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विकसित भारत के संकल्प

08:44 AM Dec 25, 2023 IST
विकसित भारत के संकल्प
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सुरेश सेठ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकसित भारत के संकल्प के लिए जागरण, उद्यम और मेहनत के महत्व को बताया है। यह भी कि कर्तव्य पथ पर निरंतर चलने के बाद ही एक-चौथाई सदी के बाद देश विकसित हो सकेगा। अब अपनी इस सोच को बदलना होगा कि हम सदियों से अल्पविकसित देश हैं या पौन सदी से विकासशील हैं। बल्कि यह मानिए कि हम विकसित हैं और भविष्य में और विकसित होंगे। जब विकसित भारत की भावना लोगों के मन में आ जाएगी और उन्हें उनके लिये बनायी सभी योजनाओं की जानकारी मिल जाएगी तो वे भी संकल्प करेंगे कि राष्ट्र निर्माण के लिए वे भी अपना योगदान दें।
यह वह समय है जब हमने आज़ादी का अमृत महोत्सव मना लिया। अब वह समय आ गया है जब हम कर्तव्य पथ पर निरंतर चलते रहें। उस मूलभूत आर्थिक ढांचे की सहायता से चलें, जिसकी स्थापना अब हमारे बजटों का लक्ष्य है। आंकड़े गवाही देते हैं कि कोर उद्योगों में हमें गति प्राप्त हो रही है। देश में विनिर्माण की ओर भी जड़ें गहरी हो रही हैं। अब तो खेतीबाड़ी के विकास के लिए भी सहकारिता को एक अलग उद्योग के रूप में स्थापित कर दिया गया है। फिर अब नहीं तो कब अपनाएंगे उस विकसित भारत संकल्प यात्रा को, जो 2047 में खत्म होनी है।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि हमने पिछले दस वर्षों में विश्वभर में दसवीं आर्थिक शक्ति से तरक्की करके पांचवीं आर्थिक शक्ति का मुकाम हासिल कर लिया। वह वादा करते हैं कि अपनी तीसरी शासन पारी में वह देश को दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बना देंगे। इस दिशा में केवल संकल्प ही नहीं, कुछ नये कदम भी उठाए जा रहे हैं। इसके लिए एक देश एक कर अर्थात‍् जी.एस.टी. का सफलतापूर्वक लागू होना, अपने पहले लक्ष्य एक लाख करोड़ को पार करके 1.60 लाख करोड़ तक पहुंच जाना और उसके करदाताओं की संख्या का बढ़कर 1.40 करोड़ हो जाना। यही नहीं, आत्मनिर्भरता का आह्वान भी हमें सफल होता नजर आ रहा है।
आज हमारी सेना आयुध के लिए दूसरे देशों पर निर्भर नहीं बल्कि हम हथियारों के आयातक की जगह निर्यातक बन गए हैं। कोविड के साथ हम सफलतापूर्वक निपटे हैं। हमारी मौद्रिक नीति ने बढ़ती कीमतों के सैलाब को रोक दिया है। युवा पीढ़ी में बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या से खुले हाथों निपटने के लिए स्वरोजगार या स्टार्टअप उद्योगों की भावना को विकसित किया गया है। नौजवानों को संदेश है कि वे नौकरी के लिए हाथ फैलाने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनें। इसके लिए उन्हें कृत्रिम मेधा और इंटरनेट शक्ति की सहायता से विकसित देशों के मुकाबले में खड़ा किया जाए।
भारत ने दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले आगे बढ़कर कोरोना की लहरों का मुकाबला किया। उसके द्वारा ईजाद किए गए टीके आज दुनिया के छोटे-बड़े देशों में निर्यात हो रहे हैं। नई शिक्षा नीति आ गई है। यह जितनी रोजगारपरक होगी, उतना ही नौजवानों का पलायन अपने देश से दूसरे देशों की ओर रुक जाएगा। लेकिन इस उम्मीद भरे वातावरण में आर.बी.आई. के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस रास्ते में खड़े हो सकने वाले अवरोधों और कमजोरियों का संज्ञान लेने की ताकीद की है। उनका कहना है कि अगर देश की विकास दर सालाना औसतन 6 फीसदी ही रहती है तो देश 2047 तक भी विकसित अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि मध्यम आय वाला देश ही बना रहेगा, क्योंकि भारत की कराधान नीति ऐसी है और भारत में निजी क्षेत्र को सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले इस प्रकार वरीयता दी जा रही है कि भारत की इस विकसित भारत संकल्प यात्रा के उद्देश्य और लक्ष्य अवरोधित होने लगते हैं।
रघुराम राजन ने तो यह भी कहा कि यही हाल रहा तो 2047 तक आज जो युवा देश की युवा शक्ति का लाभ देश को प्राप्त हो रहा है, वह भी खत्म हो जाएगा। हम अमीर होने से पहले ही वृद्ध हो जाएंगे। देश पर बड़ी उम्र की आबादी का बोझ बढ़ रहा है। औसत आयु बढ़ने के साथ-साथ यह देश भी अपने पड़ोसी देशों चीन और जापान की तरह एक वृद्ध देश बन जाएगा, जिससे इसको सस्ती श्रम लागत से मिलने वाले लाभ भी खत्म होते जाएंगे। आज भी यह हाल है कि वर्तमान विकास दर अगर 7 प्रतिशत तक चली जाए, तो भी श्रम की भागीदारी इसमें काफी कम है। देश डिजिटल हो रहा है। स्वचालित मशीनों का युग है जहां शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम है।
भारत में महिलाओं की भागीदारी अन्य देशों के मुकाबले कम है। जहां तक युवा शक्ति का संबंध है, उनके लिए कोई उचित कार्य या उद्यम नीति तो सामने आ नहीं रही और उन्हें सरल रास्ता यही लगता है कि वे देश छोड़ डॉलर और पौंड देशों की ओर पलायन कर जाएं। महिला कामगारों की उपेक्षा आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो विकसित होने की इस संकल्प यात्रा की रुकावट बन सकते हैं। महिला श्रम शक्ति ऐसी शक्ति है जिसके उचित इस्तेमाल की नीति तत्काल सामने आनी चाहिए।

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लेखक साहित्यकार हैं।

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