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राव बिरेंद्र सिंह लाए थे अहीरवाल में ‘चौधर’, अब पोती उतरीं मैदान में

10:28 AM Sep 22, 2024 IST
राव बिरेंद्र सिंह लाए थे अहीरवाल में ‘चौधर’  अब पोती उतरीं मैदान में
अटेली में झंडा चौक
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
अटेली मंडी, 21 सितंबर
सैनिक बहुल अटेली का पौराणिक इतिहास है। अहीरवाल बेल्ट के इस हलके के कई गांव ऐसे हैं, जहां हर दूसरे घर में फौजी हैं। ऐसा ही एक गांव है खेड़ी। खेड़ी के जवानों ने कारगिल में भी अपने शौर्य का प्रदर्शन किया था। इस इलाके को महाभारतकाल से जुड़ा भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने नजदीक ही स्थिति ढोसी की पहाड़ी में भी कुछ वक्त बिताया था। अटेली और कनीना कस्बे वाले अहीर बाहुल्य इस हलके से पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र सिंह भी तीन बार विधायक रहे। अब उनकी पोती और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। हालांकि आरती से पहले उनके चाचा और राव बिरेंद्र सिंह के बेटे अजीत सिंह इस सीट पर किस्मत आजमा चुके हैं। आरती राव के पिता राव इंद्रजीत सिंह जाटूसाना (अब कोसली) से भी कई बार विधायक बन चुके हैं। राव इंद्रजीत सिंह ने अटेली से कभी चुनाव नहीं लड़ा। इस बार उन्होंने पिता की सीट पर अपनी बेटी को चुनावी मैदान में उतारा है। इस लिहाज से 44 वर्षों के बाद राव इंद्रजीत ने अपने पिता की सीट पर 43 वर्षीय बेटी को चुनाव लड़वाने का फैसला लिया है। अटेली में भाजपा जीत की हैट्रिक लगाने की जुगत में भी है। 2014 में संतोष यादव और 2019 में सीताराम यादव यहां से विधायक रहे। भाजपा ने विधायक सीताराम की टिकट काटकर आरती को उम्मीदवार बनाया है।
बसपा-इनेलो गठबधंन टिकट पर चुनाव लड़ रहे ठाकुर अत्तर लाल इस सीट पर चुनावी समीकरण बिगाड़ रहे हैं। 2019 में भी बसपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे ठाकुर अत्तर लाल ने पिछले चुनाव में कांग्रेस व इनेलो को हाशिये पर पहुंचा दिया था। भाजपा के सीताराम के हाथों वे 18 हजार 406 मतों के अंतर से चुनाव हार गए लेकिन 37 हजार 387 वोट लेकर उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था। वहीं कांग्रेस ने पूर्व मुख्य संसदीय सचिव अनिता यादव को टिकट दिया है।
2019 के चुनावों में कांग्रेस ने यहां से राव इंद्रजीत सिंह के बेटे अर्जुन सिंह को टिकट दिया था। टिकट कटने के बाद अनिता यादव ने कांग्रेस छोड़ दी और वे जननायक जनता पार्टी में शामिल हो गईं। जजपा ने उनके बेटे सम्राट को चुनाव लड़वाया। जजपा और कांग्रेस अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। पूर्व सीएम व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस में वापसी कर चुकी अनिता यादव पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया है। वहीं जननायक जनता पार्टी ने आयुषी अभिमन्यु राव को टिकट दिया है।
वर्तमान में इस सीट पर भाजपा, बसपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस बेल्ट में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का भी काफी प्रभाव है। वे अपनी बेटी की सीट के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा भी आरती के लिए कई कार्यक्रम कर चुके हैं। रामबिलास शर्मा अहीरवाल के पुराने नेताओं में शामिल हैं। 55 वर्षों से भाजपा में सक्रिय रामबिलास की टिकट काटकर इस बार भाजपा ने महेंद्रगढ़ से कंवर सिंह यादव को दी है।
हालांकि रामबिलास की टिकट कटने की नाराजगी पूरे इलाके में देखने को मिल रही है। लेकिन रामबिलास सक्रियता के जरिये मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे आज भी पूरी मजबूती के साथ भाजपा के साथ ही खड़े हैं। नाराजगी के बाद भी उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ना उचित नहीं समझा। अहीरवाल बेल्ट में ‘रामपुरा हाउस’ यानी राव बिरेंद्र सिंह का गांव और उनकी पैतृक हवेली का सबसे अधिक प्रभाव रहा है। राव बिरेंद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को राव इंद्रजीत सिंह आगे बढ़ा रहे हैं।

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पंडित भगवत दयाल थे प्रदेश के पहले सीएम

हरियाणा गठन के बाद पंडित भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने। पंडित भगवत दयाल शर्मा पहली नवंबर, 1966 से लेकर 24 मार्च, 1967 तक सूबे के सीएम रहे। वे कुल 143 दिन मुख्यमंत्री रहे। राव बिरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी का गठन किया और 1967 का विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वे पटौदी से विधायक बने और हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। वे 24 मार्च, 1967 से 20 नवंबर, 1967 यानी 241 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। उसके बाद अहीरवाल की ‘चौधर’ के नारे राव इंद्रजीत सिंह, रामबिलास शर्मा और कैप्टन अजय सिंह यादव ने भी दिए लेकिन अभी तक यह इलाका सत्ता का केंद्र नहीं बन पाया है।

जीत नहीं पाए अजीत

राव बिरेंद्र सिंह के मझले बेटे अजीत सिंह ने अपने पिता की सीट पर कई बार किस्मत आजमाई, लेकिन लोगों ने उन्हें नकार दिया। 1991 में जनता पार्टी की टिकट पर अजीत सिंह ने चुनाव लड़ा लेकिन वे कांग्रेस के बमशी सिंह से चुनाव हार गए। 1996 में अजीत सिंह ने समाजवादी पार्टी (सपा) की टिकट पर चुनाव लड़ा। इस बार कांग्रेस के नरेंद्र सिंह ने उन्हें शिकस्त दी। अजीत सिंह के बेटे अर्जुन सिंह ने 2019 में कांग्रेस टिकट पर अटेली से अपने दादा की सीट हासिल करने के लिए चुनाव लड़ा। अर्जुन सिंह जमानत भी नहीं बचा सके। उन्हें मात्र 9 हजार 238 वोट मिले। वहीं भाजपा के सीताराम ने 55 हजार 783 वोट लेकर चुनाव जीता।

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यादव है जाति, राव पुरानी उपाधि

आमतौर पर लोगों में ‘राव’ का मतलब यादव जाति से निकाला जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। ‘राव’ एक उपाधि है। बेशक, अहीरवाल में बहुत से यादव अपने नाम के आगे राव का इस्तेमाल करते हैं। चरखी दादरी, सतनाली व कुछ एरिया ऐसे भी हैं, जहां दूसरी जातियों के लोग भी अपने नाम के आगे राव शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यादवों में राव का प्रचलन इतना बढ़ गया कि अब ‘राव’ का मतलब भी यादव माना जाने लगा है। पुराने लोग बताते हैं कि 1857 के दौर में बहादुर शाह जफर ने स्वतंत्रता सेनानी तुलाराम को ‘राव’ की उपाधि दी थी। अंग्रेजों के खिलाफ चल रही लड़ाई में मदद के लिए मुगल दरबार ने तुलाराम को ‘राव’ की उपाधि से नवाजा था।

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