For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

औद्योगिक क्षेत्र से श्रमिकों का कृषि की ओर बढ़ता रुझान

07:22 AM Nov 19, 2024 IST
औद्योगिक क्षेत्र से श्रमिकों का कृषि की ओर बढ़ता रुझान
Advertisement

देविंदर शर्मा

Advertisement

शहरों में जाकर काम करने वाले भारत के लोग बड़ी संख्या में अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। ग्रामीण अंचलों के श्रमिकों को ‘कम मुनाफादायक’ कृषि से शहरी केंद्रों में बेहतर रोज़गार के अवसरों की तलाश में धकेलने वाली नीति-समर्थित चाल पिछले पांच सालों में उलट गई लगती है। रिवर्स माइग्रेशन (गांवों की और वापसी) में तेज़ी का संकेत सबसे पहले कोविड-19 महामारी के दौरान मिला, जब लाखों शहरी ग़रीबों ने लंबी दूरी तय की, ज़्यादातर पैदल -जिसे विभाजन के दिनों के बाद लोगों के सबसे बड़े आवागमन के रूप में देखा गया। इस अभूतपूर्व अंतर-राज्यीय या फिर राज्य के भीतर ही हुए स्थानांतरण को पहले अस्थायी माना गया था, लेकिन इस उम्मीद को धता बताते हुए कि महामारी खत्म होने के बाद कार्यबल शहरों में वापस लौट आएगा, अधिकांश प्रवासियों ने अपने मूल स्थान पर ही रहना चुना।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षणों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और नई दिल्ली स्थित मानव विकास संस्थान ने एक रिपोर्ट में पहली बार कृषि संबंधी रोज़गार में लगे लोगों की संख्या में वृद्धि पर मुहर लगाई है। आम धारणा के विपरीत, अनुमान है कि 2020 और 2022 के बीच ग्रामीण कार्यबल में 5.6 करोड़ श्रमिक जुड़े। इससे पता चलता है कि बेरोजगारी के साथ विकास के आलम में, शहरों में उपलब्ध रोजगार अवसर प्रवासियों के लिए अब आकर्षक नहीं रहे। चाहे यह मेन्युफेक्चरिंग क्षेत्र में बनी मंदी की वजह से हो या निर्माण क्षेत्र की नौकरियों में गिरावट की वजह से, प्रवासियों ने गांव वापसी करना बेहतर समझा।
अलबत्ता, इसके बाद सावधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2023-24 ने आर्थिक डिजाइन के अनुसार जनसंख्या परिवर्तन में उलटफेर दिखाया - जो कृषि कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा खेती से दूर चले जाने को लेकर था। रोचक है कि 2004-05 और 2018-19 के 13 साल में 6.6 करोड़ कृषि कार्यबल ने शहरों में छोटे-मोटे रोजगार की तलाश में पलायन किया था लेकिन जेएनयू के अर्थशास्त्री हिमांशु के मुताबिक, अगले पांच सालों (2018-19 से 2023-24) के बीच 6.8 करोड़ लोगों की गांव वापसी हुई। ऐसा नहीं है कि कृषि अचानक से लाभदायक हो गई,लेकिन जिस प्रकार रिवर्स माइग्रेशन की दर ने आर्थिक नीति के आधार पर संरचनात्मक परिवर्तन करवाने के अपेक्षित फायदों को उलट दिया है, उसने दिखा दिया है कि लोगों को खेती छुड़वाने वाली रणनीति व्यवहार्य नहीं थी।
पीएलएफएस सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रामीण कार्यबल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 2018-19 में 42.5 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 46.1 प्रतिशत हुआ है, जोकि खेती में फिर से जुड़ा कुल आंकड़ा है- और इसमें युवाओं की बड़ी संख्या है –इससे जो संदेश मिलता है उसे अब और अधिक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जबकि लोकप्रिय आर्थिक सोच एक दोषपूर्ण प्रारूप पर आधारित है, जिसने लोगों को इस क्षेत्र से बाहर करने की चाह से सालों तक कृषि को जानबूझकर घाटे का व्यवसाय बनाए रखा ताकि मजबूर होकर शहरों की और पलायन हो। दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चले आंदोलन के बाद कृषकों के प्रदर्शनों में बड़ी संख्या, उचित आय से महरूम रखने के विरुद्ध उनका रोष दर्शाती है।
यह साल 1996 था जब विश्व बैंक ने चाहा था कि भारत के 40 करोड़ लोगों को कृषि क्षेत्र से बाहर निकाला जाना चाहिए - जोकि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की संयुक्त आबादी के दोगुने के बराबर है - ताकि उन्हें शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़े और वहां श्रमबल उपलब्ध हो। जबकि पलायन में सहायक बनने वाली स्थितियां बनाने के बजाय खेती को व्यवहार्य उद्यम बनाकर कृषि के पुनर्निर्माण पर जोर दिया जाना चाहिए था। यही महात्मा गांधी चाहते थे, और जिस दर से प्रवासी वापस लौटे हैं, उससे पता चलता है कि वे कितने सही थे। इसलिए, अब समय है कि विश्व बैंक की उक्त नीति को खारिज कर कृषि को पुनर्जीवित करने और खेती को एक टिकाऊ, व्यवहार्य और लाभकारी उद्यम बनानेे पर फोकस किया जाए।
अगर आप अभी भी आश्वस्त नहीं हैं, तो हाल ही में जारी राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2021-22 की रिपोर्ट देखें। इसके अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में कृषि में लगी आबादी का हिस्सा काफी बढ़ गया है। साल 2016-17 में 48 प्रतिशत से 2023-24 में 57 फीसदी के उच्च स्तर तक, कृषि परिवारों की संख्या में भारी उछाल स्पष्ट रूप से मूल निवास पर वापसी की ओर इशारा करता है। पंजाब को छोड़कर, जहां कृषि में लगे परिवारों की हिस्सेदारी 2016-17 में 42 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 36 प्रतिशत रह गयी, हिमाचल में 70 से 63 प्रतिशत व गुजरात और कर्नाटक में थोड़ी-बहुत वृद्धि है। कुल मिलाकर,कई राज्यों में कृषि में लगे परिवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। गोवा में कृषि परिवारों की संख्या 3 फीसदी से बढ़कर 18 प्रतिशत, हरियाणा में 34 से 58 प्रतिशत, उत्तराखंड में 41 से 57 प्रतिशत और तमिलनाडु में 13 से 57 प्रतिशत हो गई है। अधिकांश अन्य राज्य भी कृषि की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाते हैं।
कारण जो भी हों, आईएलओ, पीएलएफएस और नाबार्ड के ये तीन सर्वेक्षण और अध्ययन रोजगार और आजीविका चुनौतियों का सामना करने में कृषि का महत्व दिखाते हैं, घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इस क्षेत्र की क्षमता को न भूलें। जबकि मुख्यधारा की आर्थिक सोच रिवर्स माइग्रेशन की उस दर से निराश है जिसने कृषि क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या कम करने के सभी पिछले पैंतरों को उलट दिया, मुख्यधारा के अर्थशास्त्री और आर्थिक लेखक कृषि रोजगार में वृद्धि को ‘चिंताजनक’ और ‘चिंता का विषय’ के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। भारत में देखा जा रहा विपरीत पलायन का यह नमूना निम्न मध्यम आय वर्ग के लिए अनूठा है, लेकिन यह कृषि के पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक नीतियों को पुनर्जीवित करने की बढ़ती आवश्यकता का संकेत है।
बदलती जमीनी हकीकत को स्वीकार करने का समय आ गया है। कृषि पर निर्भरता अपने आप ही व्यवहार्य रास्ते बना लेगी, बशर्ते सरकार पर्याप्त संसाधन लगाने को तैयार हो। सर्वप्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अर्थशास्त्रियों को कृषि के लिए बजटीय परिव्यय में किसी भी प्रस्तावित वृद्धि को राजकोषीय घाटे में वृद्धि के रूप में देखना बंद कर देना चाहिए। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओएलसीडी) के अनुसार, 54 प्रमुख कृषि अर्थव्यवस्थाओं में से भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई बजटीय प्रावधानों के जरिये नहीं की जाती। जैसा कि यह लेखक अक्सर कहता आया है, किसान लगभग 25 वर्षों से साल-दर-साल ‘घाटे की फसल’ काट रहे हैं। किसानों को ‘भगवान भरोसे’ छोड़ने वाला यह दोषपूर्ण आर्थिक डिजाइन समाप्त होना चाहिए। रिवर्स माइग्रेशन को शुभ समाचार के रूप में देखा जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि संसाधनों को वहां लगाया जाए, जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। आखिरकार इसी से बनेगा : सबका साथ, सबका विकास।

लेखक कृषि एवं खाद्य मामलों के विशेषज्ञ हैं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement