खुशी का मनोविज्ञान
जब दो सगे भाई एक ही स्थान पर, एक जैसे घरेलू राशन का व्यापार करते हैं, तो एक दुकान पर अधिक ग्राहक आते हैं जबकि दूसरी दुकान पर कम क्यों हैं? शिष्यों ने उत्तर दिया, ‘भाग्य के कारण’ अथवा ‘व्यवहार के कारण।’ स्वामी अग्निमित्र मुस्कुराते हुए बोले, ‘दोनों भाई एक ही तरह का व्यवहार करते हैं और एक ही प्रकार का राशन देते हैं।’ कुछ शिष्य और उत्तर देने लगे, लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया। वह बोले, ‘छोटा भाई ग्राहक द्वारा मांगी गई मात्रा से अधिक सामान तराजू पर रखकर तौलता है, और जब अधिक मात्रा होती है तो वह सामान निकालकर तौलता है। वहीं, बड़ा भाई ग्राहक द्वारा मांगी गई मात्रा से कम सामान रखकर तौलता है, और जब मात्रा कम होती है तो अतिरिक्त सामान डालकर तौल बराबर करता है।’ यह इंसान की स्वाभाविक फितरत होती है कि जब कोई चीज़ उसे मिल जाए, तो उसे वापस लेने में उसे पीड़ा होती है, जबकि जब अधिक मिलता है तो खुशी होती है। तराजू पर रखी वस्तु ग्राहक की अपनी प्रतीत होती है, और इसलिए उसे वापस निकालना उसे मानसिक रूप से कष्टकारी लगता है। वहीं, वस्तु की मात्रा बढ़ाने पर उसे खुशी महसूस होती है। जहां उसे खुशी मिलती है, वहीं वह बार-बार जाता है।
प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री