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शिवपुत्री नर्मदा का उद‍्गम स्थल

09:38 AM Jun 21, 2024 IST
शिवपुत्री नर्मदा का उद‍्गम स्थल
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सोनम लववंशी
प्राचीन काल से ही हमारे देश में नदियों को मां की तरह पूजने की परंपरा रही है। माना जाता है कि नदियों के किनारे ही सभ्यताएं पनपती हैं, बस्तियां बसती हैं और चिरकालिक कहानियां बनती हैं। नदी के किनारों पर ही इंसान को सुकून भी मिलता है। नदियों का बहता जल धरती के हर जीव की प्यास बुझाता है। नदियां ही हमारा भरण-पोषण भी करती हैं। हिंदू धर्म में तो मनुष्य के जीवन की अंतिम यात्रा भी नदियों की गोद में जाकर खत्म होती है। भारत में 7 पवित्र नदियां है, गंगा के बाद नर्मदा नदी का विशेष महत्व है। नर्मदा के बारे में ये कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर गंगा नदी और हिमालय पर्वत मौजूद नहीं थे, तब भी नर्मदा मौजूद थी।
भारतीय पौराणिक इतिहास में मां नर्मदा को शिव पुत्री होने का गौरव है। ‘मत्स्य पुराण’ में नर्मदा की महिमा के वर्णन में कहा गया है ‘कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र कुरुक्षेत्र में सरस्वती, परंतु गांव हो चाहे वन नर्मदा सर्वत्र पवित्र है।’ कहते हैं कि यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगा का जल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है। भगवान शिव ने नर्मदा को शुद्ध करने वाली शक्तियों का आशीर्वाद दिया था। एक लोककथा में गंगा पर नर्मदा की श्रेष्ठता का वर्णन कुछ इस तरह है कि साल में एक बार जब गंगा स्वयं सहनशीलता से परे प्रदूषित हो जाती है, तो गंगा स्वयं नर्मदा स्नान करने आती है और नर्मदा जल में शुद्धीकरण की डुबकी लगाती है! नर्मदा के दर्शन मात्र से सारे पापों से मुक्ति मिलती है।

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नर्मदा नदी का उद्गम स्थल

अमरकंटक नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है, जो मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला की सुंदरता में लिपटा अमरकंटक प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में एक है। नर्मदा के साथ ही यह सोन और जोहिला नदी की उद्गम स्थली भी है। आदिकाल से यह भूमि ऋषि-मुनियों और तपस्वियों को अपनी तरफ़ आकर्षित करती आई है। मध्य भारतीय क्षेत्र में समुद्र से 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पौराणिक शहर बहुत महत्वपूर्ण है। इसे तीर्थराज के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है तीर्थ स्थलों का राजा। संस्कृत में अमरकंटक का अर्थ है ‘शाश्वत स्रोत’ जो भारत की सबसे पवित्र और अनोखी नदियों में से एक पवित्र नदी मां नर्मदा से जुड़ा है। यहां हर साल बड़ी संख्या में धार्मिक और प्रकृति-प्रेमी पर्यटक आते हैं। संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालिदास ने इस स्थान का नाम ‘आम्रकूट’ रखा था, क्योंकि इस शहर में आम के पेड़ बहुत हैं और इसलिए यह स्थान ‘अमरकूट’ बन गया। धीरे-धीरे अपभ्रंश होकर इसे अमरकंटक कहा जाने लगा।

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कुंवारी नदी है नर्मदा

नर्मदा को कुंवारी नदी माना जाता है। इसका बहाव और गति इतनी तेज है कि इसे साध पाने की ताकत बड़े से बड़े बांध में भी नहीं है। नर्मदा अकेली ऐसी नदी है, जिसकी महानता के वर्णन के लिए प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘नर्मदा पुराण’ लिखा गया। नर्मदा की प्रेम कथा विभिन्न लोकगीतों और लोककथाओं में मिलती है। राजकुमारी नर्मदा राजा मैकाल पर्वत की बेटी है। राजा ने तय किया कि जो कोई उनकी बेटी के लिए गुलबकावली के दुर्लभ फूल लाएगा, उससे ही उसकी शादी होगी। राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल लेकर आए और इस तरह राजकुमारी नर्मदा की शादी उनके साथ तय हो गई। नर्मदा ने अभी तक सोनभद्र को नहीं देखा था, लेकिन उसके रूप, यौवन और पराक्रम की कथाएं सुनकर वह भी मन ही मन उससे प्रेम करने लगी। सोनभद्र का नर्मदा की सेविका जूहीला से संबंध के कारण नर्मदा ने उनसे मुंह मोड़ लिया और विपरीत दिशा में बहने लगी। सत्य और कल्पना का संगम देखिए कि नर्मदा भारतीय उपमहाद्वीप की दो प्रमुख नदी गंगा और गोदावरी के विपरीत दिशा में बहती है, यानी पूर्व से पश्चिम की ओर।

इतिहास

अमरकंटक में 10वीं शताब्दी में चंडी राजवंश के शासनकाल के दौरान यहां कलचुरियों का शासन था। माना जाता है, कि पहले यह क्षेत्र अयोध्या के नाम से जाना जाता था। वेद, पुराणों में उल्लेख है कि यहां कपिल मुनि और ऋषि मार्कंडेय का आश्रम था। 15वीं सदी में यह क्षेत्र बाघेलों को सौंप दिया गया और 1808 में नागपुर के भोसले ने इस क्षेत्र पर शासन किया।

नर्मदा परिक्रमा

प्राचीन काल से ही नर्मदा परिक्रमा का प्रचलन रहा है। नर्मदा की प्रदक्षिणा यात्रा में एक ओर जहां रहस्य, रोमांच और खतरे हैं वहीं अनुभवों का भंडार भी है। वैसे तो नर्मदा की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूरी होती है। परंतु, कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा अमरकंटक से प्रारंभ होकर अमरकंटक में ही समाप्त होती है। नेमावर में इसका नाभि स्थल है। अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भरूच (गुजरात) के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है।

प्राचीन सभ्यता

विश्व की प्राचीनतम नदी सभ्यताओं में से एक नर्मदा घाटी की सभ्यता का जिक्र कम ही किया जाता है, जबकि पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार यहां भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता के अवशेष पाए गए हैं। यहां डायनासोर के अंडे भी मिले हैं। नर्मदा घाटी के प्राचीन नगरों की बात करें तो महिष्मति (महेश्वर), नेमावर, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर आदि ऐसे कई प्राचीन नगर है जहां किए गए उत्खनन से 2200 वर्ष पुराने अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं।

अमरकंटक के दर्शनीय स्थल

नर्मदा उद‍्गम स्थल : अमरकंटक के प्रमुख आकर्षणों में से एक नर्मदा कुंड जहां से नर्मदा का उद‍्गम हुआ। यह शहर के बीचों-बीच स्थित है। यहां भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर भी है, जिसमें मां नर्मदा की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित है। नर्मदा कुंड परिसर के मुख्य मंदिरों में नर्मदा मंदिर, शिव मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, हनुमान मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, गुरु गोरखनाथ मंदिर, श्रीकृष्ण मंदिर दर्शनीय हैं।
कबीर चबूतरा : कबीर चबूतरा अमरकंटक में देखने लायक एक प्रसिद्ध जगह है, माना जाता है कि यह वही जगह है जहां संत कबीरदास जी ने ध्यान साधना की और यहीं उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
कलचुरी मंदिर : नर्मदा उद्गम मंदिर के ठीक पीछे कलचुरी मंदिर स्थित है, जिसे कलचुरी राजा कर्णदेव ने सन 1042 से 1072 के बीच बनवाया था। यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन हैं। यहां की वास्तुकला दर्शनीय है जो यहां के पालेश्वर महादेव मंदिर कर्ण मंदिर और मछंदर नाथ के मंदिरों में देखी जा सकती है।
कपिल धारा वॉटरफॉल : नर्मदा की धारा से निकलता यह झरना कपिलधारा जलप्रपात के नाम से जाना जाता है जो 100 फीट की ऊंचाई से गिरता है। माना जाता है कि कपिल ऋषि ने कई वर्षों तक यहां पर तपस्या की थी। इसलिए इस झरने का नाम कपिल धारा जलप्रपात पड़ गया। यहां कपिल मुनि का आश्रम है। जिसमें कपिलेश्वर महादेव और कपिल ऋषि के दर्शन भी कर सकते हैं।
दूध धारा वॉटरफॉल : दूध धारा वॉटरफॉल नर्मदा नदी का यह झरना 50 फीट की ऊंचाई से गिरता है। इतनी ऊंचाई से जल गिरने के कारण यह बिल्कुल दूध की तरह सफेद दिखाई देता है इसलिए इस प्रपात को दूध धारा जलप्रपात कहा जाता है। यह ऋषि दुर्वासा की तपस्थली है और यहां पर उनकी गुफा भी है जिसमें शिवलिंग विराजमान है जिस पर नर्मदा का जल लगातार गिरता रहता है।
माई की बगिया : नर्मदा उद‍्गम मंदिर से 3 किलोमीटर दूर एक सुंदर बगीचा है, जहां नर्मदा बचपन में अपनी सहेलियों के साथ फूल चुनने आया करती थीं। माई की बगिया से ही परिक्रमावासी अपनी परिक्रमा की दिशा परिवर्तित करते हैं। इस बग़ीचे में आम, केले, गुलबकावली, गुलाब और अन्य फूलों के पौधे है जो पर्यटकों को अपनी और लुभाते हैं। माई की बगिया में ही 5 कुंड भी हैं। जिनमें परिक्रमावासी पूजा करते और जल चढ़ाते हैं।
ज्वालेश्वर महादेव मंदिर : अमरकंटक के पास शहडोल रोड पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं शिवलिंग स्थापित किया था। मंदिर में स्थापित शिवलिंग जमीन से दो-तीन फीट नीचे स्थित होने के कारण इसे बाण लिंग भी कहा जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार ज्वालेश्वर महादेव को नर्मदा जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
धूनी पानी झरना : औषधि गुना से भरपूर यह झरना गर्म पानी का है जो धूनी पानी झरने के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें स्नान करने से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। भक्त यहां मीलों दूर से अपनी बीमारियों को ठीक करने आते है और इस गर्म पानी के झरने में स्नान करते है।
राष्ट्रीय उद्यान : अमरकंटक दौरे के साथ ही आप कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, पन्ना टाइगर रिजर्व, पेंच राष्ट्रीय उद्यान, जबलपुर, भेड़ाघाट, चित्रकूट, रायपुर आदि का दौरा कर सकते हैं। जबकि जबलपुर से अमरकंटक तक के सफ़र के बीच पाटनगढ़ और कारोपानी हिरण पार्क है। जिन्हें कारोपानी ब्लैकबक संरक्षण क्षेत्र भी कहा जाता है। ये दोनों डिंडोरी शहर के करीब हैं। यहां पाटनगढ़ प्रसिद्ध गोंड चित्रकला के लिए मशहूर है।
आयुर्वेदिक दवाइयां : अमरकंटक कई प्रकार के आयुर्वेदिक पौधों के लिए मशहूर है। यहां के आयुर्वेदिक पौधों में जीवन देने की शक्ति है। लेकिन, वर्तमान में गुलबकवाली और काली हल्दी के पौधे ख़त्म होने की कगार पर हैं। काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, मिर्गी, गठया और माइग्रेन आदि के उपचार के लिए किया जाता है।

पहुंचने के मार्ग

हवाई मार्ग : यदि हवाई मार्ग से अमरकंटक आने के लिए जबलपुर का डुमना एयरपोर्ट सबसे नजदीक है। यह अमरकंटक से 250 किलोमीटर दूरी पर है। यहां से अमरकंटक पहुंचने के लिए बस या टैक्सी मिलती है।
रेल मार्ग : अमरकंटक का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पेंड्रा रोड (छत्तीसगढ़) है। यहां से अमरकंटक 35 किलोमीटर की दूरी पर है। पेंड्रा रोड के अलावा दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन अनूपपुर, (मध्य प्रदेश) है जहां से अमरकंटक की दूरी 75 किलोमीटर है। दोनो रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी से अमरकंटक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग : सड़क के रास्ते अमरकंटक आने के लिए रायपुर, जबलपुर, बिलासपुर, पेंड्रा रोड या अनूपपुर शहर तक के लिए बस से आ सकते हैं। यहां से अमरकंटक के लिए बस मिल जाएगी।

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