पुरस्कार नीति
तर्कसंगत नीति बने
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अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण रजत, कांस्य, पदक जीतने वाले खिलाड़ी देश का गौरव बढ़ाते हैं। ओलंपिक खेल में प्रत्येक प्रतिभागी जीतने का हरसंभव प्रयास करता है। विजेता होने पर केंद्र अथवा राज्य सरकारें उचित पुरस्कार, नौकरी प्रदान कर खिलाड़ी का उत्साहवर्धन करती हैं। लेकिन सम्मान पुरस्कार निधि में एकरूपता का अभाव पदक विजेता खिलाड़ियों में हीन भावना को जन्म देती है। केंद्र सरकार को कोई ठोस तर्कसंगत पुरस्कार नीति अपनाकर खिलाड़ियों को उनके योगदान के लिए समान सम्मान राशि प्रदान करनी चाहिए ताकि खिलाड़ियों में कोई कमी न खले।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
नीतिगत फैसला हो
अनिल शर्मा, चंडीगढ़
एकरूपता हो
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़
केंद्र ही दे पुरस्कार
अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में देश का मान बढ़ाकर पदक लाने वाले खिलाड़ियों को बड़े पुरस्कार देकर उनका सम्मान करना हम सब देशवासियों का कर्तव्य है। लेकिन इस में एकरूपता भी होनी चाहिए। भारतीय ओलम्पिक संघ की सिफारिश के अनुसार स्वर्ण पदक के लिए 75 लाख, रजत के लिए 40 लाख व कांस्य पदक के लिए 25 लाख रुपये की धनराशि पुरस्कार स्वरूप दी जानी चाहिए। इस प्रकार अलग-अलग प्रदेशों में पुरस्कार राशि भी अलग-अलग है। ऐसे में कम पुरस्कार राशि मिलने वाले खिलाड़ी का उत्साह कम होना स्वाभाविक है। खिलाड़ी किसी प्रदेश का हो वह प्रतिस्पर्धा में अपने देश भारत का प्रतिनिधित्व करता है। अतः ये पुरस्कार भी उन्हें भारत सरकार की ओर से मिलने चाहिए।
शेर सिंह, हिसार
मनोबल न गिरे
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
समान राशि मिले
जगदीश श्योराण, हिसार
पुरस्कृत पत्र
खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में राष्ट्र के लिए पदक जीतते हैं, मगर प्रांतीय आधार पर पुरस्कृत होते ही राष्ट्रीयता गौण हो जाती है। राष्ट्रीयता को क़ायम रखने और पुरस्कार राशि में एकरूपता लाने के लिए भारत सरकार के युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के राष्ट्रीय खेल विकास कोष का उपयोग किया जा सकता है। राज्य और केंद्र सरकार पदक विजेताओं के लिए प्रतियोगिता से पहले ही इनाम की राशि घोषित करे। फिर जितने खिलाड़ी पदक जीतें उस हिसाब से कोष में राशि जमा करा दें। इस तरह से जमा राशि को पूल करके विजेता खिलाड़ियों में, जीते हुए पदक के अनुसार, बराबर रूप से बांट दिया जाये।
बृजेश माथुर, गाज़ियाबाद