रिश्तों में पूर्णता की तलाश
मनमोहन गुप्ता मोनी
‘पूर्णता की चाहत’ लाजपत राय गर्ग का तीसरा उपन्यास है। इसकी विशेषता यह है कि इसका कथानक बहुत ही सहज तरीके से आगे बढ़ता रहता है। कहीं कोई बोझिल स्थितियां नहीं आतीं। नारी जीवन के उतार-चढ़ाव की व्यथा से ओतप्रोत इस उपन्यास के पात्र सहज संवेदनशील तो हैं ही, कहीं-कहीं उनमें विद्रोही तेवर भी दिखाई देते हैं। इसकी एक पात्र नीलू के डॉक्टर बनने का सपना उसकी आकांक्षा को फलीभूत करता है।
इसी प्रकार इस उपन्यास की दूसरी मुख्य पात्र मीनाक्षी के संघर्ष और सामाजिक विद्रूपताओं के खिलाफ उसका द्वंद्व बेहतरीन तरीके से लेखक ने प्रस्तुत किया है। गर्ग की रचनाधर्मिता की एक विशेषता यह भी है कि उनकी शैली और विषयवस्तु आमजन के बीच से चुनी होती है। उपन्यास के पात्र जीवन का अधूरापन पूर्ण करने को उतावले भी नजर आते हैं।
झूठ की बुनियाद पर रिश्ते नहीं टिकते। यह बात पारिवारिक रिश्तों की हो या अन्य रिश्तों की, पूर्णता की चाहत तभी पूर्ण होती है,जब उसमें ईमानदारी हो। स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर इस उपन्यास में एक बात तो स्पष्ट है कि मर्यादित रिश्ते ही पूर्णता की ओर ले जाते हैं।
उपन्यास में मानवीय रिश्तों की अहमियत के साथ-साथ पूर्णता की चाह में भटकते युवा वर्ग को एक संदेश भी दिया गया है। उपन्यास भले ही कल्पना पर आधारित है लेकिन इसमें समाज का कटु यथार्थ स्पष्ट दिखाई देता है। कुल मिलाकर पठनीय उपन्यास है ‘पूर्णता की चाहत’।
पुस्तक : पूर्णता की चाहत लेखक : लाजपत राय गर्ग प्रकाशक : दिशा प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 300.