मनचलों पर शिकंजा
देश के विभिन्न भागों में लड़कियों व बच्चियों से छेड़छाड़ व यौन अपराधों की घटनाओं में लगातार हो रही अप्रत्याशित वृद्धि डराने वाली है। बहुचर्चित निर्भया कांड के बाद यौन अपराधों पर अंकुश के लिये कानूनों को सख्त बनाये जाने के बावजूद अपराधों का ग्राफ गिरा नहीं है। बल्कि कई राज्यों में नाबालिगों से दुष्कर्म करने पर मृत्युदंड जैसी सजा के प्रावधान के बावजूद अपराध नहीं थमे हैं। समाज के सामने बड़ा संकट यह है कि इस यौन कुंठा पर कैसे रोक लगायी जाए। ऐसे हताशा के माहौल में राजस्थान में एक आशा की किरण दिखायी दी है। हाल के दिनों में राजस्थान में एक किशोरी से दुष्कर्म, हत्या व जलाये जाने की घटना से पूरा देश उद्वेलित हुआ था। जिसको विपक्ष ने बड़ा मुद्दा बनाया था। आसन्न विधानसभा चुनाव के दबाव में राजस्थान सरकार ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर जोखिम लेने को कतई तैयार नहीं थी। इसी दिशा में एक नई पहल करते हुए राजस्थान सरकार ने फैसला किया है कि महिलाओं, लड़कियों व बच्चियों से छेड़छाड़ करने वालों को अब राज्य में सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। इस सूची में शामिल दुष्कर्म का प्रयास करने वालों, दुष्कर्म के आरोपियों एवं मनचलों को भी सरकारी नौकरी से वंचित रखा जायेगा। ऐसे लोगों के चरित्र प्रमाणपत्र में बाकायदा इस बात का उल्लेख किया जायेगा। पुलिस थानों में अब तक जैसे हिस्ट्रीशीटरों का रिकॉर्ड रखा जाता था, वैसे ही इन शोहदों का लेखा-जोखा भी रखा जायेगा। राज्य सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए। सरकार ने राज्य में सरकारी भर्ती करने वाली एजेंसियों को इस तरह का रिकॉर्ड रखने का निर्देश दिया है। ताकि जब राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन व कर्मचारी चयन आयोग में ऐसे आरोपी आवेदन करेंगे तो स्वत: ही उनका आवेदन खारिज हो जायेगा। दरअसल, इन संस्थाओं को पुलिस के जरिये अभियुक्तों का डेटाबेस उपलब्ध कराया जायेगा। विश्वास किया जाना चाहिए कि इस घोषणा का विधिवत क्रियान्वयन होगा, यह महज चुनावी माहौल में की गई घोषणा न हो।
दरअसल, यहां सवाल सिर्फ राजस्थान का ही नहीं है बल्कि देश के विभिन्न भागों में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ व जघन्य अपराधों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में केंद्र सरकार के स्तर पर सभी राज्यों के लिये प्रशासनिक व कानूनी प्रावधान किये जाने की जरूरत है, जिससे यौन अपराधों पर अंकुश लग सके। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के वे आंकड़े हमें शर्मसार करते हैं जिनमें कहा गया था कि देश में रोज अस्सी-नब्बे बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि सख्त कानून और पुलिस-प्रशासन की सक्रियता के बावजूद ऐसे अपराध क्यों नहीं रुक रहे हैं। जाहिर है अपराध नियंत्रण से जुड़े विभिन्न विभागों के अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित किये जाने की जरूरत है। यह बात सही है कि किसी समाज को पूरी तरह अपराध मुक्त नहीं किया जा सकता मगर फिर इस दिशा में गंभीर प्रयास तो होने ही चाहिए। आम लोगों को भयमुक्त सुशासन देना शासन-प्रशासन का प्राथमिक दायित्व होना चाहिए। ऐसे में राजस्थान सरकार का हालिया कदम कुछ उम्मीद जगाता है। इसकी वजह यह है कि आम भारतीय युवाओं में सरकारी नौकरी का बड़ा सम्मोहन होता है। नौकरी न मिलने की आशंका के चलते भटके हुए युवा ऐसे कृत्यों से बचने का प्रयास करेंगे। आमतौर पर देखा भी जाता है कि गर्ल्स स्कूल-कालेज के बाहर और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर युवाओं के झुंड आती-जाती लड़कियों पर छींटाकशी व छेड़छाड़ करते नजर आते हैं। सरकार को आधुनिक तकनीक व सीसीटीवी कैमरों के जरिये भी ऐसे तत्वों पर नजर रखनी चाहिए। दरअसल, हमारे समाज में इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की बहुतायत में उपलब्धता ने भी युवाओं की सोच को विकृत बनाया है। उस पर नशे के बढ़ते उपयोग ने भी आग में घी डालने का काम किया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर पश्चिमी देशों की तर्ज पर मौजूद अथाह अश्लील सामग्री पर रोक लगाने के लिये सरकारों को कानूनी प्रावधानों का सहारा लेना चाहिए। अन्यथा कालांतर विकृत होती सोच को कानून से भी नियंत्रित करना संभव न हो पायेगा।