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वायु स्वच्छता के प्रति समाज भी निभाए दायित्व

06:30 AM Nov 10, 2023 IST

पंकज चतुर्वेदी

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दिल्ली की सीमा से लगे यूपी के गाज़ियाबाद जिले के सरकारी अस्पतालों में बीते एक हफ्ते के दौरान समय-पूर्व प्रसव के 39 मामले आये। प्रसूता को ऑक्सीजन की कमी इसका मूल कारण हैं। आखिर हो भी क्यों न! गाज़ियाबाद से सटे आनंद विहार में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूअाई 900 पार हो गया है। यदि किसी संवेदनशील देश में यह हालात होते तो वहां तालाबन्दी जैसे हालात हो जाते। कहने को ग्रैप-3 यानी तीसरी स्टेज की ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान लागू कर दी है लेकिन न सड़कों पर जाम खत्म हुआ और न ही स्मॉग की घनी चादर कम हो रही। इस साल भी आतिशबाज़ी पर कड़ाई से पाबंदी लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दे दिया कि दूसरों के जीवन की कीमत पर आतिशबाजी की छूट नहीं दी जा सकती है। लेकिन हालात को जब समाज ही और ज्यादा गंभीर बना दे तो किसकी दुहाई दी जाये? अभी करवा चौथ की रात जब चंद्रमा निकला तो पटाखे आकाश में उछाले जा रहे थे। जाहिर है कि इसका भी असर होना ही था। दिल्ली ही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अस्पताल सांस-अस्थमा के साथ-साथ दिल के रोगियों की अप्रत्याशित संख्या से बेहाल हैं। विडंबना है, इस धीमी मौत को समाज खुद ही आमंत्रित कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद मनोज तिवारी की अर्जी ठुकराते हुए कहा कि जश्न मनाने के दूसरे तरीके ढूंढ़ सकते हैं। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने तिवारी से कहा कि उन्हें अपने समर्थकों से भी कहना चाहिए कि रोशनी और आनंद के पर्व पर पटाखे न चलाएं। अदालत ने साफ कर दिया कि अकेले दिवाली ही नहीं, छठ, गुरुपर्व और नये साल पर भी आतिशबाजी पर पाबंदी रहेगी, यहां तक कि ग्रीन आतिशबाज़ी भी नहीं।
असल में, कानून और अदालत के जरिये आतिशबाजी पर रोक की कोशिशें कई साल से चल रही हैं। अदालतें कड़े आदेश भी देती हैं, सरकारें इश्तिहार निकालती हैं। स्कूली बच्चे पोस्टर-रैली भी निकालते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं जो कुतर्क के साथ और अवैज्ञानिक तरीके से अदालत की अवहेलना करते हैं। यह कड़वा सच है कि पुलिस या प्रशासन के पास न तो इतनी मशीनरी है और न ही इच्छाशक्ति कि हर जगह निगाह रख सके। लेकिन समाज को तो खुद और अपने परिवार की सांसों की परवाह होनी चाहिए।
धार्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बारूद के पटाखे चलाना कभी भी परंपरा का हिस्सा रहा नहीं है। इस साल दिवाली से पहले ही दिल्ली ही नहीं, देश के बड़े हिस्से में ‘स्मॉग’ छा गया है। इस कोहरे मिश्रित धुएं में ज़हरीले कण शामिल होते हैं जो कि भारी होने के कारण ऊपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वाले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जो सांस लेते समय फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं। इससे दमा, सांस ,ब्लड प्रेशर व हार्ट अटैक तक का खतरा मंडराने लगता है।
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर की हवा में ज़हर के हालात देखते हुए इलाके में आतिशबाजी की बिक्री पर रोक लगाई थी। उसके बाद हर साल दिवाली से पहले कभी रोजगार तो कभी परंपरा के नाम पर इस पाबंदी को हटाने की मांग होती है और हर बार कोर्ट का रुख कड़ा होता है।
यह किसी से छुपा नहीं है कि दीपावली की आतिशबाज़ी राजधानी दिल्ली सहित देश के 200 से अधिक महानगरों व शहरों की आबोहवा को जहरीला कर देती है। दिल्ली में तो कई सालों से बाकायदा सरकारी सलाह जारी की जाती है- यदि जरूरी न हो तो घर से न निकलें। फेफड़ों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम अर्थात‍् हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली से पहले ही यह सीमा 900 के पार तक हो गई है। यही हाल देश के अन्य महानगरों, प्रदेशों की राजधानियों व मंझोले शहरों के भी हैं। चूंकि हरियाणा-पंजाब में पराली जल ही रही है, वहीं हर जगह हो रहे अनियोजित निर्माण धूल के कारण हवा को दूषित कर रहे हैं, तिस पर मौसम का मिजाज। यदि ऐसे में आतिशबाज़ी चलती है तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। बता दें कि पटाखे जलाने से निकले धुएं में सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डायआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, शीशा, आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये शरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव पशु-पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निपटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदूषण होता है। इसके कागज वाले हिस्से को रिसाइकिल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। वहीं यदि इसे डंपिंग में पड़ा रहने दिया जाए तो इसके रासायनिक विष-कण मिट्टी व भूजल को जहरीला कर देते हैं।
दीपावली के दिन, लोगों के आपस में मिलने के सौहार्द, सुखद भविष्य की कामना और संपन्नता की आकांक्षा के दमकते दीप की ज्योति होते हैं। इसे जहरीले धुएं से कलुषित कर हम अपना धन, स्वास्थ्य और संबंध तीनों को नुकसान ही पहुंचाते हैं। यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाया बारूद आपकी व आपके परिवेश के लोगों की जेब व सेहत को नुकसान ही करेगा। यह दीपावली की मूल भावना तो नहीं। आतिशबाजी की कुरीति समाज ने खुद ही आमंत्रित की है और अब समय है कि उससे खुद ही मुक्त हो।

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