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मानसून में वन्यजीवों को लीलती सड़कें

08:39 AM Jul 05, 2024 IST
मानसून में वन्यजीवों को लीलती सड़कें
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मानसून के मौसम में दूसरे मौसम के मुकाबले इन सड़कों में 14 प्रतिशत ज्यादा रेंगने वाले जीव मारे जाते हैं। मारे जाने वाले इन जीवों में 80 फीसदी सांप होते हैं, जिसमें दुर्लभ होते इंडियन कोबरा की भी अच्छी-खासी तादाद होती है।

के.पी. सिंह

मैसूर स्थित नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन ने अपने एक शोध अध्ययन में पाया कि मानसून के मौसम में सड़क पर वाहनों की चपेट में आने से सबसे ज्यादा उभयचर जीवों की मौत होती है। गर्मी के मौसम में जब गर्मी से परेशान होकर जंगली जीव, जंगलों से बाहर आते हैं तो वे सबसे ज्यादा दुर्घटना का शिकार होते हैं। लेकिन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के शोध ने साबित किया कि गर्मी के मुकाबले मानसून में एक्सीडेंट से मरने वाले जीवों की संख्या करीब 2.4 फीसदी ज्यादा थी।
वाइल्ड लाइफ एसओएस द्वारा एक रिपोर्ट से पता चला कि कर्नाटक में पांच सालों की अवधि के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में 23 तेंदुए मारे गये। तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटना का शिकार मेढक का ‘टोड’ हुआ। इसी तरह पेंच टाइगर रिजर्व में हर दिन 10 किलोमीटर के दायरे में 1.13 दुर्लभ सांप मारे गये। भारत जैसे देश में मानसून के दौरान इन दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है।
दरअसल, पूरी दुनिया में सड़कों का जाल लगातार फैल रहा है। इस कारण भी वन्यजीवों के रहने की जगह लगातार सिकुड़ रही है। संरक्षित वन्यजीव क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली सड़कें भले ज्यादातर समय खाली और सुनसान रहती हों, लेकिन वहां से तेज रफ्तार गुजरने वाले वाहन कभी भी वन्यजीवों के लिए भयानक अभिशाप बन जाते हैं। यह सच है कि जंगल के बीच से तेज रफ्तार गुजरती कार किसी भी जंगली जानवर के लिए घातक चोट या मौत की वजह बन सकती है। इसलिए जब भी वन्यजीवों के लिए संरक्षित क्षेत्रों से सड़कें निकाली जाती हैं, तो वह एक तरह से जंगली जानवरों के लिए मौत का फरमान होती हैं।
साल 2009-10 से 2020-21 के बीच अकेले पश्चिम बंगाल में 57 हाथी उन रेलगाड़ियों से दुर्घटना का शिकार होकर मारे गये, जो रेलगाड़ियां वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों से निकलती हैं। मई, 2013 में जलपाईगुड्डी के गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान के पास पूर्वी चपरामारी जंगल से गुजर रही एक यात्री ट्रेन ने 17 हाथियों को कुचल दिया। हाल के सालों में यह सबसे भीषण दुर्घटना थी, जिसमें पांच वयस्क और दो बच्चा हाथियों की मौत हो गई और दस दूसरे हाथी भीषण तरीके के घायल हो गये। लेकिन इतने बुरे अनुभवों के बाद भी वाइल्ड लाइफ रिजर्व क्षेत्र से गुजरने वाली सड़कों या रेलगाड़ियांे से होने वाली मौतों को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं सोचे गये। खासकर मानसून के दिनों में ये सड़कें जंगली जानवरों के लिए बेहद जानलेवा हो जाती हैं।
वास्तव में मानसून के मौसम में उभयचर जीव, रेंगने वाले जीव, पक्षी, केंचुए, एनेलिटा समूह के खंडयुक्त कीड़े, मकड़ी, बिच्छू, अष्टपाद कीट, सेंटीपीट, केकड़े और तमाम स्तनधारी जीव समूह की सड़क दुर्घटनाओं में भारी इजाफा हो जाता है। मानसून के मौसम में दूसरे मौसम के मुकाबले इन सड़कों में 14 प्रतिशत ज्यादा रेंगने वाले जीव मारे जाते हैं। मारे जाने वाले इन जीवों में 80 फीसदी सांप होते हैं, जिसमें दुर्लभ होते इंडियन कोबरा की भी अच्छी-खासी तादाद होती है। इसी मौसम में सिपाही बुलबुल, वाइट थ्रोट किंगफिशर, चूहे, धारीदार गिलहरियां, चमगादड़, छछूंदर, घोंघे, तितलियां और मकड़ियां सबसे ज्यादा वन्यजीव रिजर्व क्षेत्रों में वाहनों की चपेट में आती हैं, क्योंकि इन दिनों ये वन्य रिजर्व क्षेत्रों से निकलने वाली सड़कों में खूब मौज-मस्ती करने के लिए निकल आते हैं।
जानवर इंसानों की तरह अपना बचाव करने में माहिर नहीं होते। भले यहां सड़कें और पटरियां बनी रहें ताकि इन क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारी यहां आसानी से आ जा सकें, लेकिन आम लोगों और आम रेलगाड़ियों को इन संरक्षित क्षेत्रों से गुजरने पर प्रतिबंध लगे, नहीं तो पहले से ही लुप्त हो रहे वन्यजीव हमारे इस सुविधा भोगी रवैये और तेजी से नष्ट हो जाएंगे।

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इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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