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साहब पर भारी साहेब

04:00 AM Dec 23, 2024 IST
साहब पर भारी साहेब
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गगन शर्मा

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कभी-कभी पूरी जानकारी न होने से कुछ शब्द भ्रमित कर जाते हैं। ऐसा ही एक शब्द है, साहब। अंग्रेजों द्वारा खुद को आम जनता से अलग दिखलाने की लालसा के कारण एक निर्धारित, सोची-समझी साजिश के तहत इसे गढ़ा गया। समय के साथ-साथ यह भारतीय उच्चाधिकारियों के साथ भी जुड़ता चला गया। अंग्रेजों के जाने के बाद भी भारतीय उच्चाधिकारियों, रसूखदारों, आत्मश्लाघी लोगों ने अपनी अहम-तुष्टि के लिए इसे अपने साथ जोड़े रखा। अब यह सवाल उठता है कि जो शब्द सामाजिक अलगाव के लिए उपयोग किया जाता रहा हो, ऊंच-नीच का भेदभाव दर्शाता हो, उसे हमारे सम्मानित, सामाजिक समरसता के लिए माने जाने वाले देशहित के लिए जीवन समर्पण करने वालों के साथ कैसे जोड़ दिया गया।
जो जानकारियां मिलीं, वे साफ करती हैं कि मूल शब्द ‘साहिब’ अरबी भाषा का है। जिसका अर्थ है, ईश्वर के समकक्ष या भगवान के साथी। इसीलिए इसे देवतुल्य गुरुओं के साथ जोड़ा गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक-दो जगह इस शब्द को श्री राम जी के लिए उपयोग किया है। अन्य धर्मों के धर्म-ग्रंथों में भी इस शब्द का जिक्र पाया जाता है। यह भी अंग्रेजों की कुटिलता की एक बानगी है कि उन्होंने साहिब जिसका अर्थ होता है भगवान के साथी, उसका सरकारीकरण कर उसे साहब कर दिया। जिसका अर्थ होता है सरकार के प्रतिनिधि। धीरे-धीरे यह शब्द ‘साब’ बन गया।
अब रही इसी से मिलते-जुलते तीसरे शब्द ‘साहेब’ की। यह शब्द उन स्वाभिमानी देश-प्रेमियों द्वारा रचा गया जो अंग्रेजों की मानसिकता को समझते थे। उनकी चाल का जवाब उन्हीं की शैली में देने के लिए इसे हथियार बनाया गया। साहब के खिलाफ साहेब की रचना हुई। जहां साहब का अर्थ सरकार का साथी मायने रखता था वहीं साहेब शब्द खुद को आम सर्वहारा जनता का साथी या प्रतिनिधि बताता है। कमाल है कि खुद को साहब कहलवाने का शौक रखने वाले तो हवा हुए पर जिनके नाम के साथ साहेब जुड़ा, वे सदा के लिए अमर हो गए, फिर चाहे वे नाना साहेब पेशवा हों, बाला साहेब देवरस हों, बाला साहेब ठाकरे हों, बाबा साहेब अंबेडकर हों या फिर दादा साहेब फाल्के। सभी को नमन।
साहिब से साहब, साहब से साहेब। बात सिर्फ एक शब्द की मात्रा की हेरा-फेरी की नहीं है बल्कि उसमें रची गई साजिश की है। साहिब के सामने हर नागरिक श्रद्धा से सिर झुकाता है। साहब के सामने मजबूरी में सिर झुकाना पड़ता है। जबकि साहेब के सामने सर झुकाना नहीं पड़ता बल्कि उनके साथ सिर उठाकर खड़े रहने का हक मिलता है।
साभार कुछ अलग सा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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