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झींगा मछली पालन का करीब तीन हजार एकड़ तक विस्तार

06:35 AM Sep 30, 2023 IST

रोहतक, 29 सितंबर (निस)
मछली पालन करने वाले किसानों के लिए खुश खबरी है। हरियाणा सहित चार राज्यों में खारे पानी में झींगा मछली उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि देश के अंतर्देशीय राज्यों में भूजल के लवणीकरण ने बड़े प्रतिकूल आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिणाम दिए हैं, जिससे मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 8.62 मिलियन हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है। भूजल के खारे पानी को जलीय कृषि प्रथाओं के माध्यम से आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकता है, जिसमें जल का एक बड़ा हिस्सा जलकृषि तालाबों से वाष्पित किया जा सकता है और आय पैदा करने वाली मछली, झींगा पैदा करने में उपयोग किया जा सकता है। शुक्रवार को केन्द्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी ने गांव लाहली स्थित क्षेत्रीय केंद्र आईसीएआर-केंद्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान (सीआईएफ़ई) में झींगा फार्म का दौरा किया। उन्होंने खारे पानी में झींगा मछली पालने वाले किसानों के सामने आने वाली जमीनी स्तर की जानकारी ली। केंद्रीय सचिव ने चयनित किसानों को एनएएचईपी योजना के तहत केंद्र द्वारा उत्पादित पेडिग्रीड कॉमन कार्प बीज भी वितरित किए। इस दौरान डॉ. अभिलक्ष लिखी ने एक्वाफार्मिंग के माध्यम से बंजर भूमि को धन भूमि में परिवर्तित करने की भविष्य की योजना पर जोर दिया। डॉ. अभिलक्ष लिखी ने बताया कि वर्तमान में चार राज्यों -हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से 2167 हेक्टेयर खारे पानी के जलीय कृषि से प्रति वर्ष 8554.15 मीट्रिक टन झींगा उत्पादित किया जाता है। इन चार राज्यों में 58000 हेक्टेयर क्षेत्र खारे पानी की जल कृषि के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर अंतर्देशीय लवणीय क्षेत्रों में झींगा पालन और मत्स्य पालन की पर्याप्त गुंजाइश है।

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चार राज्यों में 58000 हेक्टेयर क्षेत्र उपलब्ध

अभिलक्ष लिखी ने कहा कि चार राज्य, जिनके पास खारे पानी की जल कृषि के लिए उपयुक्त लगभग 58000 हेक्टेयर क्षेत्र उपलब्ध है, वे आईसीएआर-सीआईएफई द्वारा विकसित तकनीक को झींगा पालन के लिए अपनाएं, जबकि वर्तमान में केवल 2167 हेक्टेयर का उपयोग होता है, जो प्रतिवर्ष 8554.15 मीट्रिक टन देता है। केंद्रीय सचिव ने बताया कि भारत सरकार का लक्ष्य इन चार राज्यों के मत्स्य किसानों की आय दोगुनी करना है। इस तकनीक का विस्तार वर्ष 22-23 तक हरियाणा में 2942 एकड़, पंजाब में 1200 एकड़, राजस्थान में 1000 एकड़ और उत्तर प्रदेश में 20-25 एकड़ के लिए किया गया है। वर्तमान वर्ष में हरियाणा में उत्पादन क्षेत्र 1200 एकड़ और बढ़ गया है।

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