सेवा से स्वर्ग
सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी का जन्म वर्ष 1182 में इटली के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। युवावस्था में वे किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गए। उनके बचने की आशा नहीं रही, तो उन्होंने अपने को ईश्वर को समर्पित कर दिया। एक दिन उन्हें अनुभूति हुई कि प्रभु ईसा पास खड़े होकर कह रहे हैं, ‘धन-संपत्ति के मोह से मुक्त होकर अपना जीवन मानव सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लो। मृत्यु स्वतः दूर भाग जाएगी।’ इसके बाद फ्रांसिस निरोग होते गए। एक दिन उन्होंने अपने पिता बर्नार्डोन से कहा, ‘इस शर्त पर मुझे प्रभु ईसा से जीवनदान मिला है कि मैं अपना सर्वस्व गरीबों और भटके लोगों की सेवा-सहायता में बिताऊंगा।’ क्रुद्ध होकर पिता ने उसे संपत्ति से वंचित कर दिया। फ्रांसिस भिक्षुक बनकर प्रेम व सहायता जैसे सत्कमों में जुट गए। ईसा मसीह के जन्मदिन पर बर्नार्ड नामक एक धनी व्यक्ति ने चर्च में भव्य समारोह का आयोजन किया। फ्रांसिस ने उसे उपदेश देते हुए कहा, ‘ईसा इस प्रकार के निरर्थक प्रदर्शन से खुश नहीं होंगे। उन्हें प्रसन्न करना है, तो अपनी आवश्यकता के अनुसार धन-संपत्ति अपने पास रखो, शेष गरीबों और जरूरतमंदों के कल्याण में लगा दो। यही स्वर्ग प्राप्ति का सच्चा साधन है।’ प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी