धर्म और संस्कृति से सराबोर श्रावणी मेले
धीरज बसाक
यूं तो सावन के महीने में पूरे देश मंे हजारों जगह श्रावणी मेले लगते हैं, मगर इनमें चार मेले सबसे बड़े और खास होते हैं। छोटी काशी के नाम से मशहूर उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी स्थित गोला गोकर्णनाथ में सावन के महीने की छठा निराली होती है। यहां पूरे महीने शिव भक्त कांवड़िये भोलेबाबा का जलाभिषेक करते हैं और पूरे महीने यहां धर्म और अध्यात्म से सराबोर श्रावणी मेले की रौनक रहती है।
दूसरा बड़ा श्रावणी मेला बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी यानी बनारस में लगता है, जहां देश ही नहीं दुनिया के कोन-कोने से शिवभक्त सावन के महीने में आकर बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करते हैं और उनसे आशीर्वाद पाते हैं। तीसरा बड़ा श्रावणी मेला हरिद्वार में लगाता है, यह मेला भी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और यहां भी देश के कोने-कोने से तो शिवभक्त पहुंचते ही हैं, दुनिया के दूसरे देशों से भी बड़ी संख्या में शिवभक्त इस महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए यहां आते हैं।
देश का चौथा और दुनिया का सबसे बड़ा श्रावणी मेला झारखंड के देवघर जिले में लगता है। वास्तव में यह श्रावणी मेला करीब 130 किलोमीटर लंबे जन-सैलाब की शक्ल मंे होता है और पूरे महीने इस मेले में भक्ति और अध्यात्म के रिमझिम बारिश होती रहती है। जिस तरह प्रयाग में लगने वाले माघ मेले और कुंभ मेले की कई महीनों पहले से ही तैयारी की जाती है, उसी तरह से बिहार और झारखंड के दर्जनों अधिकारी देवघर के इस श्रावणी मेले की महीनों पहले से तैयारी करते हैं। क्योंकि यहां भी पूरे सावन माह में 1 करोड़ से ज्यादा शिवभक्त पहुंचते हैं।
इस मेले में कांवड़िये बिहार के सुल्तानगंज से उत्तरवाहिनी गंगा का जल लेकर देवघर पहुंचते हैं। यह मेला 19 अगस्त तक चलेगा। यह मेला कितना बड़ा आयोजन होता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर बाबा बैजनाथ धाम के लिए जो कांवड़िये निकलते हैं, उन्हें चलने में किसी तरह की परेशानी न हो इसलिए पूरे रास्ते में गंगा की मिट्टी बिछाकर उसे आरामदायक रास्ता बनाया जाता है। यही नहीं कांवड़ियों के लिए बिछाये गये इस मिट्टी के रास्ते के दोनों तरफ सौंदर्यीकरण किया जाता है। यह मेला अपने आप में एक दर्शनीय आयोजन होता है।
यही वजह है कि जितने कांवड़िये या जलाभिषेक के लिए भक्त बाबा बैजनाथ धाम पहुंचते हैं, उससे कई गुना ज्यादा श्रद्धालु इस मेले की छटा देखने के लिए पहुंचते हैं। पूरे सावनभर बिहार और झारखंड की लगभग 150 किलोमीटर लंबे काॅरिडोर में सिर्फ इंसान ही इंसान और जय बाबा बैजनाथ के उल्लासभरे हरकारे ही सुनने को मिलते हैं। इसलिए देवघर में लगने वाले इस श्रावणी मेले को श्रावणी महामेला भी कहा जाता है।
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