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रुपये की मजबूती को रणनीतिक पहल जरूरी

11:38 AM Aug 12, 2022 IST

यकीनन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान युद्ध और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच इस समय डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट दिखाई दे रही है। 8 अगस्त को एक डॉलर की कीमत 79.65 के स्तर पर पहुंच गई है। साथ ही रुपये में और नरमी की आशंकाएं हैं। इससे जहां भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं आर्थिक विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इतना ही नहीं, असहनीय महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं और बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं।

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वस्तुतः डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है। वर्ष 2022 की शुरुआत से ही संस्थागत विदेशी निवेशक (एफआईआई) बड़ी संख्या में भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ाई जा रही हैं। दुनिया के कई विकसित देशों द्वारा भी ब्याज दरें तेजी से बढ़ाई जा रही हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी 4 अगस्त को 27 साल बाद सबसे अधिक ब्याज दर बढ़ाई है। ऐसे में भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने के इच्छुक निवेशक अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह अमेरिका व विकसित देशों में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं। यद्यपि जनवरी से जुलाई 2022 के बीच एफआईआई ने भारत के शेयर बाजार से करीब 30 अरब डॉलर खींच लिए, लेकिन अगस्त 2022 की शुरुआत में एफआईआई फिर से सतर्कतापूर्वक वापसी करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

गौरतलब है कि अभी भी दुनिया में डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा है। दुनिया का करीब 85 फीसदी व्यापार डॉलर की मदद से होता है। साथ ही दुनिया के 39 फीसदी कर्ज डॉलर में दिए जाते हैं। इसके अलावा कुल डॉलर का करीब 65 फीसदी उपयोग अमेरिका के बाहर होता है। चूंकि भारत अपनी क्रूड आॅयल की करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए व्यापक रूप से आयात पर निर्भर है, ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज़ की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से भारत को अधिक डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही देश में कोयला, उर्वरक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, केमिकल्स आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में डॉलर की जरूरत और ज्यादा बढ़ गई है। स्थिति यह है कि भारत जितना निर्यात करता है, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करता है। इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है। एसबीआई की इको रैप रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2022-23 के अप्रैल से जुलाई के चार महीनों में भारत का व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।

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नि:संदेह डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया अत्यधिक कमजोर हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद लोकसभा में यह माना है कि दिसंबर 2014 से अब तक देश की मुद्रा 25 प्रतिशत तक गिर चुकी है। इस वर्ष 2022 में पिछले सात महीनों में ही रुपये में करीब सात फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है। लेकिन फिर भी अन्य कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपये की स्थिति बेहतर है। रुपया ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी कई विदेशी मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। भारतीय रुपये की संतोषप्रद स्थिति का कारण भारत में राजनीतिक स्थिरता, भारत से बढ़ते हुए निर्यात, संतोषप्रद विकास दर, भरपूर खाद्यान्न भंडार और संतोषप्रद उपभोक्ता मांग भी है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था बुनियादी तौर पर मजबूत बनी हुई है।

नि:संदेह कमजोर होते रुपये की स्थिति से सरकार और रिजर्व बैंक दोनों चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 22 जुलाई को कहा कि उभरते बाजारों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में रुपया अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। लेकिन फिर भी रिजर्व बैंक ने रुपये में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने के लिए यथोचित कदम उठाए हैं और आरबीआई द्वारा उठाए गए ऐसे कदमों से रुपये की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है। आरबीआई ने कहा है कि अब वह रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा। आरबीआई का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग रुपये की गिरावट को थामने में किया जाएगा। 22 जुलाई को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 571 अरब डॉलर रह गया है। अब आरबीआई ने विदेशों से विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपये में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने और कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है। ऐसे उपायों से एफआईआई पर अनुकूल असर पड़ा है और उनकी कुछ-कुछ वापसी भी देखी जा रही है।

यकीनन इस समय रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए और अधिक उपायों की जरूरत है। इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के रणनीतिक उपाय जरूरी हैं। अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को मुठ्ठियों में लेना होगा। हाल ही में 11 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय से जहां भारतीय निर्यातकों और आयातकों को अब व्यापार के लिए डाॅलर की अनिवार्यता नहीं रहेगी। वहीं अब दुनिया का कोई भी देश भारत से सीधे बिना अमेरिकी डाॅलर के व्यापार कर सकता है। जहां डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान सहित एशिया और अफ्रीका के कई छोटे-छोटे देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार तेजी से बढ़ेगा, वहीं भारतीय रुपया मजबूत होगा, भारत का व्यापार घाटा कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा।

निश्चित रूप से आरबीआई के इस कदम से भारतीय रुपये को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार करवाने की दिशा में मदद मिलेगी। जिस तरह चीन और रूस जैसे देशों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने की दिशा में सफल कदम बढ़ाए हैं, उसी तरह अब आरबीआई के निर्णय से भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के कारण रुपये को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है। इस समय जब दुनिया रूस और अमेरिकी-यूरोपीय कैम्प में बंटती हुई दिखाई दे रही है, तब भारत को अपनी वैश्विक स्वीकार्यता के मद्देनजर दोनों ही कैम्पों के विभिन्न देशों में विदेश व्यापार बढ़ाने की संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेना होगा।

हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा उठाए जा रहे नए रणनीतिक कदमों से जहां प्रवासी भारतीयों से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी, वहीं उत्पाद निर्यात और सेवा निर्यात बढ़ने से भी अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी और इन सबके कारण डॉलर की तुलना में एक बार फिर रुपया संतोषजनक स्थिति में पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगा। इससे देश की आर्थिक मुश्किलें कम होंगी एवं लोगों की महंगाई की पीड़ा भी कम होगी।

लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।

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