फोबो की उलझन को कहें बाय-बाय...
रेनू सैनी
जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति के पास ढेरों विकल्प हैं। दरअसल 21वीं सदी में हर कार्य के इतने द्वार खुल गए हैं कि व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि वह क्या चुने? एक अथवा दो ही विकल्प हों तो चुनाव आसान होता है, लेकिन जब विकल्पों की भरमार हो तो दिमाग चकरा जाता है। हम सही चुनने से चूक जाते हैं। ऐसे में हम फोबो के शिकार हो जाते हैं। फोबो यानि ‘फियर ऑफ ए बेटर ऑप्शन’। ढेरों विकल्पों में से किसी एक का सही चुनाव करने का डर ही फोबो कहलाता है। फोबो से बचना जरूरी है क्योंकि ये अच्छे-खासे जीवन में पैबंद लगा सकता है। आजकल इतने विकल्प हैं कि हर दूसरा व्यक्ति फोबो से ग्रस्त है। इस शब्द को न्यूयार्क स्थित एक लेखक, वक्ता और पूंजीपति पेट्रिक मेकागिनीज ने खोजा था।
बेहतरीन की अंतहीन तलाश
बहुत सारे विकल्प होने से व्यक्ति बेकार की सूचनाओं एवं बारीकियों में उलझ जाता है। आजकल हर चीज के ऑनलाइन-ऑफलाइन इतने अधिक आकर्षक विकल्प हैं कि व्यक्ति ऑनलाइन जब किसी चीज की तलाश करने लगता है तो उसके दुनिया भर के विकल्प देखता जाता है, उससे जुड़ी तमाम वेबसाइट खोज लेता है। ऐसा करने से समय की बर्बादी तो होती ही है, कई बार बेहतर संभावनाएं भी हाथ से निकल जाती हैं। बेहतरीन तलाश करने के चक्कर में हम कई बार गलत चुनाव कर बैठते हैं या एक से अधिक वस्तुएं खरीद लेते हैं या फिर हार कर उस चीज को आगे के लिए खिसका देते हैं।
जीवन के अहम फैसले
फोबो की स्थिति अगर वस्त्र, जूते आदि का चयन करने में हो तो अधिक दिक्कत नहीं लेकिन जीवनसाथी, नौकरी, घर आदि का चुनाव करते समय अगर फोबो की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो पूरा जीवन दांव पर लग जाता है। प्रत्येक के जीवन में ये तीनों अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए गलत विकल्प चयन से बचें। पढ़ाई, करिअर के विकल्प भी अहम हैं।
क्या है इस रोग की जड़
फोबो की स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है और तनाव के समय कभी भी सही निर्णय नहीं लिया जाता। फोबो की स्थिति से छुटकारा संभव है इसके लिए यह जानने की आवश्यकता है कि आखिर मनुष्य के अंदर फोबो यानि कि ढेरों विकल्पों से किसी एक विकल्प को चुनने की स्थिति क्यों बनती है? ऐसा अक्सर इसलिए होता है क्योंकि पहली बात तो व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ को पाना चाहता है। दूसरे वह समाज में स्वयं को अच्छी स्थिति में दर्शाना चाहता है। तीसरा बिंदु है कि वह लोगों से प्रशंसा चाहता है।
गलत चुनाव से तनाव
ऐसा दृष्टिकोण किसी एक वस्तु के प्रति नहीं अपितु सभी के प्रति होता है। यह बात जीवनसाथी, नौकरी और घर पर तो विशेष रूप से लागू होती है। दिमाग में उपरोक्त तीनों बातों का पूर्ण होना मुख्य ध्येय होता है। लेकिन जब ऐसा नहीं होता और फोबो के चलते व्यक्ति गलत विकल्प चुन लेता है तो फिर वह तनावग्रस्त हो जाता है। यह तनाव कई बार इतना अधिक बढ़ जाता है कि व्यक्ति का जीवन बेहद दुष्कर बन जाता है।
मुश्किल से ऐसे पाएं पार
फोबो से बचाव की पहली बात तो कपड़े, फर्नीचर, फोन आदि चीजों को अपने बजट के अनुरूप चुना जाये। पहले अपना बजट निर्धारित कर लें। फिर वस्तुओं की तलाश करें। ऐसा करने से विकल्प सिमट जाते हैं। दूसरा बिंदु , जीवनसाथी, नौकरी और घर जैसे महत्वपूर्ण विकल्पों का चुनाव करते समय फोबो के झांसे में न आएं। क्योंकि यहां पर बात ‘फियर ऑफ बेटर ऑप्शन’ की नहीं बल्कि अपने स्वयं के जीवन की होती है। प्रत्येक व्यक्ति की आदतें और शौक अलग-अलग होते हैं। अपने उन मापदंडों के आधार पर ही इनका भी चुनाव करें। यह भी महत्वपूर्ण है कि वस्तुओं को खरीदते समय ऐसे स्थान और दुकान का चुनाव करें जो भरोसेमंद हो। जब व्यक्ति को अपने अनुरूप वस्तुएं मिलने लगती हैं तो वह अधिक विकल्पों में न फंसकर उन्हीं चीजों को सिलेक्ट करेगा जिनसे उसे संतुष्टि प्राप्त होती है। वहीं सदैव सकारात्मक और व्यस्त रहने से भी व्यक्ति ‘फियर ऑफ बेटर ऑप्शन’ की गिरफ्त में नहीं आ पाता। फोबो की स्थिति को केवल अपने व्यक्तित्व में उतनी ही जगह दें जितनी स्वस्थ हंसी मजाक को। इसे कभी भी गंभीर न बनाएं। परिपक्व मानसिकता, दूसरों के अनुभव व आत्मविश्वास ऐसे मित्र हैं जो व्यक्ति को फोबो बनने से बचाते हैं।