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सादर समर्पित, किया-धरा मुफ्त में अर्पित

08:52 AM Dec 27, 2023 IST
सादर समर्पित  किया धरा मुफ्त में अर्पित
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अशोक गौतम

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लो जी! किताब छप कर आ गई। मैं कालजयी हुआ। अब यक्ष प्रश्न! इन सौ किताबों का क्या करूं? हे सरस्वती मैया! मुझे अगली किताब छपवाने का वरदान दो या न, पर खरीदी किताबों के पैसे पूरे हो जाएं बस!
बस, सोते-जागते एक ही चिंता! किताब के प्रकाशन पर लगे दम को तो मारो गोली, इन खरीदी किताबों के पैसे पूरे हो जाएं तो मुझ लेखक को जैसे ज्ञानपीठ मिले।
सुबह जागने से पहले उठते हुए किताब के मूल्य को निहारते अपने खासमखास दोस्त को पूरे विश्वास के साथ नहीं, आत्मविश्वास के साथ पहला फोन किया। लगा, वह मुझे निराश नहीं करेगा। एक बार जो बोहनी सही हो गई तो... पर जो आपकी किताब खरीदे, समझ लो, वह आपका दोस्त नहीं, ‘बंधु! तुम्हें यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि तुम्हारे प्रिय लेखक की पुस्तक छप कर आ गई है।’
‘कब आई? बधाई हो! कैसी छपी है किताब? अब तो तुम भी कालजयियों की पंक्ति में आ गए। तो मेरे घर मुझे अपनी किताब सादर समर्पित करने कब आ रहे हो? सच कहूं! मेरा मन तुम्हारी किताब के लिए बेताब हो रहा है।’ लो जी! पहली ही किताब बेचने निकला था और हो गई सादर समर्पित! मैंने तो सोचा था कि बंधु कहेंगे, बता, कितनी कीमत है तेरी किताब की! बस! चार सौ केवल! अभी गूगल पे कर देता हूं। किताब बाद में फिर कभी दे जाना। पता नहीं किसका मुंह देखकर किताब प्रकाशन को भेजी थी?
‘कल आता हूं,’ मैंने कहा और फोन काट दिया। तब लगा, मैंने ज्यों फोन नहीं, अपने हाथों अपना नुकसान किया हो। कुछ देर तक पता नहीं साहस जुटाते क्या सोचता रहा? मत पूछो! अपने मित्रों को किताब बेचने के लिए कितना साहस जुटाना पड़ता है? फिर अपने दूसरे मित्र को फोन लगाया, ‘और बंधु कैसे हो? तुम्हें यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि तुम्हारे प्रिय लेखक की किताब छप कर आ गई है। मूल्य केवल चार सौ है। अपने खास मित्रों को स्पेशल बीस प्रतिशत डिस्काउंट!’
‘बधाई अनंत हे मेरे प्रिय लेखक! तो कब आ रहे हो अपने मित्र को कांप्लिमेंटरी कॉपी देने? सच कहूं डियर! मेरा मन तुम्हारी किताब देखने को वैसे ही तड़प रहा है जैसे मध्यवर्गीय खाना न बनाना आने वाले पति का मन मायके गई बीवी को देखने को तड़प उठता है।’
लो भाई साहब! एक और प्रति अपने मित्र को सस्नेह भेंट की बलि चढ़ी। सच मानो या न, पर पूरे सौ पैसे सच कह रहा हूं। अब तक लेखकीय प्रतियों समेत अपनी किताब की सारी प्रतियां मित्रों को सादर समर्पित हो चुकी हैं। हे मेरे बचे मित्रो! अब मुझे चार पांच दिनों के भीतर बता दीजिए कि आपको अपनी किताब की और कितनी प्रतियां शुभकामनाओं सहित, सादर समर्पित करने को मंगवाऊं?

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