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अंतरिक्ष से सीधे पृथ्वी पर पहुंचेगी सौर ऊर्जा

07:31 AM Aug 01, 2023 IST

 

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मुकुल व्यास

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दुनिया में ऊर्जा के नए स्रोतों की तलाश करते हुए हमारा मुख्य फोकस सौर ऊर्जा पर है। लेकिन पृथ्वी पर सौर ऊर्जा का अपेक्षित स्तर पर उत्पादन नहीं हो पा रहा है। अंतरिक्ष से भी सौर ऊर्जा समुचित मात्रा में पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाती। अनुमान है कि सौर ऊर्जा का केवल 48 प्रतिशत ही पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाता है। ऊर्जा का शेष भाग पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों और धूल द्वारा अवशोषित किए जाने के कारण बाधित होता है। पृथ्वी का वायुमंडल भी सूर्य की 23 प्रतिशत किरणों को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देता है। इसलिए पृथ्वी पर इसका उपयोग करने के प्रयासों में बहुत सारी ऊर्जा बर्बाद हो रही है। सौर ऊर्जा को हासिल करने का सबसे टिकाऊ तरीका अंतरिक्ष से सीधे पृथ्वी को बिजली संप्रेषित करने का है।
दरअसल, सौर ऊर्जा को पृथ्वी पर भेजने की पूरी प्रक्रिया बेहद महंगी है। इसके बावजूद यह सूर्य की अनंत ऊर्जा तक हमारी सीधी पहुंच को सुनिश्चित करती है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि अंतरिक्ष का वातावरण पृथ्वी की तरह सौर विकिरण को अवशोषित नहीं करता या बिखेरता नहीं है। इससे फोटोवोल्टिक सेलों को बादलों द्वारा बाधित हुए बिना अंतरिक्ष में अधिक ऊर्जा एकत्र करने का अवसर मिलता है। अंतरिक्ष आधारित ऊर्जा का दूसरा लाभ यह है कि ऊर्जा का उपयोग दिन के 24 घंटे और सप्ताह के सातों दिन किया जा सकता है। रात से बचने के लिए सौर ऊर्जा उपग्रहों को उचित कक्षा में स्थापित करके इसे पूरा किया जा सकता है। अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा को व्यावहारिक बनाने के रास्ते में कई इंजीनियरिंग चुनौतियां हैं जैसे अंतरिक्ष में बड़े पैमाने पर सौर पैनलों के बुनियादी ढांचे को तैनात करना, जो एक कठिन कार्य है। इसके साथ ही लंबे समय तक सौर ऊर्जा का उचित उपयोग करने के लिए इसके संचालन को बनाए रखने की चुनौती भी आती है।
सौर ऊर्जा सबसे तेजी से विकसित हो रही अक्षय ऊर्जा है। इस समय वैश्विक बिजली उत्पादन में 3.6 प्रतिशत हिस्सा सौर ऊर्जा का है। इस तरह यह नवीकरणीय ऊर्जा बाजार का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। इसके बाद जलविद्युत और पवन ऊर्जा का स्थान आता है। आने वाले दशकों में इन तीन विधियों के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। इनसे विद्युत उत्पादन 2035 तक 40 प्रतिशत और 2050 तक 45 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। हालांकि ऊर्जा क्षेत्र में इस परिवर्तन के लिए कई तकनीकी चुनौतियों और मुद्दों से निपटने की आवश्यकता है। सौर ऊर्जा के साथ सबसे बड़ी दिक्कत उसकी अनियमितता है। पर्याप्त धूप उपलब्ध होने पर ही ऊर्जा एकत्र की जा सकती है।
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा पर शोध करने में कई दशक बिताए हैं। वे पृथ्वी की कक्षा में ऐसे उपग्रह स्थापित करना चाहते हैं जो दिन में 24 घंटे और साल में 365 दिन बिना किसी रुकावट के ऊर्जा एकत्र करेंगे। इस प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैल्टेक) में स्पेस सोलर पावर प्रोजेक्ट (एसएसपीपी) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में अंतरिक्ष से पृथ्वी तक पहला सफल वायरलेस पावर ट्रांसफर पूरा किया। यह पावर ट्रांसफर मैपल के जरिए किया गया।
मैपल दरअसल पृथ्वी की निम्न कक्षा से ऊर्जा हस्तांतरण के लिए बनाया गया एक प्रायोगिक प्लेटफॉर्म है जिसमें माइक्रोवेव का प्रयोग किया जाता है। मैपल का विकास अली हाजिमिरी के नेतृत्व में कैल्टेक की टीम ने किया है। मैपल प्लेटफ़ॉर्म में इलेक्ट्रॉनिक चिप्स द्वारा नियंत्रित लचीले और हल्के माइक्रोवेव ट्रांसमीटरों की एक सारणी होती है। इस तकनीक प्रदर्शक अथवा डेमोंस्ट्रेटर को कम लागत वाली सिलिकॉन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके बनाया गया। इसे सौर ऊर्जा को एकत्र करके उसे दुनियाभर के स्टेशनों पर भेजने के लिए डिजाइन किया गया है।
अंतरिक्ष सौर ऊर्जा परियोजना की शुरुआत 2011 में हुई थी। इस परियोजना के पहले डेमोंस्ट्रेटर को इस साल 3 जनवरी को एक स्पेस एक्स फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लांच किया गया था। अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा तभी व्यावहारिक हो सकती है जब इसके लिए प्रयुक्त उपग्रह हल्के और लचीले हों और ऐसे उपग्रहों को कम लागत पर प्रक्षेपित किया जाए। हल्के ढांचे का उपयोग करके अंतरिक्ष से वायरलेस पावर ट्रांसफर का सफल प्रदर्शन अंतरिक्ष सौर ऊर्जा की व्यावहारिकता और विश्व स्तर पर इसकी व्यापक पहुंच की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वैसे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को बिजली देने के लिए अंतरिक्ष में पहले से ही सौर पैनल का उपयोग किया जाता है, लेकिन पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करने के लिए माइक्रोवेव ट्रांसमीटरों को तैनात करने के लिए अंतरिक्ष सौर ऊर्जा परियोजना को ऐसी ऊर्जा हस्तांतरण प्रणालियों को विकसित करना पड़ेगा जो बहुत हल्की, सस्ती और लचीली हों। अंतरिक्ष सौर ऊर्जा परियोजना की प्रत्येक इकाई का वजन लगभग 50 किलोग्राम है। इसकी तुलना में छोटे उपग्रहों का वजन आमतौर पर 10 से 100 किलोग्राम के बीच होता है। प्रत्येक इकाई एक पैकेज में मोड़ी जा सकती है जो बाद में एक समतल वर्ग में फैल जाती है, जिसमें एक तरफ सौर सेल और दूसरी तरफ वायरलेस पावर ट्रांसमीटर होते हैं। यह प्रयोग यह दर्शाने में कामयाब रहा कि अंतरिक्ष में छोड़े जाने के बाद पावर ट्रांसमीटर ठीकठाक काम करते रहेंगे।
अंतरिक्ष से सौर ऊर्जा को पृथ्वी तक भेजने के लिए एयरबस ने भी सितंबर, 2022 में एक प्रयोग किया था। यह एक छोटे पैमाने का प्रयोग था लेकिन यह बताने में काफी सफल रहा कि यह तकनीक स्वच्छ ऊर्जा का भविष्य हो सकती है। यह प्रयोग जर्मनी में एयरबस की एक्स-वर्क्स इनोवेशन फैक्टरी में हुआ। इस प्रयोग में वायरलेस ट्रांसमिशन सिस्टम 118 फीट की दूरी तक स्वच्छ ऊर्जा संप्रेषित करने में कामयाब रहा। संप्रेषित ऊर्जा का उपयोग हाइड्रोजन जनरेटर और फ्रिज को बिजली देने के साथ-साथ एक मॉडल शहर को रोशन करने के लिए किया गया था। टीम के इंजीनियरों को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इसका विस्तार किया जाएगा और लंबी दूरी तक इसका परीक्षण किया जाएगा। प्रयोग के सफल रहने पर अंततः अंतरिक्ष से ऊर्जा सीधे पृथ्वी पर संप्रेषित की जा सकेगी।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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