सामुदायिक नेतृत्व से ही मुक्ति संभव
योगेश कुमार गोयल
एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम नामक बीमारी करीब चार दशक से पूरे विश्व में गंभीर खतरे के रूप में उभरती रही है। हालांकि, एक हालिया रिपोर्ट में, यूएन एजेंसियों का कहना है कि वर्ष 2030 तक एड्स के खतरे को कम करने के लिए यदि सही ढंग से प्रयास किए जाएं तो इसे ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे’ की श्रेणी से हटाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 के अंत तक 3.9 करोड़ से भी ज्यादा लोग एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस के साथ जी रहे थे और एचआईवी ही एड्स रोग का कारण बनता है।
वैसे दुनिया के कई हिस्सों से पिछले कुछ वर्षों में एड्स के मामलों में कमी देखी जा रही है। इसी आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि थोड़े और प्रयास किये जाएं तो निश्चित ही एड्स की रोकथाम में मदद मिल सकती है। एचआईवी-एड्स मामलों पर संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ‘यूएन एड्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक एड्स का खात्मा करने के लिए मजबूत राजनीतिक नेतृत्व के साथ विज्ञान को अपनाने, विषमताओं का मुकाबला करने और सतत निवेश सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता होगी।
दरअसल, एचआईवी संक्रमितों के लिए समर्थन दिखाने, एड्स रोगियों को साहस देने तथा सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और लोगों के बीच एड्स के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष एक दिसंबर को ‘विश्व एड्स दिवस’ मनाया जाता है, जो इस साल ‘लेट कम्युनिटी लीड’ थीम के साथ मनाया जा रहा है। एड्स दिवस 2023 का उद्देश्य है कि एड्स को समाप्त करने के लिए सामुदायिक नेतृत्व की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाए।
यूएनएड्स के आंकड़ों के अनुसार पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में वर्ष 2010 के बाद से नये एचआईवी संक्रमणों में 57 प्रतिशत की कमी आई है, जहां सरकारों ने एड्स की रोकथाम से संबंधित कार्यक्रमों में भारी निवेश किया है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 2010 में एचआईवी से पीड़ित लगभग 46 प्रतिशत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ही एंटी रेट्रोवायरल उपचार प्राप्त हुआ था। लेकिन वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 82 प्रतिशत था और इसी का सकारात्मक परिणाम रहा कि 2010 से 2022 तक बच्चों में नए एचआईवी संक्रमण में 58 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई।
यूएनएड्स के मुताबिक 2022 में 6.3 लाख लोगों में एड्स की पुष्टि हुई थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि बोत्सवाना, इस्वातिनी, रवांडा, संयुक्त गणराज्य तंजानिया, जिम्बाब्वे जैसे देशों ने पहले ही अपना ‘95-95-95’ का लक्ष्य हासिल कर लिया है अर्थात् एचआईवी से पीड़ित 95 प्रतिशत लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानते हैं, 95 प्रतिशत ऐसे हैं, जो जानते हैं कि वे एचआईवी के साथ जी रहे हैं, वे जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवायरल उपचार ले रहे हैं तथा उपचाराधीन 95 प्रतिशत लोगों में संक्रमण की स्थिति में सुधार हुआ है।
भारत के संदर्भ में, वर्ष 2022 एचआईवी आंकड़ों के मुताबिक अनुमानित 24.7 लाख लोग एचआईवी से पीड़ित हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2022 में नये एचआईवी संक्रमण मामलों की संख्या अनुमानित 66 हज़ार थी और 2010 के बाद से नये संक्रमणों की दर में 42 प्रतिशत से कुछ अधिक की गिरावट दर्ज की गई। वर्ष 2010 के पश्चात एड्स के कारण कुल मृत्यु दर में भी करीब 77 प्रतिशत की गिरावट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में भारत में एचआईवी से पीड़ित 79 प्रतिशत लोगों को अपनी स्थिति की जानकारी है और जो लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानते हैं, उनमें से एचआईवी से पीड़ित 86 प्रतिशत लोग एंटीरेट्रोवायरल उपचार करा रहे हैं।
एचआईवी उपचार का मुख्य लक्ष्य संक्रमित व्यक्ति के वायरल लोड को कम करना होता है। इसका उपयोग बढ़ाकर कई देशों ने संक्रमण के इलाज में विशेष लाभ प्राप्त किया है। भारत के लिए प्रमुख प्राथमिकता एचआईवी से पीड़ित उन लोगों तक पहुंचना है, जो अपनी स्थिति के बारे में तो जानते हैं लेकिन एचआईवी के इलाज के बारे में नहीं। यूएनएड्स में एशिया प्रशांत, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के क्षेत्रीय निदेशक एमॉन मर्फी का कहना है कि भारत सरकार ने एड्स प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय स्वामित्व और नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। उनके मुताबिक भारत अपनी एड्स प्रतिक्रिया का 95 प्रतिशत वित्तपोषण स्वयं करता है, जो एक मजबूत राष्ट्रीय कर्तव्य को दर्शाता है। देश में, इसमें तेजी लाने के लिए स्व-परीक्षण ‘पीआरईपी’ को नये एजेंडे का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है ताकि वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
एड्स के प्रसार के कारणों में आज भी स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता एवं जिम्मेदारी का अभाव, अशिक्षा, निर्धनता, अज्ञानता और बेरोजगारी प्रमुख कारण माने जा सकते हैं। बहुत से लोग एड्स के लक्षण उभरने पर भी बदनामी के डर से न केवल एचआईवी परीक्षण कराने से कतराते हैं बल्कि एचआईवी संक्रमित किसी व्यक्ति की पहचान होने पर उससे होने वाला व्यवहार तो बहुत चिंतनीय एवं निंदनीय होता है।
हालांकि, ‘ग्लोबल हेल्थ’ की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि एंटीरेट्रोवायरल उपचार लेने वाले लोगों की संख्या में होती वृद्धि से एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में प्रतिवर्ष कमी आ रही है। एंटीरेट्रोवाइयल थेरैपी (एआरटी) एचआईवी संक्रमित लोगों के उपचार में विशेष लाभकारी साबित हो सकती है। लेकिन 2030 तक एड्स महामारी को समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करना अभी दूर की कौड़ी ही प्रतीत होती है।