सफीदों को कभी नहीं मिली कैबिनेट में जगह, हमेशा विकास को रहा तरसता
रामकुमार तुसीर
सफीदों, 30 सितंबर
सफीदों विधानसभा क्षेत्र का इतिहास लगभग उतना ही पुराना है, जितना देश की स्वतंत्रता का इतिहास है। इसी आधार पर प्रदेश के बहुत सारे विधानसभा क्षेत्रों में सफ़ीदों काफी सीनियर है। वर्ष 1952 के विधानसभा चुनाव में भी संयुक्त पंजाब में सफीदों विधानसभा क्षेत्र था, जहां से इंदर सिंह को विधायक चुना गया था। फिर वर्ष 1957 में अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात सफीदों के वैद श्री कृष्ण को लोगों ने चुनकर विधानसभा भेजा। सफीदों का यह 17वां विधानसभा चुनाव है और इस विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास में आज तक यहां के किसी भी विधायक को प्रदेश की कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया। न कभी भाजपा का विधायक बना और न ही कभी किसी महिला प्रत्याशी की ताजपोशी हुई। अनुसूचित जाति वर्ग की पहुंच से भी यह अनारक्षित सीट दूर ही रही। खुद के ‘दम’ से विहीन ज्यादातर विधायक अपने ‘आकाओं’ के पिछलग्गू बनकर ही समय गुजार गए जो समय-समय पर अपने मुख्यमंत्री की सभा में सामान्य विकास परियोजनाओं के लिए भी मंच पर गिड़गिड़ाते रहे। यह भी महाभारतकालीन महत्व के सफ़ीदों नगर व इसके इलाके के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है। वर्ष 1987 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री, इनेलो सुप्रीमो से नाराज होकर सफ़ीदों के मतदाताओं ने चेतावनी के साथ यहां के छापर गांव के सरीफ बुजुर्ग सरदूल सिंह को निर्दलीय लड़ाकर ऐतिहासिक जीत दिलाई, लेकिन वह चौटाला व उनकी सरकार की गोद में जाकर बैठ गए। हलके के लिए कुछ करने की न उनकी उम्र थी, न उनमें जुनून था और न ही दम था। तब यहां का मतदाता ठगा सा रह गया था।