समान नागरिक संहिता की तार्किकता
06:40 AM Jul 10, 2023 IST
विश्व में अनेक देशों में समान नागरिक संहिता लागू है इसमें कितने ही मुस्लिम देश भी हैं। भारत का संविधान भी सबके लिए समान अधिकार हर वर्ग के लिए कहता है। फिर एक देश में क्यों सबके लिए अलग-अलग कानून है। क्या एक परिवार दो नियम से चल सकता है। ये दोहरी नीति देश को पीछे ही धकेलती है। समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों के लिए कानून समान नियम के होंगे। इससे न्याय व्यवस्था भी सुदृढ़ होगी, इसीलिए समान नागरिक संहिता लागू होना देश हित में है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
भारत जैसे विविधता पूर्ण विकासशील, विशालकाय देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना समय की मांग ही नहीं अपितु संविधान का सम्मान भी है। प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून से धार्मिक मतभेद कम होंगे। कमजोर वर्गों को सुरक्षा मिलेगी। कानून सरल होंगे और धर्मनिरपेक्षता के आदेशों के पालन से लैंगिग न्याय सुनिश्चित होगा। लोगों को इसमें योगदान देना चाहिए और इसके बारे में अपने बहुमूल्य सुझाव प्रदान कर राष्ट्रव्यापी यज्ञ में अपने पूर्णाहुति प्रदान करनी चाहिए ताकि संविधान सर्वोपरि सिद्ध हो सके।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली समान नागरिक संहिता को लेकर राजनीतिक दलों में खींचतान से समानता की सोच पर रार नजर आती है। भाजपा और विपक्ष दोनों अपने फायदे गिनने में लगे हैं परंतु वास्तविकता में देखा जाए तो आज देश को इसकी बड़ी आवश्यकता है। जिस देश में एक राशन, एक साथ चुनाव जैसी जरूरत महसूस की जाती है अगर वहां अधिकार और कर्तव्यों की सुरक्षा के लिए समान नागरिकता की बात कही जाए तो क्या गलत है? जब तक नागरिक संहिता को कानून का दर्जा नहीं मिलेगा सीमावर्ती राज्यों में शरणार्थी शिविर चलते ही रहेंगे।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
देश में सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं। इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता कि हम किसी विशेष धर्म को अपनाकर या उसमें रहकर किसी विशेष छूट के अधिकार बन जाएं अथवा बाकी लोगों के अधिकार को डकार जाएं। इस हिसाब से प्रत्येक नागरिक के लिए समान नागरिक संहिता का होना समय की मांग है। देश के नागरिकों को और राजनीतिक पार्टियों को भी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए। जब हम एक ही भू-भाग के नीचे रहते हों तो सभी के समान अधिकार होने चाहिए।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम समान नागरिक संहिता लागू करने से धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। इसमें विवाह, तलाक, भरण-पोषण, बच्चों का गोद लेना, संपत्ति का बंटवारा और उत्तराधिकारी जैसे सभी विषयों को धर्म जातियों समुदायों के लिए सामान रूप से लागू किया जाता है। एक देश, एक विधान होने से एक से अधिक शादी करने वालों पर रोक लगेगी और महिलाओं का सम्मान मिलेगा, जिसकी वे अधिकारी हैं। देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना समय की मांग और संविधान का मान भी है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़ समान नागरिक संहिता के बारे में संविधान सभा ने भी सकारात्मक मत प्रकट किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे लागू करने का सुझाव दिया है। इसके तहत एक देश और एक कानून सभी मामलों में लागू करने का विचार है। इस पर पहले ही राजनीति होनी शुरू हो गई है। एक विशेष वर्ग समाज तथा कुछ विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दल इसे आगामी 2024 के संसदीय चुनावों को देखते हुए ध्रुवीकरण की दृष्टि से देख रहे हैं। समान नागरिक संहिता से अनेकता में एकता स्थापित करने में मदद मिलेगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
राष्ट्रीय हित में सोचें
आज समान नागरिक संहिता लागू करने वाला गोवा देश का पहला राज्य है। संविधान निर्माताओं की भी मंशा देश में समान कानून लागू करने की थी। मगर राजनीतिक कारणों के चलते इसे अब तक टाला जाता रहा है। वक्त आ गया है कि एक देश एक कानून को यथाशीघ्र लागू किया जाए। देश में विभिन्न जातियों के लिए अलग-अलग कानून के चलते कानून व्यवस्था पर भारी बोझ डाल रहा है। एक राष्ट्र एक कानून होने से न्यायालयों पर बोझ घटेगा। सभी जातियां एक कानून के चलते सौहार्दपूर्ण रह सकेंगी। यूसीसी के लागू होते ही सबसे ज्यादा लाभ महिला वर्ग को मिलेगा। सभी वर्ग को राष्ट्रीय हित के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
देश हित में
भगवानदास छारिया, इंदौर
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संविधान का सम्मान
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
वक्त की जरूरत
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
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समान अधिकार हों
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
समय की मांग
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
अनेकता में एकता
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
राष्ट्रीय हित में सोचें
आज समान नागरिक संहिता लागू करने वाला गोवा देश का पहला राज्य है। संविधान निर्माताओं की भी मंशा देश में समान कानून लागू करने की थी। मगर राजनीतिक कारणों के चलते इसे अब तक टाला जाता रहा है। वक्त आ गया है कि एक देश एक कानून को यथाशीघ्र लागू किया जाए। देश में विभिन्न जातियों के लिए अलग-अलग कानून के चलते कानून व्यवस्था पर भारी बोझ डाल रहा है। एक राष्ट्र एक कानून होने से न्यायालयों पर बोझ घटेगा। सभी जातियां एक कानून के चलते सौहार्दपूर्ण रह सकेंगी। यूसीसी के लागू होते ही सबसे ज्यादा लाभ महिला वर्ग को मिलेगा। सभी वर्ग को राष्ट्रीय हित के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.
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