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एमएसपी की तार्किकता

01:08 PM Dec 13, 2021 IST
एमएसपी की तार्किकता
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जन संसद की राय है कि किसानों की आय बढ़ाने और आर्थिक सुरक्षा के लिये सरकार को पहल करनी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही उन विसंगतियों को भी दूर करना चाहिए जो खेती के विविधीकरण, नकदी और ऊंची कीमत वाली फसलों के उत्पादन को निरुत्साहित करती हैं।

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राजनीतिक विफलता

स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप तैयार फॉर्मूले पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं करना सरकारों की वादाखिलाफी ही नहीं, एक राजनीतिक विफलता भी है। सत्तर के दशक से कृषि लागत, जिसमें डीजल, कृषि यंत्र, रासायनिक उर्वरक, बीज और श्रम के अनुपात में कृषि उत्पाद के मूल्यों में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाई। किसान की आर्थिक दशा सुधारने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य संरक्षण कानून ही एकमात्र विकल्प है। संरक्षित न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसान फसल विविधीकरण और नकदी फसलों को ज्यादा उत्साह से अपनाएगा।

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सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम

जागरूकता बढ़ेगी

न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए सुरक्षा के रूप में कार्य करता है, जिससे उनके उत्पादों के लिए एक तय धनराशि मिले और कीमतों में गिरावट पर उन पर अत्यधिक आर्थिक दुष्प्रभाव न पड़े। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने से पोषक अनाजों की सुरक्षा और किसानों की आय में सुधार होगा। किसानों की आय बढ़ाने में फसलों की विविधता लाभप्रद साबित होगी। सरकार यदि अधिक फसलों को एमएसपी के दायरे में लाती है तो इससे फसलों के विविधीकरण के साथ ही नकदी फसलों के प्रति भी किसानों की जागरूकता बढ़ेगी।

सुनील महला, पटियाला, पंजाब

न्यायसंगत फैसला हो

यह बात समझ से परे है कि सरकार किसानों को एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं देती। आज का किसान समझदार है, उसकी सोच वैज्ञानिक है। सरकार ने डॉ. स्वामीनाथन की सिफारिश पर एमएसपी मूल्य निर्धारण के फार्मूले को लागू करने में ईमानदारी नहीं दिखाई। सरकार किसानों को यह भरोसा भी नहीं दिला सकी कि नये कृषि कानून से किसानों का कोई अहित नहीं होगा। कृषि के क्षेत्र में हर राज्य में बहुत से अंतर हैं, चाहे जलवायु का, वातावरण का हो या अन्य। केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में जो वृद्धि तय करती है, इससे कुछ राज्य के किसानों को इसका फायदा नहीं मिलता।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

शीघ्र फैसला हो

कृषि उत्थान हेतु गठित स्वामीनाथन कमेटी ने सरकार को अपनी तार्किक रिपोर्ट दी थी। गुजरात के मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल में ही इस कमेटी की सिफारिशों को नरेंद्र मोदी द्वारा समर्थन किये जाने से स्पष्ट होता है कि एमएसपी का लाभ किसानों को पहुंचाने में तार्किक आधार हैं। जिस तरह किसानों के हित में कृषि कानून वापस लिए गये हैं उसी तरह एमएसपी कानून बनाने की मांग में विलंब नहीं होना चाहिए। एमएसपी का मसला क्लिष्ट है, किंतु समाधान तो खोजना ही होगा। एमएसपी पर प्रधानमंत्री को अधिक लचीला रुख अपनाते हुए त्वरित निर्णय लेना होगा, क्योंकि स्वामीनाथन कमेटी ने पहले ही बहुत कुछ तय कर दिया है।

बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन

मुश्किलें होंगी

न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसान न्यूनतम बिक्री मूल्य बनाना चाहते हैं। दुनिया भर में गुणवत्ता के आधार पर चीज़ों का बिक्री मूल्य तय होता है और अप्रत्याशित लाभ को रोकने के लिए अधिकतम बिक्री मूल्य तो तय कर दिया जाता है किन्तु न्यूनतम नहीं। मशीनों में कंप्यूटरीकृत तरीकों से नहीं बनने के कारण कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में उतार-चढ़ाव होता रहता है। अभी किसान निम्न गुणवत्ता की उपज एमएसपी से कम दाम पर आराम से बेच लेता है लेकिन एमएसपी के कानूनन बाध्य होते ही ऐसी फसलों को खरीदार आसानी से नहीं मिलेगा।

बृजेश माथुर, गाज़ियाबाद

आधार बढ़ाएं

केंद्र सरकार द्वारा खेती कानून वापस लेने के बाद भी किसान असंतुष्ट हैं। कारण सरकार द्वारा एमएसपी निर्धारण कानून को मंजूरी न देना। आज तक कई बैठकें इस विषय पर एक मत न हो सकी। इनका कथन है कि किसान वे ही फसलें उगा सकते हैं जो एमएसपी के तहत हों, अन्य दूसरी नहीं। ऐसे में फसलीय विविधता के अभाव में किसानों को विवश होकर कम कीमत पर अपना उत्पादन भारी नुकसान के साथ मंडियों में बेचना पड़ेगा। केंद्र सरकार को सभी फसलें एमएसपी में सम्मिलित कर किसान को लाभान्वित करना चाहिए।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

पुरस्कृत पत्र

ऊंचे दाम की फसलें

किसानों की सोच है कि एमएसपी कानून बनने से किसानों की आय बढ़ेगी, वहीं सरकार को पता है कि एमएसपी कानून बनने से देश पर बहुत ज्यादा अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। एमएसपी कानून बनने से किसान उस फसल की अधिक पैदावार करेगा और सरकार को वह फसल न चाहते हुए भी खरीदनी पड़ेगी। किसान व देश का हित इसी में है कि किसान ऊंची दाम वाली फसलों का उत्पादन करे, क्योंकि जहां अधिक कीमत वाली फसलों का उत्पादन होता है वहां एमएसपी की मांग नहीं होती। एमएसपी से भविष्य में कृषि व किसान की दिशा व दशा सुधारने के रास्ते बंद हो जाएंगे। देश में खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था भी असंतुलित हो सकती है।

सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल

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