेग बनाया और पीने लगा।
मालती का शाप खूब फला था। उसके बाप की सारी संपत्ति जल चुकी थी। उन पर लोगों का उधार बहुत चढ़ गया था। एक दिन उसके बाप ने भी आत्महत्या कर ली। मां भी कुछ दिनों बाद चल बसी।
ये बातें याद करके वह अत्यंत उदास हो गया। शराब का पेग गटक गया। यह तो शुक्र था कि उसने रेलवे में अप्लाई किया था। उसको नौकरी मिल गई। और आज तीस साल बाद वह अफसर के पद पर है।
कितनी मुश्किलों के बाद उसको नौकरी मिली थी पर यहां भी वह एडजस्ट नहीं कर पाया। करोड़पति का लड़का एक अदनी-सी नौकरी करे, वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और उसकी लड़ाइयां अधिकारियों के साथ होती रहीं। और उस पर विभागीय कार्यवाही होती रही।
उस पर दो-तीन विभागीय कार्यवाहियां चल रही थीं। अगले साल उसकी रिटायरमेंट थी। उसे पक्का यकीन था कि अगर उस पर चल रही विभागीय कार्यवाहियांं खत्म नहीं हुईं तो उसकी पेंशन बंद हो सकती है। अब केवल रेलवे निदेशक ही उसकी विभागीय कार्यवाहियां ठीक कर सकते थे। रेलवे निदेशक कोई मैडम है, सुना है बड़ी सख्त है। उसे जाना ही होगा मैडम के पास, नहीं तो उसकी पेंशन भी बंद हो सकती है। मालती प्रकरण वह भूल चुका था और निदेशक के पास जाने की तैयारियां करने लगा।
दो-तीन दिन बाद जब वह रेलवे हैड ऑफिस पहुंचा और निदेशक के कमरे के पास खड़ा हुआ था, निदेशक के कमरे के बाहर उसने मालती, आईआरएस की नेमप्लेट देखी तो वह एकाएक बहुत हैरान हुआ। डरते-डरते उसने अपने नाम की पर्ची भेजी। मैडम ने उसे तुरंत बुला लिया।
अंदर जाकर उसने देखा कि ट्रेन में बैठी हुई मालती ही अंदर थी।
‘आओ राजेश! कैसे आना हुआ?’ मैडम के मुंह से अपना नाम सुनकर वह आश्चर्यचकित रह गया।
‘मैडम! आप ने मुझे पहचाना?’
तो वह बोली, ‘इतना अपमान, इतनी बेइज्जती कैसे भूल सकती हूं?
राजेश ने मैडम को सारी कहानी सुना दी।
मैडम ने कहा, ‘राजेश! जब मनचाहा नहीं मिलता तो आदमी परेशान हो जाता है। सोचता है ऐसे मेरे साथ क्याें हो गया। उसे पता नहीं होता कि भगवान एक दरवाजा बंद करता है तो सौ दरवाजे उसके लिए खुल जाते हैं। जब तुमने मेरा अपमान किया तो मैं भी कायरों की तरह आत्महत्या कर सकती थी। मैं दस दिन तक सो नहीं सकी थी। फिर मैंने अपमान को अपनी ताकत बनाया और आईएएस का पेपर दिया। नतीजा तुम्हारे सामने है।’
मैडम ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि राजेश को सभी विभागीय कार्यवाहियों से मुक्त कर दिया जाए।
आसमान में बादल उमड़-घुमड़ कर शोर कर रहे थे। बूंदाबांदी भी होने लगी थी। उसे लगने लगा जैसे आसमान भी खुशियां बरसा रहा हो। मैडम से मिल कर वह अत्यंत हल्का हो गया था और हवा में उड़ रहा था।

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