निर्दलीय विधायक बनने वाली सावित्री जिंदल हरियाणा की चौथी महिला
चंडीगढ़, 12 अक्तूबर (ट्रिन्यू)
हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका है, जब सबसे कम तीन ही निर्दलीय विधायक चुने गए हैं। 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनावों में राज्य में 16 हलकों में आजाद विधायक बने थे। इसके बाद इतनी ही संख्या 1982 के चुनावों में निर्दलीय विधायकों की रही। वहीं दूसरी ओर, हिसार से निर्दलीय विधायक बनीं सावित्री जिंदल प्रदेश की चौथी महिला विधायक हैं, जो निर्दलीय चुनी गई हैं। उनसे पहले केवल तीन ही महिलाओं ने आजाद प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की है। हालांकि इस बार के चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के बागियों की संख्या के हिसाब से निर्दलीय विधायकों की संख्या अच्छी-खासी होने की उम्मीद थी। लेकिन मतदाताओं ने इस बार निर्दलीयों ही नहीं, क्षेत्रीय दलों को भी नकारने का काम किया। अलबत्ता मुख्य तौर पर सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के उम्मीदवारों को ही सर्वाधिक वोट बैंक मिला। इस बार बहादुरगढ़ हलके से कांग्रेस के बागी राजेश जून ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता है। कांग्रेस ने यहां से मौजूदा विधायक राजेंद्र सिंह जून को टिकट दिया था। राजेश जून ने राजेंद्र जून को ना केवल चुनाव में शिकस्त दी बल्कि तीसरे नंबर पर भी धकेल दिया। इसी तरह गन्नौर हलके से भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह कादियान निर्दलीय विधायक बने हैं। भाजपा ने यहां से पूर्व सांसद रमेश चंद्र कौशिक के भाई देवेंद्र कौशिक को टिकट दिया था। कौशिक भी तीसरे पायदान पर रहे हैं।
भाजपा ने हिसार शहर से नायब सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे और दो बार के विधायक डॉ़ कमल गुप्ता को टिकट दिया था। कुरुक्षेत्र सांसद नवीन जिंदल की माता सावित्री जिंदल यहां से टिकट मांग रही थीं। सावित्री जिंदल को टिकट नहीं मिला तो उन्होंने आजाद प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। वे चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। वहीं भाजपा के कमल गुप्ता अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। अब तीनों ही निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है।
भाजपा के खुद के 48 विधायक हैं। ऐसे में अब सरकार में संख्याबल 51 का हो गया है। वहीं कांग्रेस को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई है। 2019 के चुनावों में कांग्रेस 31 जगहों पर चुनाव जीती थी।
पिछले वर्षों में कई बार निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार का गठन किया गया है। जैसे कि 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और 2014 में मनोहर लाल खट्टर के समय। ऐसा लगता है कि हरियाणा में निर्दलीय विधायकों की भूमिका एक स्थायी तत्व के रूप में उभरती रही है, जिससे राजनीतिक समीकरण प्रभावित होते रहे हैं। यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में निर्दलीय विधायकों की भूमिका हरियाणा की राजनीति में महत्वपूर्ण रहेगी।
"हरियाणा की राजनीति में कई बार ऐसे मौके आए हैं, जब निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार का गठन हुआ है। हाल के घटनाक्रमों में 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और 2014 में मनोहर लाल खट्टर ने निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल किया। 12 मार्च, 2024 से 12 सितंबर, 2024 तक नायब सिंह सैनी ने भी निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार चलाई। दल-बदल कानून के तहत निर्दलीय विधायक सरकार को समर्थन दे सकते हैं, लेकिन वे पार्टी में विलय नहीं कर सकते।"
-हेमंत कुमार, अधिवक्ता एवं विधायी मामलों के विशेषज्ञ