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हिमालयी क्षेत्र में भूकंपीय सुरक्षा की चुनौती

04:00 AM Jan 09, 2025 IST
हिमालयी क्षेत्र में भूकंपीय सुरक्षा की चुनौती
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तिब्बत में आए भूकंप ने भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में चिंता बढ़ाई है। लंबे समय से इस क्षेत्र में बड़ा भूकंप नहीं आया है। यह स्थिति ‘सेस्मिक गैप’ कहलाती है। भूविज्ञानियों के अनुसार इस गैप के कारण धरती के नीचे बड़ी मात्रा में भूगर्भीय ऊर्जा संचित होना बड़े भूकंप की आशंका बढ़ाता है।

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जयसिंह रावत

नये साल के पहले सप्ताह में तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र में 7 तीव्रता का भूकंप आया, जिसके झटके उत्तर भारत और हिमालयी राज्यों में महसूस हुए। यह भूकंप इन क्षेत्रों के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि हिमालयी राज्य भूकंपीय संवेदनशीलता के लिहाज से जोन पांच और चार में आते हैं, जो सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र माने जाते हैं। भूकंप वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पिछले 100 सालों में इस क्षेत्र में 8 तीव्रता का बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे धरती के अंदर बहुत अधिक भूगर्भीय ऊर्जा जमा हो चुकी है। यह ऊर्जा कभी भी घातकता के साथ निकल सकती है। भूकंप को रोका नहीं जा सकता, लेकिन सतर्कता और जागरूकता से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र की वेबसाइट में 8 जनवरी के दिन सिक्किम में 2.8 से लेकर 4.9 तीव्रता तक के 24 भूकम्पों के रिकार्ड किये जाने का उल्लेख है। 7 जनवरी को भी इतने ही भूकम्प सिक्किम में दर्ज हुए थे। इस साल पहली जनवरी से लेकर 8 जनवरी तक मणिपुर, हिमाचल प्रदेश के डोडा, मध्य प्रदेश के सिंगरौली और गुजरात के कच्छ आदि में दर्जनों भूचाल दर्ज हुए। लोकसभा में 6 दिसम्बर, 2023 को पृथ्वी विज्ञान मंत्री द्वारा दिये गये एक वक्तव्य के अनुसार उत्तर भारत और नेपाल में आने वाले भूकम्पों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण पश्चिमी नेपाल में अल्मोड़ा फॉल्ट का सक्रिय होना है। वैज्ञानिक पहले ही एमसीटी जैसे भ्रंशों के आसपास खतरे की चेतावनी देते रहते हैं।
भारत का हिमालयी क्षेत्र अपनी भूगर्भीय रचना के कारण सदैव भूकंप से अत्यधिक प्रभावित रहा है। हिमालयी क्षेत्र भौतिक दृष्टि से पृथ्वी की सबसे संवेदनशील जगहों में से एक है। हिमालय को सबसे युवा और नाजुक पहाड़ माना जाता है। यह क्षेत्र यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच स्थित है, जहां दोनों प्लेटें एक-दूसरे से टकराती हैं। यह टक्कर ही भूकंप के मुख्य कारणों में से एक है। भूगर्भीय इतिहास के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप मूल रूप से एक द्वीप था जो लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले एशिया के साथ टकराया और इस प्रक्रिया में हिमालय का निर्माण हुआ। इस टक्कर के कारण पृथ्वी की सतह पर तीव्र दबाव और तनाव उत्पन्न हुआ, जो अब भी भूकंप का कारण बनता है। भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों की टक्कर निरंतर जारी है, परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में भूगर्भीय ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो अचानक भूकंप के रूप में पृथ्वी की सतह को हिलाती है। हिमालयी क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है, जहां भूमि की संरचना में लगातार परिवर्तन हो रहा है। भूकंप के झटके इन पहाड़ों की संरचना में उथल-पुथल पैदा करते हैं। पहाड़ी इलाकों में खनन, जलविद्युत परियोजनाएं और अन्य निर्माण गतिविधियां भी भूकंपीय गतिविधियों को उत्तेजित कर सकती हैं। इन गतिविधियों से भूमि के भीतर दबाव बढ़ता है, जिससे भूकंप के झटके महसूस हो सकते हैं।
उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में पिछले लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से कोई बड़ा भूकंप (8.0 तीव्रता का) नहीं आया है। हिमालय क्षेत्र में आखिरी बार 8.0 तीव्रता का बड़ा भूकंप 1934 (नेपाल-बिहार भूकंप) और 1950 (असम भूकंप) में आया था। यह स्थिति ‘सेस्मिक गैप’ कहलाती है। भूविज्ञानियों के अनुसार इस गैप के कारण बड़ी मात्रा में भूगर्भीय ऊर्जा संचित हो रही है। इस ऊर्जा के लंबे समय तक रिलीज न होने से भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना बढ़ गयी है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो 1803 में गढ़वाल में भूकंप आया था, जिसकी तीव्रता 7.5 से अधिक थी और इसने व्यापक तबाही मचाई थी। उसके बाद भयंकर अकाल पड़ा। इसके बाद 1905 में कांगड़ा भूकंप आया जिसकी तीव्रता 7.8 थी, उसने भी हिमालय क्षेत्र में बड़ी तबाही मचाई। सन‍् 1950 के असम-तिब्बत भूकंप की तीव्रता 8.6 थी। यह हिमालय में दर्ज सबसे बड़ा भूकंप था, लेकिन उत्तराखंड इससे बचा रहा। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र लगभग 100 वर्षों से बड़े भूकंप से अछूते हैं, जिससे वैज्ञानिक मानते हैं कि इस ‘सेस्मिक गैप’ के कारण इतनी भूगर्भीय ऊर्जा संचित हो चुकी है कि जो एक साथ बाहर निकल गयी तो विध्वंसकारी हो सकती है। फलत:, भूकंप-रोधी तकनीकों का उपयोग और आपदा प्रबंधन की तैयारियां अत्यंत आवश्यक हैं।
भारत सरकार ने ‘भारतीय मानक 1893’ जैसे निर्माण मानकों को लागू किया है, जो भूकंप-रोधी संरचनाओं के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा विभिन्न वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से कुछ भूकंपीय गतिविधियों का पूर्वानुमान किया जा सकता है। इसके लिए उपग्रहों और अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। भारत में भूकंपीय नेटवर्क को मजबूत करना और इससे जुड़ी चेतावनी प्रणालियों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। भूकंप की स्थिति में नागरिकों को किस तरह से प्रतिक्रिया करनी चाहिए, यह जानना अत्यधिक आवश्यक है। स्कूलों, कार्यालयों और समुदायों में भूकंप सुरक्षा को लेकर नियमित प्रशिक्षण और अभ्यास आयोजित करना चाहिए। इसके अलावा, भूकंप-रोधी किट्स जैसे पानी, भोजन, प्राथमिक चिकित्सा सामग्री और अन्य जरूरी सामान को तैयार रखना चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की मजबूती को बढ़ाना चाहिए, ताकि भूकंप के दौरान इनका गिरना या क्षतिग्रस्त होना कम हो। साथ ही, पुराने ढांचों की मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूरी है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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