प्राकृतिक जीवन में शतायु के संकल्प
कुदरत के विरुद्ध दिनचर्या और असंगत खानपान ही हमारी व्याधियों के मूल में होता है। जितना हम प्रकृति के विपरीत आचरण करते हैं उतना ही मनोकायिक रोगों की चपेट में आते जाते हैं। कुदरत ने हमें भोजन, फलों और मसालों के रूप में तमाम ऐसी चीजें दी हैं जो हमें स्वस्थ रख सकती हैं। सात पीढ़ियों के क्रम में आयुर्वेद के जरिये रोग उपचार में लगे और वृंदावन आयुर्वेद-नेचुरोपैथी चिकित्सालयमzwj;्, बद्दी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र वशिष्ठ से बातचीत पर आधारित।
अरुण नैथानी
धरती में प्रकृति हर पल बदलाव की प्रक्रिया में सक्रिय रहती है। दरअसल, मौसम व प्रकृति के अवयवों में ये बदलाव इतने सूक्ष्म और निरंतर होते हैं कि हम परिवर्तन को महसूस ही नहीं करते कि कब पत्ते बने, कोंपलें फूटी, फूल से फल बने। इसी तरह हमारे शरीर में भी सतत और सूक्ष्म परिवर्तन निरंतर चलता रहता है जिसे हम दुनियावी फेर में पड़कर महसूस नहीं करते। शरीर की कोशिकाएं हर क्षण बदलती रहती हैं। शरीर बदलते मौसम के अनुरूप खुद को ढालता चलता है। इसी तरह प्राकृतिक चिकित्सा भी कायाकल्प की प्रक्रिया को धीरे-धीरे अंजाम देती है। आमतौर माना जाता है कि प्राकृतिक दिनचर्या के दौरान उपचार में 45 दिन का समय लगता है। निस्संदेह प्राकृतिक चिकित्सा की प्रक्रिया में समय लगता है। जिसके लिये रोगी को धैर्य की जरूरत होती है।
आज की भागमभाग की जिंदगी में किसी प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में उपचार की सामान्य अवधि को 10 दिन के करीब निर्धारित कर दिया जाता है। इसी तरह कुछ जगह शार्ट फाइव डे उपचार का सहारा भी ले लिया जाता है। यह मान लिया जाता है कि नौकरीपेशा व आम गृहस्थ व्यक्ति के लिये प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के लिये पांच दिन निकालना संभव है। ऐसे में तुरत-फुरत की जिंदगी में प्राकृतिक चिकित्सा शरीर की परीक्षा लेती है और लाइफ के डिसऑर्डर दूर करती है।
दरअसल, प्राकृतिक चिकित्सा हमारी अराजक जीवन शैली को संयत कर सकती है। कुछ ऐसे रोग जो उपचार योग्य नहीं माने जाते उन पर अंकुश लगा सकती है। इस परिवेश में आहार-विहार से व्यक्ति तनाव मुक्त होता है। प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र से निकलने के बाद व्यक्ति अपने घर में आहार-विहार को संतुलित करने का प्रयास कर सकता है।
सूर्य को हम उठायें…
प्राकृतिक चिकित्सा कहती है कि सुबह ‘सूर्य को हम उठायें सूर्य हमें न उठायें।’ विडंबना यह है कि हमने घरों में खिड़कियों पर मोट-मोटे पर्दे लगा दिये हैं। सूर्य की रोशनी कहां से आएगी। सही मायनों में हमारे जीवन में बीमारियां हमारी जीवन शैली की उपज है। लेकिन यह तार्किक नहीं कि बहुप्रचारित विटामिन डी-3 की लोगों में कमी होती जा रही है। आमतौर पर लोग नवंबर से जनवरी तक सूर्य स्नान लेते हैं जिससे लोगों को विटामिन-डी मिल जाता है। खतरा है तो आर.ओ. का पानी, जो हमारी बोन डेंसिटी को कम करता है। दरअसल, आज आम लोग शारीरिक श्रम नहीं करते। खान-पान की चीजों में भारी मिलावट है। यह शोर इतना ज्यादा है कि देश के लोगों के दिमाग में भी मिलावट हो गई। बाजार की शक्तियां कई तरह के भ्रम फैलाती हैं। मसलन सोयाबीन रिच प्रोपर्टी है। वास्तव में सोयाबीन जानवरों के लिये है,इंसान के लिये नहीं। हमें इसे हजम करने में दिक्कत आती है। जो कालांतर हमारे हड्डियों में जम जाता है।
प्रकृति की साधना करें
दरअसल, प्रकृति साधना की चीज है। आज इसे हमने साधन बना दिया है। साधना से दूर होते लोग शारीरिक असंतुलन के शिकार होते हैं। वास्तव में अधिकांश आधुनिक रोग काम न करने की बीमारी है। हम लोग दिमाग को थका रहे हैं, शरीर को नहीं थका रहे हैं। इसी की वजह से शरीर को भुगतना पड़ रहा है। आदमी पैदल नहीं चल रहा है। जब भी कोई मरीज प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में आता है तो पहली प्रक्रिया उसके रोगों का इतिहास जानने की कोशिश होती है।
दवा का मतलब दबाना
एक विडंबना यह भी है कि प्राकृतिक चिकित्सा पुराने दबे रोगों को उभार देती है और शरीर का पूरा उपचार नये सिरे से करती है। जिसे उभाड़ या हीलिंग क्राइसेस कहा जाता है। ऐसे में हमें थैंक्स करना चाहिए प्रभु का कि उसने हमारे रोगों को जड़ से खत्म करने का उपक्रम किया। सही मायनों में दवा का उपयोग कम से कम किया जाना चाहिए। असल में, दवा का मतलब है दबाना।
रोग हमारे मित्र भी
प्राकृतिक चिकित्सा में हम शरीर के विकारों को निकालते हैं तो शरीर स्वस्थ होता है। तब शरीर शुद्ध होता है। कह सकते हैं कि एक मायने में रोग हमारे मित्र हैं। वास्तव में हमें स्वस्थ रहने के लिये आहार-विहार में परिवर्तन करना चाहिए। हर हाल में नौ बजे तक नाश्ता कर लेना चाहिए। रात आठ बजे तक, हद से हद नौ बजे तक डिनर खा लेना चाहिए। यदि व्यक्ति समय से नहीं खाता निश्चित ही कोलेस्ट्रोल को बुलाता है। आयुर्वेद में हमें स्वस्थ जीवन के लिये अनुशासित दिनचर्या व ऋतुचर्या का संदेश दिया गया है। प्रकृति प्रदत्त पंच तत्व हमारे स्वास्थ्य का आधार हैं। मसलन शरीर में आकाश तत्व को हम उपवास से हासिल कर सकते हैं। इस दौरान हम फलाहार करें, रसाहार करें। इसके अलावा उबली सब्जियों का सेवन करें।
भगवान को भी ऋतु फल पसंद
बेहद जरूरी है कि हम खाने में प्रोटीन कम करें। दरअसल, प्रोटीन के साथ हमारा आउटपुट नहीं। पसीना नहीं आने देते। प्रोटीन के साथ श्रम नहीं है तो कई तरह के रोग घेर लेते हैं। हमें ताजा सब्जियों का सेवन करना चाहिए। कई राज्यों में अभी भी रसायनों का कम प्रयोग होता है। कोशिश करें कि सब्जी वाले को पांच रुपये ज्यादा दे दें और कहें कि अच्छी और ताजी सब्जी दे। फल हो तो ऋतु के अनुरूप हो। सदा ऋतु का फल खायें। आज बच्चों को फलों के बारे में पता नहीं होता। जब भी घर में पूजा होती है तो भगवान का अनुष्ठान करते हुए पंडित जी ‘ऋतुफलं समर्पयामी’ का उच्चारण करते हैं। जब बिना ऋतु के फल भगवान को नहीं पसंद तो इंसान को कहां से पचेगा। हम तो आज भगवान को छप्पन भोग लगाने लगे हैं।
दरअसल, हमने अपने खाने में परंपरागत पौष्टिक भोजन को अलविदा कर दिया है। बाजरा,चना, जो, रागी, अलसी आदि मोटा अनाज कभी हमारे भोजन को संपूर्णता देते थे। अलसी में ओमेगा-3 स्नायुतंत्र से जुड़े असंतुलन को दूर करने में सहायक है। मनुष्य के स्वस्थ रहने के लिये जरूरी है कि वह ब्रह्ममूहर्त में उठे। यह समय सुबह पांच सवा पांच बजे का होता है। कोशिश हो कि हम सूर्योदय से पहले सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त हो जायें। प्रवचन व भजनों की अमृतवाणी हमारे मानसिक तनाव व अवसाद को दूर करती है। हमें आध्यात्मिक जीवन का भी अहसास होता है।
उपवास में सेहत का वास
हमारे स्वस्थ रहने में उपवास का भी महत्वपूर्ण योगदान है। हमें नियमित उपवास करना चाहिए। हम जिस दिन पार्टी खायें अगले दिन फिर उपवास करना चाहिए। अगले दिन चार समय सिर्फ फ्रूट ही लेना चाहिए। ट्रेड मिल पर चलो तो भी सही है। आम आदमी को पता लग जाता है शूगर बढ़ रही है। खाने के मामले में अराजक न हों। स्वयं पर संयम रखें।
शरीर के लिये स्वार्थी बनें
अपनी सेहत के लिये स्वार्थी होना बुरा नहीं है। शरीर के मामले में स्वार्थी होंगे तो अपने शरीर का ध्यान रखते हुए खायेंगे। खाने में संयम रखते हुए ध्यान रखें कि जो चीज स्वादिष्ट हो उसे सबसे आखिर में खाओ। यानी जो स्वादिष्ट नहीं उसे पहले खाना चाहिए। ईश्वर भी कहते हैं कि जो आपकी जलवायु में पैदा हुआ उसे खाओ। उत्तर भारतीयों के लिये सरसों तेल सबसे अच्छा है। लेकिन हम रिफाइंड ऑयल खाते हैं। हमने तेल बनाने वाली कंपनी को तो मालामाल कर दिया मगर सोयाबीन का तेल हड्डियों के लिये अच्छा नहीं है।
खाने का गलत संयोजन
हमें सुबह उठकर सैर करनी चाहिए। अपना लाइफ स्टाइल बदलना चाहिए। फास्ट फूड से परहेज करना चाहिए। निश्चित रूप से आने वाले समय में ओबेसिटी जेनेटिक बन जाएगी। हमें खाना तालमेल के हिसाब से लेना चाहिए। सुबह के समय नाश्ते के साथ फलों के रसों का इस्तेमाल करना चाहिए। फिर दोपहर में खाने के साथ दही व लस्सी का उपयोग करें। बेहतर सेहत के लिये रात को दूध का उपभोग करें। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किस खाने के साथ क्या वर्जित है। आजकल हम देखते हैं कि बहुत लोगों को सफेद दाग की बीमारी है। पहले यह रोग दस लाख पर एक को होता था अब दस हजार पर एक रोगी है। मूली के साथ दूध दही नहीं लेना चाहिए। हम लोग नमक को दूध के साथ उपयोग कर रहे हैं। नॉनवेज या मछली के साथ दूध से बने पदार्थों का सेवन कर लेते हैं। इस गलत संयोजन से कुष्ठ रोग तक होने की संभावना पैदा हो जाती है।
वात, पित्त व कफ का संतुलन
यदि हम दही रात में लेंगे तो कफ बढ़ा देगी। शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन होना चाहिए। हमारे खाने का समय निर्धारित होना चाहिए। रोज दिन में दो बजे जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है तो हमें खाना खाना चाहिए। इस समय खाने को पचाने वाली जठराग्नि तेज होती है। दरअसल अनियमित भोजन से लीवर फैटी हो जाता है। ऑयली खाना खाने से जीवन ज्यादा नहीं चलता। सत्तर-अस्सी प्रतिशत भारतीय पहले दूध-घी नियमित लेने के अलावा मूली और मूली पत्तों का रस लेते थे। एक महीने में फैटी लीवर ठीक हो जाता था। नाशपती का गूदा व रस उपयोगी है। नाशपती का रस चार बजे पी लेने से फायदा होता है। कब्ज में नासपती रामबाण होती है। कब्ज दूर होने से अर्श आदि रोग नहीं होते। कब्ज आंतों में जूस कम जाने से होती है। कब्ज दूर करने के लिये रिच फाइबर वाले फल व सब्जी लेनी चाहिए।
मोटे अनाज से सेहत
दरअसल, संपन्नता के साथ हमने गेहूं-चावल को मुख्य भोजन बना लिया। मोटे अनाज से हमने दूरी बना ली जो रिच फाइबर वाले खाद्य पदार्थ थे। जौ की रोटी लस्सी के साथ पेट के लिये अच्छी होती है। हमारे जीवन में तीन महत्वपूर्ण संस्कार हैं -जन्म,परण और मरण। तीनों अवसरों पर जौ का प्रयोग होता रहा है। बच्चे को पहली बार लोई जौ के आटे की दी जाती थी। शादी में उबटन में जौ का आटा इस्तेमाल होता था। इसी तरह मृत्यु पर जौ के पिंडदान के बिना मुक्ति नहीं मानी जाती। जौ का इतना महत्व रहा है भारतीय जीवन में। आज ये हमारे जीवन से ही गायब हो गया है। कॉलेस्ट्रोल, कार्डिक समस्या, कब्ज आदि से फाइबर फाइट करती है। चना, जौ, बाजरा जाड़े में गेहूं के साथ मिलाकर खाने से हम स्वस्थ रहते थे। जिन इलाकों में गेहूं का ज्यादा प्रयोग होता है वहां के लोगों को ज्यादा डायबिटीज होती है। दरअसल, उसे पचाने के लिये काम नहीं है। सुबह परांठा, लंच में रोटी और रात को रोटी। इसी तरह मैदे के प्रचलन से कब्ज का रोग बढ़ा है। छोटे-छोटे बच्चों को कब्ज नहीं होनी चाहिए। सब्जी को छिलके के साथ बनाने से कब्ज नहीं होती। छिलके वाली दाल का उपयोग करें, इसी तरह सब्जी मोटी काटो। मगर हम पॉलिश वाली दाल खाते हैं। उत्तर भारत में व्यक्ति तीन-तीन प्रकार की रोटी खाता है कभी तंदूरी रोटी, कभी मिस्सी तो कभी आम रोटी। चावल में दही मिलाएगा। दाल में भी दही मिलाएगा। इसके अलावा चावल के साथ ही रोटी और फिर कचोरी भी खायेगा।
रसोई मेडिकल स्टोर तथा बाथरूम स्पा
स्वस्थ रहने के लिये जरूरी है हम आहार सही ढंग से लें। दरअसल हमारा आहार भी दवा है। सही मायनों में घरों में रसोई हमारा मेडिकल स्टोर तथा बाथरूम उपचार स्पा है। किचन में खानपान की वस्तुओं के औषधीय गुण हमारे खाने को संतुलित बनाते हैं और मौसमी रोग से उपचार करती हैं। रसोई में हल्दी, लौंग,जीरा, काली मिर्च आदि आयुर्वेदिक उपचार में सहायक होती हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आज व्यक्ति नहाने और खाने में सबसे कम समय लगा रहा है। मेट्रो सिटीज़ में यह समस्या ज्यादा जटिल है। जब हम बाथरूम में नहाते हैं तो एक-एक सेल को नहलाएं। हर एक कोशिका को तरोताजा करें।
रात को खाना शरीर से अत्याचार
व्यक्ति मेहनत करता नहीं, उठने का समय ठीक नहीं। खाने का टाइम निश्चित नहीं है। मुंबई से दिल्ली होते हुए रात को दो बजे मुरथल पहुंचेंगे तो खाना खाते हुए कहेंगे कि डिनर कर रहे हैं। डेट बदल गई फिर भी डिनर चल रहा है। डेथ को इनवाइट कर रहे हैं। सही मायनों में देर रात भोजन करना शरीर के साथ अत्याचार करने जैसा है।
फल के चयन में सावधानी
फलों को लेकर भी सावधानी जरूरी है। फल एक बार में एक तरह का खायें। यह ध्यान रखना चाहिए कि फल किस प्रवृत्ति का सिट्रस है या सेमी-सीट्रस। यानी किस परिवार का फल है। कैसा असंतुलन पित्त-वात को बढ़ायेगा। कौन हमारे चय-अपचय को बढ़ाएगा। हमारे खाने में अम्ल और क्षार तत्व का संतुलन होना चाहिए। आदर्श रूप में भोजन सत्तर प्रतिशत क्षारीय और तीस प्रतिशत अम्लीय होना चाहिए। गेहूं क्षारीय है, यह पित्त नहीं बढ़ाएगा। सलाद रात को नहीं खाना चाहिए। व्रत की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिन लोगों को स्थायी रूप से कब्ज होती है उन्हें एनीमा का उपयोग करना चाहिए।
बालों का पोषण
समय से पहले बाल सफेद होने और बाल गिरने की बड़ी समस्या महानगरीय जीवन में पैदा हो गई है। बालों के पोषण में आंवला सबसे बढ़िया होता है। किसी न किसी रूप में बच्चों को खिलायें।मगर विडंबना यह है कि हम रासायनिक पदार्थों वाला शैंपू प्रयोग करते हैं। हम परंपरागत ढंग से मुल्तानी मिट्टी में दही का उपयोग शैंपू के विकल्प के रूप में कर सकते हैं। शैंपू में बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं। आज च्यवनप्राश बच्चों को कोई नहीं खिलाता। गाजर के जूस के साथ आंवला उपयोगी होता है। छह महीने आंवला खाने के लिये उपलब्ध होता है। बच्चे आंवले की कैंडी खा सकते हैं। शहद के साथ आंवले का उपयोग हो सकता है। गेहूं के हरे पत्ते अमृत तुल्य होते हैं। कैंसर में लाभदायक होते हैं। यदि हम उबले लाल टमाटर खायें तो कभी कैंसर नहीं होगा। गाजर में भी औषधीय गुण होते हैं।