तकनीक निर्माताओं को जवाबदेह बना घटेगा जोखिम
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीप-फेक को लेकर चिंता जताई थी, उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके डीप-फेक बनाने को समस्यापूर्ण बताया। प्रधानमंत्री ने मीडिया से आह्वान किया कि वह लोगों को इससे संलग्न जोखिमों के बारे में शिक्षित करें।
हालिया वर्षों में, एआई तकनीक में हुई तेजी से तरक्की ने नागरिक कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में बेहतर मौके देने के साथ-साथ नई चुनौतियां भी पेश कर दी हैं। जहां एआई तकनीक विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर नये हल बताती है, वहीं इसने कुछ नए खतरे भी बना डाले हैं। इसमें डीप-फेक निर्माण और इसके जरिए सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने से जुड़े जोखिम की चुनौतियां भी शामिल हैं। एआई से चुनौती न केवल इससे जनित समस्याओं की है बल्कि इसका एक जन्मजात अवगुण यह है कि सैद्धांतिक तौर पर इनको नियंत्रित करना लगभग असंभव है। जो नियम-कायदे इसके लिए बने हैं, यह तकनीक उन्हीं को गच्चा देने की समर्था रखती है।
एआई का समावेश सामाजिक व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं में करने से कानून एवं व्यवस्था लागू करवाने में नई-नई चुनौतियां दरपेश हैं। ऐसी एक चिंता है तकनीक के जरिए हेराफेरी कर किसी का चरित्र हनन। ऐसे कृत्यों में सबसे आगे है एआई से बनी डीप-फेक पोस्ट्स, जो हैरानकुन वास्तविकता वाली छद्म वीडियो और ऑडियो क्लिप बनाने में सक्षम है। ऐसे डीप-फेक उत्पादों से नागरिकों की सूचना की विश्वसनीयता और प्रशासन पर यकीन घटने का बहुत बड़ा खतरा बन गया है और साथ ही कानून लागू करवाने वाली एजेंसियों के लिए असली-नकली के बीच फर्क कर पाना बहुत मुश्किल हो चला है।
यूं तो सोशल मीडिया का एआई एल्गोरिदम प्रयोगकर्ता के उपयोग अनुभवों में इजाफा करता है, लेकिन इससे तथ्यों से छेड़छाड़, गलत सूचनाएं और सामाजिक रार पैदा करने का खतरा भी पैदा हो गया है। एआई द्वारा चालित बॉट्स और एल्गोरिदम से बैर करने वाली सामग्री से लोगों की सोच बदलने और समाज के विभिन्न तबकों के बीच ध्रुवीकरण बढ़ाया जा सकता है। लिहाजा ऑनलाइन खतरों के इस परिदृश्य से निपटने के लिए प्रतिरोधी नीतियों में निरंतर बदलाव करते रहना अनिवार्य बन गया है। भ्रामक सूचना फैलाने वाले अभियानों में, एआई चालित तकनीकें बहुत बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार का निर्माण और प्रसार आसान बना रही हैं। जैसे-जैसे एआई तकनीक का एकीकरण महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक व्यवस्था में हो रहा है, साइबर अटैक का जोखिम बढ़ रहा है, अतएव ऐसे अत्याधुनिक उपाय करने जरूरी हो जाते हैं, जो गतिशील एआई-चालित नीतियों के जरिए निरंतर प्रतिरोधात्मक उपाय कर सके।
एआई निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में जवाबदेही न होने से नागरिकों के भरोसे का ह्रास हो सकता है। इससे कानून-व्यवस्था लागू करवाने को यकीनी बनाने की खातिर किसी एआई मॉडल की मंशा को वक्त रहते समझ में आने योग्य समर्था पास होने की अहमियत को बल मिलता है। पक्षपातपूर्ण एल्गोरिदम से बनी चिंताएं, एआई मॉडल्स का अबाध इस्तेमाल और फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक नागरिक निजता की स्वतंत्रता बरकरार रखने हेतु एक क्रियाशील तंत्र और नैतिकतापूर्ण एआई की स्थापना के महत्व को रेखांकित करती है।
वीडियो आधारित निगरानी में एआई का समावेश बेशक निगरानी व्यवस्था में क्षमता में इजाफा होता है लेकिन इससे नई चुनौतियां भी बन रही हैं, मसलन, फुटेज में छेड़छाड़। दृश्य-प्रमाणों की विश्वसनीयता बनाए रखने को सत्यापना एवं सुरक्षा रणनीति बनाना जरूरी है। अनुमान आधारित पुलिस तैनाती, एआई एल्गोरिदम के जरिए अपराधी के संभावित वारदात-स्थल का पूर्वानुमान लगाने संबंधित प्रणाली में एक चुनौती यह भी है कि कहीं ऐसा न हो कि मौजूदा असमानता भरी प्रवृत्ति पक्षपाती एल्गोरिदम बनाने में भी कायम रहे। नागरिकों का कानून-व्यवस्था में भरोसा बनाए रखने के लिए पूर्वानुमान आधारित पुलिस तैनाती मॉडल का पक्षपात रहित रहना जरूरी है। एआई प्रणाली के अंदर एल्गोरिदम की जवाबदेही और पक्षपात रहित रहना एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि किन्हीं खास समूहों को निशाना बनाने और अन्यायपूर्ण शिनाख्त की संभावना है।
फिर निजता संबंधी चिंताएं, खासकर फेशियल रिकॉग्निश्न तकनीक से कानून व्यवस्था बनाए रखने में एआई का उपयोग और किसी व्यक्ति की निजता के बीच संतुलन कितना हो, इस पर सवाल पैदा हो रहा है। विचारपूर्ण चिंतन और क्रियान्वयन सावधानियां अनिवार्य हैं। एआई चालित निगरानी प्रणाली के व्यापक उपयोग से ‘हरेक पर हर वक्त’ नज़र रखने वाला निज़ाम बन जाने की भी चिंताएं पैदा हो रही हैं। नागरिक सुरक्षा और व्यक्तिगत निजता की आजादी के बीच संतुलन रखना, संभावित सामाजिक अराजकता से बचाने में महत्वपूर्ण होगा।
कानूनी फैसलों की प्रक्रिया में एआई का समावेश होने पर भी जवाबदेही, पारदर्शिता और ईमानदारी बाबत सवाल उठने लगे हैं। कानूनी फैसले लेने में दक्षता बढ़ाने को एआई को अधिमान और समानता एवं पारदर्शिता बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए चुनौती होगा। स्वतंत्र रूप से काम करने वाली प्रणालियां, जैसे कि एआई युक्त ड्रोन या वाहन, नागरिक सुरक्षा पर चिंता पैदा कर रहे हैं, क्योंकि दुष्ट प्रवृत्ति लोगों द्वारा इनको हैक करके दुरुपयोग की संभावना रहेगी।
एआई में यह संभावना भी है कि वह कानूनी नुक्तों का दोहन और दुरुपयोग करके खुद कानून को ही गुमराह करने वाले कानूनी कमजोरियों को पहचान ले, विशेषकर साइबर अपराध नियंत्रण और एआई नियमन में। क्योंकि एआई तकनीक आभासीय गणना और मॉडलिंग के जरिए कानूनी तंत्र में मौजूद कमजोरियों को ढूंढ़ने, खामियों और कमियों की सटीक शिनाख्त करके उन्हें उजागर करने की योग्यता रखती है। इसका स्वचालित कानून विश्लेषण, नैसर्गिक भाषा प्रसंस्करण और मशीन लर्निंग क्षमता कानून की किताबों की छानबीन करके कमजोर बिंदुओं की पहचान कर उनका दोहन किए जाने की संभावना और उन क्षेत्रों की बारीकी से पहचान कर सकती है, जहां कहीं कानून में अस्पष्टता हो। सुरक्षा की जांच करने में, एआई चालित तकनीकी उपाय साइबर अपराध और एआई नियमन से संबंधित डिजिटल व्यवस्था में व्याप्त कमज़ोरियों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस तरीके से हमें संभावित खतरों की समझ बनाने और प्रभावशाली प्रतिरोधी उपाय विकसित करने में मदद मिलेगी। एडवरसैरियल एआई तकनीक से इस खोज कार्य में एक अतिरिक्त परत जुड़ जाती है, जहां पर अनुसंधानकर्ता ऐसे एआई मॉडल बनाने में लगे हैं जो मौजूदा सुरक्षा उपायों को गच्चा देने योग्य एआई की शिनाख्त कर सके।
एआई कानून-व्यवस्था लागू करवाने के स्वरूपों का पूर्व-विश्लेषण करने में भी सहायक है। पिछले समय के कानून पालना डाटा का विश्लेषण करते हुए एआई व्यवस्था पालना करवाने में चलनों और खामियों की शिनाख्त कर लेती है, यह उन गतिविधियों की बारीकी से शिनाख्त कर सकती है, जो अन्यथा नज़रअंदाज रहती हैं। यह सूक्ष्म पहचान नीति निर्धारकों को चुनौतियों से निपटने में नियामक तंत्र को परिष्कृत एवं सुदृढ़ करने में मार्गदर्शन करती है। वर्ष 2018 में कार्यबल द्वारा दी रिपोर्ट पर काम करते हुए नीति आयोग ने फरवरी, 2021 मे ‘जवाबदेह एआई सिद्धांत’ दस्तावेज बनाने का प्रस्ताव किया था। वर्तमान में, सरकार एआई को डिजिटल अर्थव्यवस्था, विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति हेतु एक उत्प्रेरक की तरह लेती है और निजता संबंधी कानून, डाटा सुरक्षा, बौद्धिक संपदा एवं साइबर सुरक्षा के जरिए नियमन प्रणाली बनाने की योजना रखती है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक मंत्रालय एआई को डिजिटल इंडिया अभियान के अंग के तौर पर ले रहे हैं, तो सरकार ने कौशल उन्नयन, स्वास्थ्य, रक्षा, कृषि और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में विकासशील पहलकदमी की है।
भले ही एआई के वर्तमान फायदे संभावित खतरों पर भारी हैं, लेकिन भविष्य में दुरुपयोग और नियमन को चुनौतियों का खतरा भी है। जवाबदेह एआई व्यवस्था सुनिश्चित करने में, सतर्क बने रहकर और प्रति-सक्रिय होकर इन खतरों का निदान निकालना अहम है।
लेखक पंजाब पुलिस में महानिदेशक और वर्तमान में पंजाब हाउसिंग बोर्ड के महाप्रबंधक हैं।