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निवेश में अतिरिक्त सावधानी से ही सुरक्षा

06:35 AM Dec 14, 2023 IST
निवेश में अतिरिक्त सावधानी से ही सुरक्षा
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मधुरेन्द्र सिन्हा

शेयर बाजारों में खासी तेजी है। सेंसेक्स उन ऊंचाइयों पर जा पहुंचा है जहां निवेशकों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। इसी तेजी को देखते हुए बड़े पैमाने पर आईपीओ यानी पब्लिक इश्यू लाये जा रहे हैं। वर्ष 2013 में इतनी कंपनियों के आईपीओ आये कि एक रिकॉर्ड हो गया। लगभग सभी क्षेत्रों की कंपनियों ने इस मार्केट में गोता लगाया, जिनमें कुछ कंपनियां तो ऐसी भी थीं जो महज अपने वैल्यूएशन के बल पर मैदान में उतरी थीं। बाद में उनका मुलम्मा उतर गया और उनके निवेशकों की आंखों में आंसू आ गये।
बहरहाल, यह कवायद जारी है और बड़े पैमाने पर पब्लिक इश्यू बाजार में आ रहे हैं। इनमें से तो कई ऐसे हैं जिन्हें 2023 में ही आना था, लेकिन वे आ नहीं पाये और अब नये साल में कदम रखेंगे। इनकी भी तादाद अच्छी-खासी है और कइयों का वज़न भी खूब है। अभी और 2024 में कई कंपनियां प्राइमरी मार्केट में आ रही हैं।
आशय यह है कि प्राइमरी मार्केट में इस समय काफी भीड़ है और हर कंपनी इसका फायदा उठा लेना चाहती है। काफी समय से लंबित कंपनियां भी अब जाग्रत हो गई हैं और अपने-अपने इश्यू लेकर आ रही हैं। अब लाख टके का सवाल है कि व्यक्तिगत निवेशक कहां जाये और क्या खरीदारी करे?
आम निवेशक बहुत समझदार नहीं होता है और न ही उसे पैसे का गणित समझ में आता है। वह अपने पैसे दुगने-तिगने करने के बारे में सोचता है और जिस कंपनी की चमक-दमक उसे दिखती है, वह उसमें ही पैसे लगा देता है। बाद में उसे पछतावा होता है कि कैसे एक जानी-मानी कंपनी में पैसे लगाने के बाद उसकी रातों की नींद हराम हो गई। प्राइमरी मार्केट का फॉर्मूला हर किसी की समझ में नहीं आता है और लोग परेशान होते रहते हैं। इसका कारण है कि आईपीओ बाजार में उतरी हर कंपनी अपने ढंग से दावे करती है और उनके पीछे ब्रोकर तथा अन्य तरह की वित्तीय कंपनियां भी होती हैं जिन्हें अंडरराइटर कहते हैं। इनके सहारे उनका तो बेड़ा पार हो जाता है लेकिन बेचारा निवेशक फंस जाता है।
अगर आप याद करें तो याद आयेगा। नब्बे का दशक। उस समय शेयर बाजारों में एक तूफान आया था जिसमें निवेशकों के अरबों रुपये डूब गए। उस समय सेबी के नियम-कानून ऐसे थे कि कोई भी कंपनी शेयर बाज़ार में उतर सकती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों कंपनियां न्यूनतम योग्यताओं के साथ बाजार में उतरीं और उसमें से ज्यादातर पैसे बटोरकर फरार हो गईं। इन्हें फ्लाई बाई नाइट कंपनियां कहा जाता था क्योंकि आईपीओ के पैसे बैंक में आते ही ये फुर्र हो जाती थीं और फिर उनके ऑफिस में ताला लग जाता था। ऐसी कई कंपनियों ने मर्चेंट बैंकर्स के साथ मिलकर शेयर बेचे, जिनसे निवेशकों के पैसे डूब गये। सरकारी एजेंसियां इन कंपनियों के प्रमोटरों को ढूंढ़ती रह गईं लेकिन उनमें से कई तो भारत छोड़कर जा चुके थे।
दरअसल, जब निवेशकों ने शोर मचाना शुरू किया और मीडिया में खुलकर बात सामने आने लगी तो फिर सरकार जागी। सेबी ने नियम बदलने शुरू कर दिये। शेयर बाज़ार में उतरने की पात्रता में काफी बदलाव किये गये। उन कंपनियों को आने से रोक दिया गया जो कम से कम तीन साल से काम न कर रही हों और उनके बैलेंस शीट में लाभ न दिख रहा हो। इसका परिणाम यह हुआ कि एक बाधा आ गई। इसके अलावा डीमैटिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। हालांकि शुरू में इसका बाज़ार पर बुरा असर पड़ा क्योंकि लोग शेयरों को डीमैट करने से हिचकिचा रहे थे। सेबी ने शेयर बाज़ार में उतरने वाली कंपनियों की आर्थिक सेहत के बारे में कई तरह की शर्तें रखीं जिससे वे गड़बड़ नहीं कर पायें। इन कदमों का फायदा हुआ और आईपीओ की बाढ़ रुक गई।
हालांकि, इस समय पहले जैसे हालात नहीं हैं लेकिन कई कंपनियां अपना खेल कर ही जाती हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इनमें शामिल हैं। ये शेयर बाजार से पैसे तो उगाह लेती हैं लेकिन पैसे फिर इधर-उधर लगा देती हैं। एक बहुत बड़े प्राइवेट बैंक की एक सहयोगी कंपनी को इसमें काफी जुर्माना लगा क्योंकि उसने आईपीओ से प्राप्त राशि दूसरी कंपनी में लगा दी जबकि सेबी के कानूनों के अनुसार यह गलत है। इस तरह के कई मामले सामने आये और सेबी ने कार्रवाई की।
लेकिन फिर भी कुछ कंपनियों ने अपनी आर्थिक हैसियत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई। आंकड़ों में एक तरह से हेराफेरी की और अपने को जबर्दस्त विज्ञापनों के साथ पेश किया। इनमें से कई चर्चित शेयरों के निवेशकों को जबर्दस्त धक्का लगा। इन कंपनियों के वैल्यूशन बहुत ज्यादा किये गये थे जो बढ़ा-चढ़ाकर पेश किये गये थे। निवेशकों ने इनमें खुलकर पैसा लगाया और बदले में बुरी तरह से मार खाई। पेटीएम के शेयरों में जो गिरावट आई उसका खमियाजा निवेशकों ने भुगता। निवेशकों को खासा चूना लगा है। आईपीओ लाने के समय में कंपनी ने अपना वैल्यूशन इतना ज्यादा बताया जिससे निवेशक फंस गये और अब इससे निकलने का कोई जरिया नहीं है।
फैशन की दुनिया में एक कंपनी का उदय हुआ जिसका नाम है नायका। इसकी पब्लिसिटी जमकर हुई और कंपनी ने 5,235 करोड़ रुपये का अपना पब्लिक इश्यू जारी किया। लेकिन लिस्टिंग के बाद इसके शेयर आधे से कम दाम पर चले गये। निवेशकों की गाढ़ी कमाई लुट गई और निकट भविष्य में उनकी वापसी का रास्ता नहीं है। बजाज कॉर्प भी एक उदाहरण है जिसने स्टॉक मार्केट में धूम-धड़ाके से प्रवेश किया। बाद में उसके शेयर औंधे मुंह गिर गये।
ऐसी कंपनियों की सूची लंबी है और निवेशक उसमें फंसे पड़े हैं। इसके कई कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा कारण है कंपनियों द्वारा अपने वैल्यूशन को ऊपर उठाना। ये कंपनियां अपना वैल्यूशन काफी ऊंचा रखती हैं, चाहे प्रॉफिट हो न हो। यह एक नया ट्रेंड है और इससे वे शेयर बाजार में ऊंचे दामों में अपने शेयर बेचने में कामयाब हो जाती हैं। दूसरी ओर निवेशक भी लालच में आ जाता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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