रेखी ने खींची ऋषिकर्म की बड़ी रेखा
सिटी ब्यूटीफुल कहे जाने वाले चंडीगढ़ की एक खूबसूरती यह भी है कि शहर में सालभर रक्तदानियों के मेले लगते हैं। जिसके चलते कोरोना संकट में भी रक्त व उसके अवयवों की कमी नहीं पड़ी। अनजान लोगों के जीवन को बचाने के ऋषिकर्म में लगे शहर के हजारों रक्तदानियों में शहर के राजन रेखी अव्वल आए हैं। हाल ही में प्रतिष्ठित इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने उन्हें देश के सबसे बड़े रक्तदानी का मेडल व प्रमाण पत्र दिया है।
ऐसे हुई रक्तदान की शुरुआत
साल 1991 में एक मित्र की कैंसर से पीड़ित मां को पहली बार पीजीआई में ब्लड देने में रेखी झिझके जरूर, मगर फिर एक बार झिझक खुली तो बात सैकड़ों बार रक्तदान तक जा पहुंची। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने 223 बार रक्त व उसके अवयवों का दान करने वाले रेखी का सम्मान किया। दरअसल, जून में एक और रक्तदान के बाद 223 के आंकड़े में रेखी 148 बार सिंगल प्लैटलेट्स, 73 बार होल ब्लड, एक बार व्हाइट ब्लड सेल्स व एक बार बोनमैरो दान कर चुके। आज उनका पूरा परिवार नियमित रक्तदाता है।
प्रेरक संबल
रेखी व पत्नी रमा जीवन उपरांत पीजीआई को देह दान का संकल्प-पत्र दे चुके हैं। वे अपनी इस रक्त मुहिम में निरंतर सक्रियता के लिए परिवार की प्रेरणा के अलावा रक्तदान अभियान से जुड़े राकेश संगर, डॉ.सुचेत, डॉ.रतिराम शर्मा व डॉ. रवनीत कौर का प्रेरक संबल बताते हैं। उल्लेखनीय है कि पंजाब व हरियाणा के राज्यपाल, चंडीगढ़ के प्रशासक, कई मंत्रियों, पीजीआईएमईआर, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज सेक्टर 32, चंडीगढ़ पुलिस व प्रशासन, श्री शिव कांवड़ महासंघ चेरिटेबल ट्रस्ट समेत अनेक संगठन उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिये उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
सामाजिक दायित्व की भावना
आज भी जब किसी मरीज को यूनीवर्सल ब्लड ग्रुप ‘ओ’ की जरूरत होती है और उन्हें याद किया जाता है, वे दौड़े चले जाते हैं। वे न जाति देखते हैं, न धर्म। वे पूरे कोरोना पीरियड में भी रक्त व प्लैटलेट्स दान करते रहे। वे आज तीन सौ नियमित रक्तदाताओं का समूह तैयार कर चुके हैं, जो हर समय रक्तदान के लिये उत्सुक रहते हैं। उनका मानना है कि इससे उन्हें आत्मिक सुकून मिलता है। वे देश की एकमात्र स्टेम सेल उपलब्ध कराने वाली कलकत्ता की एक संस्था के साथ भी सक्रिय हैं। दि ट्रिब्यून में सेवारत रेखी इसे समाज के प्रति अपना दायित्व मानते हैं।
(अ.नै.)