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संघर्षरत जीवन की संवेदनशील कहानियां

06:31 AM Oct 01, 2023 IST
संघर्षरत जीवन की संवेदनशील कहानियां
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नीरोत्तमा शर्मा

संवेदनशीलता के अन्तिम छोर तक पहुंच कर अंतरपटल को झिंझोड़ती, जीवन के कठोर सत्यों को कोमल शब्दों के माध्यम से पात्रों के मनोभावों की तूलिका के साथ कागज़ पर उकेरती ‘कुलबीर बड़ेसरों’ की कहानियां इस दौर में लिखी जाने वाली कहानियाें से सर्वथा अलग हैं। प्रस्तुत कहानी संग्रह ‘तुम क्यों उदास हो’ लेखिका की पंजाबी कहानियों का हिन्दी अनुवाद है। इस साहित्यिक कर्म को हिन्दी के सुपरिचित कथाकार, कवि व अनुवादक ‘सुभाष नीरव’ ने बखूबी निभाया है।
संग्रह की कुल ग्यारह कहानियों में लेखिका ने अनुभूतियों का सागर उड़ेल दिया है। लीक से हटकर लिखी गई जीवन संघर्ष को बयां करती कहानियां पाठक को अनवरत कथानक में बहा कर ले जाती हैं। पारिवारिक ईर्ष्या, द्वेष, रिश्तों में आपसी जलन, मतलबी व्यवहार का जीवन्त चित्रांकन पाठकों के दिल को छू जाता है। फिल्मी नगरी की चमक-दमक भरी दुनिया का स्याह पक्ष प्रस्तुत करती हुई कहानी ‘मजबूरी’ रूपहले पर्दे के पीछे की मजबूरियों का कड़वा सच बयां करती है। शीर्षक कहानी ‘तुम क्यों उदास हो’ में जहां एक ओर फैक्टरी में मिठाइयां बनाने वाले मजदूरों की बदहाल व दयनीय दशा का वर्णन है, वहीं बाल मजदूरों पर फिल्में बना कर पैसा कमाने वालों की दिखावटी करुणा का उल्लेख भी बड़ी ही संजीदगी से किया गया है। तरुण मन की कोमलकान्त भावनाओं का बेदर्दी से कुचला जाना पाठक को अन्दर तक झकझोर देता है।
दरकते रिश्तों की दासतां व भाई-बहनों की आपसी कटुता को बिना किसी लाग-लपेट के सहज शब्दों में बयां करती हुए ‘कुलबीर’ की कलम महानगरों की चकाचौंध से भरी जिन्दगी को बयां करने लगती है जिसमें अकेली महिला अपनी बच्चियों का भविष्य बनाने हेतु संघर्षरत है। हर समय असुरक्षा की भावना, घर की छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए निरन्तर अपनी इच्छाओं का गला घोंटना और बच्चियों का मां की मजबूरी को समझते हुए अपनी प्लेट मां की ओर सरका कर कहना ‘लो न मम्मी... खाओ न मम्मी’ ‘स्कूल ट्रिप’ कहानी का भावुक क्षण है।
कहानियों के पात्र एकाकी हैं, टूटे हुए नहीं; त्रस्त हैं, हारे हुए नहीं; वे समस्याओं से भागने की बजाय उनका मुकाबला करते हैं। इस तरह कर्मठ जीवन दर्शन का संदेश देते हुए कहानियां न केवल अहसासों को छूती हैं बल्कि मनोबल भी बढ़ाती हैं।
पुस्तक : तुम क्यों उदास हो? लेखिका : कुलबीर बड़ेसरों अनुवाद : सुभाष नीरव प्रकाशक : नीरज बुक सेंटर, दिल्ली पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 350.

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