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विशिष्ट संस्कृति संजोए शूलिनी मेला

10:48 AM Mar 11, 2024 IST
विशिष्ट संस्कृति संजोए शूलिनी मेला
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श्रीमती प्रवीण शर्मा
भारत मेलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर हर साल अनेक मेले लगते हैं। हर सौ, दो सौ कोस पर मेले लगते हैं। जब किसी स्थान पर लोग धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या व्यापारिक कारण से एकत्र होते हैं तो उसे ‘मेला’ कहते हैं। देशभर में राज्यस्तरीय रूप में मेलों का आयोजन होता रहता है। हिमाचल राज्य देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां पर कुलदेवी-देवता की पूजा बहुत मान्य है। सर्वविदित है कि स्वतंत्रता से पूर्व राजाओं का प्रशासन काल था। इस राज्य की एेतिहासिक जानकारी के अनुसार यहां नौ रियासतें इस प्रकार थीं- बघाट, बद्याल, कुनियार, कुथल, मंगल, बेजा, माहलोग क्योंथल तथा कोटि। बघाट रियासत में 12 घाट होने के कारण हमें संज्ञा प्राप्त है शालाघाट कैथलीघाट ध्यारीघाट, वाकनाघाट, क्यारीघाट, कंडाघाट, चंबाघाट इत्यादि।
मान्यता के अनुसार बघाट के राजा अपनी कुलदेवी माता शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए हर वर्ष मेले का आयोजन करते थे। यहां के लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के खुश होने पर यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता। बल्कि शहर में सिर्फ खुशहाली होती है। शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी के नाम से ही शहर का नाम सोलन हुआ। यह मेला आषाढ़ मास में तीन दिन तक मनाया जाता है। मेले के पहले दिन पालकी में बैठकर माता शूलिनी अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने के गंज बाजार पहुंचती है। दो बहनों के इस मिलन के साथ ही राज्यस्तरीय मेले का आगाज़ होता है। माता की शोभायात्रा पुरानी कचहरी से होते हुए गंज बाजार तक शूलिनी पीठम‍् मंदिर तक निकलती है। मां शूलिनी 3 दिनों तक लोगों के दर्शन देने के लिए वहीं विराजमान रहती हैं। सोलन के आस-पास के गांव के लोग भी इस शोभायात्रा में हिस्सा लेते हैं।
यह मेला पुरानी संस्कृतियों को संजोए हुए है। जब इस मेले की शुरुआत हुई तो स्थानीय दुकानदार चार-चार आने इकट्ठे करके छींज (कुश्ती) का आयोजन करते थे। दुकानें भी कम हुआ करती थीं। खेतों से मेले की शुरुआत हुई और फिर चौक बाजार में आयोजन होने लगे। आज मेला ठोडो ग्राउंड सोलन में होता है। हिमाचल संस्कृति की विशेष पहचान है। कई खेलें भी अब सम्मिलित हैं। इसको नियमपूर्वक निभाने में ही आनंद है। वर्तमान में स्थित शिक्षा संस्थान शूलिनी यूनिवर्सिटी के नाम से भी प्रसिद्ध है।

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व्रत-पर्व

11 मार्च : चंद्रदर्शन ( 45 मुहूर्ति), फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रारंभ, पंचक।
12 मार्च : पंचक समाप्त (रात 8.30 पर), फुलेरा दूज (मथुरा, यूपी), श्री रामकृष्ण परमहंस जयंती, गंडमूल।
13 मार्च : भद्रा (दोपहर 2.45 से रात 1.26 तक), अविघ्नकर व्रत।
14 मार्च : चैत्र संक्रांति (15 मुहूर्ति), याज्ञवल्क्य जयन्ती, मेला बाबा बालकनाथ शुरू (हि.प्र.), मेला कनिहारा (धर्मशाला) शुरू।
16 मार्च : भद्रा (रात 9.39 से), शनि पूर्वोदय।
17 मार्च : भद्रा (सुबह 9.47 तक), होलाष्टक प्रारंभ, अन्नपूर्णा अष्टमी, मेला नलवाड़ (बिलासपुर), मेला बड़भाग सिंह (ऊना)।
- सत्यव्रत बेंजवाल
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