मनोकामना व सिद्धि साधना का शक्ति पर्व
मुकेश ऋषि
हिन्दू धर्मशास्त्र में कुल चार नवरात्रों का वर्णन मिलता है। नवरात्र का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है। सृष्टि में मौजूद प्रकृति ही वह शक्ति है, जो जीवन के संचालन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसी प्रकृति का सान्निध्य पाकर पुरुष का जीवन भी नये चरण एवं स्वरूप को पाता है और इसी क्रम में आने वाले नवरात्र के 9 दिनों का अपना एक विशेष महत्व होता है।
चैत्र व आश्विन नवरात्र के अलावा दो नवरात्र माघ व आषाढ़ के गुप्त नवरात्र कहे जाते हैं। आषाढ़ मास में आने वाला यह गुप्त नवरात्र पर्व सुखों और मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु एक वरदान होता है। इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्र की शुरुआत 19 जून, सोमवार प्रतिपदा से हो रही है, जो कि 27 जून, मंगलवार नवमी को समाप्त होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा-अर्चना की जाती हैं। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधकों के लिए गुप्त नवरात्र बेहद खास होती है। इसकी साधना गुप्त होने से इसे गुप्त नवरात्र कहा जाता है। गुप्त नवरात्र की महिमा को जन-जन तक ऋषि श्रंृगी ने पहुंचाया था।
धार्मिक मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में मां अम्बे के नौ रूपों की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 18 जून को सुबह 10 बजकर 6 बजे से हो रही है। ये तिथि अगले दिन 19 मई को सुबह 11 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत इस साल 19 मई से होगी। गुप्त नवरात्र की पूजा के लिए कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त 19 जून, सोमवार को प्रातःकाल 5 बजकर 23 मिनट से 7 बजकर 27 मिनट तक है। इसके अलावा इस दिन अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक है। इस मुहूर्त में भी कलश स्थापना की जा सकती है। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्र पर देवी की पूजा करने के लिए सूर्याेदय से पहले उठना चाहिए। स्नान करके शुभ मुहूर्त में पवित्र स्थान पर देवी की मूर्ति या चित्र को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें और उसे गंगा जल से पवित्र करें। देवी की विधि-विधान से पूजा प्रारंभ करने से पहले मिट्टी मे जौ गिरा दें। इसके बाद माता की पूजा के लिए कलश स्थापित करें और अखंड ज्योति जलाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ और उनके मंत्रों का पूरी श्रद्धा के साथ जप करें। मां काली, मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी, मां कमला, दुर्गा के समस्त रूपों का स्मरण करना चाहिए।
नवरात्रि का त्योहार माता दुर्गा को समर्पित है। इस समय के दौरान शक्ति के विभिन्न स्वरूपों का पूजन होता है। इस शक्ति उपासना में अनेक नियमों का पालन होता है। इसमें जप-तप नियमपूर्वक करते हैं। नवरात्र वर्ष में चार बार आते हैं, जिसमें से दो इस प्रकार से हैं, जो बहुत विस्तार से मनाए जाते हैं, जिसे चैत्र मास के दौरान मनाया जाता है। दूसरा नवरात्र, शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। यह दोनों बहुत ही व्यापक स्तर पर लोगों द्वारा मनाये जाते हैं। दूसरे दो नवरात्र होते हैं, जो गुप्त रूप से मनाया जाता है। सामान्य जन से अलग सिद्धि हेतु तंत्र हेतु मनाए जाते हैं। यह गुप्त नवरात्र माघ के माह में और आषाढ़ मास में मनाया जाता है। ऐसे में ये दो समय में मनाए जाते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं। इन गुप्त नवरात्र में सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
वहीं एक कथा के अनुसार महिषासुर नामक असुर का वध करने हेतु देवों ने देवी दुर्गा की रचना की। सभी देवों ने देवी के आगमन हेतु उन्हें अपनी-अपनी शक्ति प्रदान की। इस प्रकार शक्ति का निर्माण हुआ, तब शक्ति के आगमन से महिषासुर संग्राम आरंभ होता है और महिषासुर का अंत संभव हो पाया। महिषासुर को मारने के उपरांत देवी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी पुकारा गया। गुप्त नवरात्र एक चरणबद्ध प्रक्रिया होती है, जिसमें शक्ति का हर रंग प्रकट होता है। इस शक्ति पूजन में देवी काली, देवी तारा, देवी ललिता, देवी मां भुवनेश्वरी, देवी त्रिपुर भैरवी, देवी छिन्नमस्तिका, देवी मां धूमावती, देवी बगलामुखी, देवी मातंगी, देवी कमला। ये समस्त शक्तियां तंत्र साधना में प्रमुख रूप से पूजी जाती हैं। गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं के पूजन को प्रमुखता दी जाती है। यह शक्ति के दशरूप हैं। हर एक रूप अपने आप में संपूर्णता लिए होता है जो सृष्टि के संचालन और उसमें मौजूद छुपे रहस्यों को समाए होता है। महाविद्या समस्त जीवों की पालन करती है। इनके द्वारा संकटों का नाश होता है।