कविता के माध्यम से आत्मिक खोज
डॉ. जयभगवान शर्मा ‘हारित’
साहित्यकार सत्यप्रकाश भारद्वाज का लघुकविता संग्रह ‘सिर्फ एक कदम’ सामाजिक, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक महिमा पर एक गहन और विचारशील विश्लेषण प्रस्तुत करता है। प्रायः मानव अपने आत्मिक स्वरूप से विमुख होता जा रहा है। व्यर्थ के संकल्पों, रूढ़िगत धारणाओं और समाज में व्याप्त विद्रूपताओं के भंवर में फंसकर चक्रवत् घूम रहा है और इस निमज्जन से पार पाने का असफल प्रयास कर रहा है। वह किंकर्तव्यविमूढ़-सा इसी ऊहापोह में उलझकर यह भूल जाता है कि परमात्मा और प्रकृति का सान्निध्य, दया, धर्मादि उदात्त मूल्यों का अवलम्बन पाकर ही सांसारिक विकारों से मुक्ति पा सकता है—ऐसा कवि भारद्वाज का भी मानना है।
उनके काव्य का मूल स्वर धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक है जो सम्पूर्ण काव्य संग्रह में सहज रूप से प्रस्फुटित होता है। निःसंदेह, काव्य का स्फुरण नैसर्गिक होता है और वह अन्यान्य मनोभावों, अनुभवों से होता हुआ संचारित होता है—कभी धर्म, कभी अध्यात्म के व्याज से, तो कभी चारित्र्यिक धरातल पर—‘चरित्र का इत्र/ करता है सुगंधित/ जीवन को/ जो महकाता है इसे/ उम्र भर के लिए।’
कवि ने निन्दा, राग-द्वेष, ईर्ष्या आदि को सुखमय जीवन पथ में बाधक बतलाया है—‘निन्दा-चुगली/ ईर्ष्या-द्वेष/ लालसा-कामना/ विषय विकार/ हैं गतिरोधक।’
संग्रह की कविताओं ‘मद-मस्त’, ‘शंखनाद’ में जहां अध्यात्म का प्रतिष्ठापन है, वहीं ‘राह प्रशस्त’, ‘सिर्फ एक कदम’, ‘अनुकम्पा’, ‘जगमगा रहीं आत्माएं’ में कवि ने परमात्मा का स्मरण किया है तथा ‘समाधि लगाइए’, ‘पाइए पार’, ‘माला’ आदि में समाधि के महात्म्य का स्वर मुखरित हुआ है। इसके अतिरिक्त परमात्मा से साक्षात्कार के हेतु ज्ञान को ‘श्रद्धा की नाव’, ‘ज्ञान का सूर्य’ आदि लघुकविताओं में प्रतिपादित किया गया है।
समग्रतः विवेच्य संग्रह समाज में व्याप्त विसंगतियों को भी सुधारात्मक रूप में सशक्त ढंग से प्रस्तुत करता है। अधिकांश लघुकविताएं आध्यात्मिक फलक पर उत्कीर्ण-सी प्रतीत होती हैं और हृदय-तंत्रियों को स्पंदित करने वाली व प्रेरक हैं। संग्रह की कविताओं में भाषा, सरलता, सौष्ठव, बिम्ब, छंद आदि विविध कलापक्षीय उपादानों के माध्यम से कवि सत्यप्रकाश भारद्वाज का कलागत वैदुष्य स्पष्ट झलकता है।
पुस्तक : सिर्फ़ एक कदम कवि : सत्यप्रकाश भारद्वाज प्रकाशक : विपिन पब्लिकेशन, रोहतक पृष्ठ : 116 मूल्य : रु. 250.