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खारे जल ने फेरा पानी...

09:23 AM Jul 01, 2024 IST
खारे जल ने फेरा पानी
जींद के पिंडारा गांव का कृषि विज्ञान केंद्र। -हप्र
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जींद का पिंडारा गांव

जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 30 जून
कई दशक पहले मुफ्त की जमीन के फेर में प्रदेश के सबसे बड़े कृषि प्रधान जिलों में अव्वल जींद जिले का कृषि विज्ञान केंद्र ऐसी जगह स्थापित कर दिया गया, जहां खारे भूमिगत जल ने कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि के विकास, शोध, बीज उत्पादन और जांच के मकसद पर ही पानी फेर दिया है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हकृवि) हिसार ने जींद में अपना कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) 1992 में जींद के नजदीकी गांव पिंडारा में स्थापित किया था। इसके लिए लगभग 30 से 40 एकड़ जमीन की जरूरत थी। यह जमीन हकृवि को मुफ्त चाहिए थी। मुफ्त में इतनी जमीन कृषि विज्ञान केंद्र के लिए जींद के किसी ऐसे गांव में नहीं मिल पाई, जिस गांव का भूमिगत जल फसलों की सिंचाई के अनुकूल हो। अंत में पिंडारा गांव की पंचायत से कृषि विज्ञान केंद्र के लिए लगभग 40 एकड़ जमीन मुफ्त में ली गई। मुफ्त में दी गई यही जमीन जींद में खेती के सबसे बड़े शोध और ज्ञान केंद्र कृषि विज्ञान केंद्र के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
इस पंचायती जमीन का भूमिगत जल सिंचाई के कतई अनुकूल नहीं है। यहां के भूमिगत जल में टीडीएस की मात्रा 2000 से भी ज्यादा है। इतने खारे पानी में विज्ञानी किसानों के लिए कोई मॉडल प्रदर्शनी फसल प्लाॅट तैयार नहीं कर पाते। यहां जिन फसलों की बिजाई होती है, उनका दूसरे किसानों के लिए मॉडल बनना तो दूर, फसलों को खारे पानी के कारण बचाना ही मुश्किल हो जाता है।
कृषि विज्ञान केंद्र में फसलों के उन्नत बीजों का उत्पादन भी होना था, मगर यह भी नहीं हो रहा। अपने अस्तित्व में आने के लगभग 32 साल बाद भी पिंडारा का कृषि विज्ञान केंद्र एक एकड़ में भी ऐसा फसल प्लाॅट तैयार नहीं कर पाया, जिसे दिखाकर वे किसानों को उस तरह की खेती के लिए प्रेरित और तैयार कर सकें।

जमीन पर भ्ाी मुकदमेबाजी

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पिंडारा में जब पंचायत ने कृषि विज्ञान केंद्र के लिए जमीन कृषि विश्वविद्यालय हिसार को मुफ्त में दी थी, तब पिंडारा में जमीन की कीमतें बहुत कम थी। अब जमीन की कीमतें आसमान छूने लगी तो पिंडारा के कृषि विज्ञान केंद्र को दी गई जमीन को लेकर पंचायत और कृषि विज्ञान केंद्र के बीच मुकदमेबाजी भी तेज हो गई है। ग्राम पंचायत ने कई बार कृषि विज्ञान केंद्र पर आरोप लगाए हैं कि उसने पंचायत की ज्यादा जमीन कब्जाई हुई है। इसके चलते कृषि विज्ञान केंद की चारदीवारी भी पूरी नहीं हो पा रही। जमीन को लेकर कोर्ट में कई बार केस हो चुके हैं।

मुफ्त की जमीन का खारा पानी कृषि विज्ञाान केंद्र के लिए सबसे बड़ी बाधा

सॉयल एंड वॉटर हेल्थ लैब भी नहीं हो पायी शुरू

कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों के खेतों के भूमिगत जल और उनकी मिट्टी के नमूनों की जांच के लिए 50 लाख रुपए से ज्यादा की लागत से सॉयल एंड वॉटर टेस्टिंग लैब बनाई गई है। इस लैब में 35 लाख रुपये से ज्यादा कीमत की अत्याधुनिक मशीन लगाई गई, लेकिन यहां के भूमिगत जल में टीडीएस की मात्रा 2000 से भी ज्यादा होने के कारण यह मशीन ही जवाब दे गई।

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आस्था के लिए नहरी पानी, मगर कृषि के लिए नहीं

पिंडारा गांव के महाभारतकालीन पिंडतारक तीर्थ के लिए तो नहरी पानी मिल रहा है, मगर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि फार्म के लिए नहीं मिल रहा। नतीजा यह है कि इस कृषि फार्म पर नहरी पानी के अभाव में फ्रूट प्लांट भी तैयार नहीं हो पा रहे और न ही यहां उन्नत किस्म के बीजों का उत्पादन हो पा रहा है।

आरओ के पानी से चलाएंगे लैब : डॉ. पंवार

कृषि विज्ञान केंद्र जींद के प्रभारी डॉ. आरडी पंवार से केंद्र में नहरी पानी के अभाव समेत दूसरे मसालों पर बात की गई। डॉ. पंवार ने कहा कि केवीके तक नहरी पानी लाने का चैनल बंद है। इसका निर्माण कुछ किसान नहीं होने दे रहे, जिनके खेत से चैनल का रास्ता है। सॉयल एंड वाटर टेस्टिंग लैब का जहां तक सवाल है तो, उसके लिए टैंकर के आरओ के पानी का इंतजाम कर लैब चालू की जाएगी।

मंजूरी के 22 साल बाद भी नहीं पहुंचा नहरी पानी

कृषि विज्ञान केंद्र के लिए साल 2002 में तत्कालीन चौटाला सरकार ने नहरी पानी मंजूर किया था। नहरी पानी तो मंजूर हो गया मगर, जिन किसानों के खेतों से कृषि विज्ञान केंद्र तक नहरी पानी के लिए नाला निकलना था, उन्होंने नाला बनने ही नहीं दिया। यहीं नहीं जब कृषि विज्ञान केंद्र के लिए पंचायती जमीन दी गई थी, तब इस जमीन के लिए सरकारी रिकॉर्ड में नहरी पानी का नाला था, लेकिन तत्कालीन प्रभारी डॉ. यशपाल मलिक को नहरी पानी का नाला हकीकत में कहीं मिला ही नहीं था।

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