आया राम-गया राम की राजनीति
07:52 AM Feb 12, 2024 IST
राजनीति में बहुत कम लोग रुचि लेते हैं। स्पष्ट है कि लोग राजनीति को बुराई रूपी दलदल समझते हैं। वास्तव में राजनीति में केवल और केवल वो लोग आते हैं जो साम, दाम, दंड, भेद में पारंगत होते हैं। आज दल-बदल इसी का रूप है। जनता-जनार्दन होती है लेकिन जब दल-बदलू अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं तो यह भोली-भाली जनता के साथ विश्वासघात होता है। आज जनता भी इसकी जिम्मेदार है क्योंकि जातपात आदि में बंटकर वे उन लोगों को चुनते हैं जिनका उद्देश्य सेवा न होकर स्वार्थ सिद्धि है।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
नीतीश कुमार ने कई बार राजनीतिक निष्ठाएं बदली हैं और वर्तमान में सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री का खिताब उनके पास है। अब नीतीश ने राजद का साथ छोड़ दिया है, इसलिए उन्हें ‘पलटी मार’ कहा जाता है। इससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि उनके लिए राजनीतिक मूल्यों-मर्यादाओं का कोई महत्व नहीं है। यही नहीं, अब उनका जनाधार भी कम होते हुए दिखाई पड़ रहा है। नीतीश कुमार ने कभी दूसरे नेता को उभरने नहीं दिया। समय को देखते हुए एक बात निश्चित है कि अन्य उलटफेर भी हो सकता है।
शिवरानी पुहाल, पानीपत
बिहार में नीतीश सरकार का दल बदलना लोकतंत्र और मतदाताओं के लिए खतरे की घंटी है। अपने राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए दल बदलने वाले ये वही नेता होते हैं जिनको देश के मतदाता वोट देकर पलकों पर बिठाते हैं। वही मतदाताओं के लिए विश्वासघाती बन जाते हैं। इस दल-बदल की राजनीति को रोकने के लिए देश के मतदाताओं को ऐसे राजनेताओं का बहिष्कार करना चाहिए। केंद्र सरकार भी इसके लिए कोई सख्त कानून लागू करे। तभी दल-बदल की राजनीति को रोका जा सकता है।
सतपाल, कुरुक्षेत्र नीतीश सरकार का पाला बदलना बिहार में ‘आया राम गया राम’ के मुहावरे को चरितार्थ कर गया। राजनेता मतदाताओं के विश्वास को नजरअंदाज करके बार-बार पाला बदलते हैं यह न केवल मतदाताओं से विश्वासघात है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरा है। यह मतदाताओं से विश्वास घात करते हैं। आज शुचिता व मूल्यों की राजनीति की जगह सिर्फ वोट के समीकरण जुटाने की राजनीति ने हथिया ली है। अब समय आ गया है कि ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे निर्वाचित नेता संविधान की शपथ के साथ-साथ मतदाता के प्रति निष्ठा की भी शपथ ले।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली हरियाणा के एक विधायक द्वारा एक दिन में तीन बार दल बदलने से बनी कहावत ‘आया राम गया राम’ को सतत दलबदल ने जीवित रखा है। आज का गठबंधन बदल, दलबदल विरोधी कानून का तोड़ है। लोकतंत्र बचाने के लिए ऐसा कानून बने कि गठबंधन सिर्फ चुनाव पूर्व हो। चुनाव के बाद गठबंधन तोड़ने वाले दल के सभी विधायक-सांसद अयोग्य हो जाएं। यदि गठबंधन में दो ही दल हों तो ये प्रावधान दोनों पर लागू हो। बहुमत के अभाव में गठबंधन हो जाएं मगर चुनाव के बाद गठबंधन न हो। हर बार निष्ठा बदलने पर नया जनादेश लिया जाये।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र. ‘आया राम-गया राम’, की राजनीति देश के लिए कोई नयी बात नहीं है। अवसरवादिता के इस युग में कुर्सी बचाने की खातिर दल-बदल होते रहे हैं। यह प्रक्रिया किसी सिद्धांत या आस्था के कारण नहीं बल्कि लालच, धन और सत्ता बचाने की खातिर होती है। हाल ही में नीतीश कुमार का एनडीए में शामिल होना भी इसी का एक उदाहरण है। देश के मतदाता जब तक अपने मताधिकार का महत्व नहीं समझेंगे और जागरूकता का परिचय नहीं देंगे, इस प्रकार की राजनीति फलती-फूलती रहेगी। राजनेताओं का जनता के प्रति बढ़ता विश्वासघात लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है।
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
जनता भी जिम्मेदार
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
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उलटफेर का फेर
शिवरानी पुहाल, पानीपत
आहत लोकतंत्र
दल-बदल के जरिये सत्ता में बने रहने के खेल ने लोकतंत्र को मजाक बना दिया है। राजनीतिक शुचिता या मूल्यों की राजनीति में अब किसी का कोई विश्वास नहीं रहा। आया राम-गया राम की राजनीति का ज्वलंत उदाहरण हरियाणा में भी पेश हो चुका है। बात 1980 की है। उस साल जनता पार्टी लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हार गयी थी और इंदिरा गांधी पुनः प्रधानमंत्री बन गई थीं। हरियाणा में मुख्यमंत्री भजनलाल अपने 40 विधायकों समेत जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में जा मिले थे। लोक और लोकतंत्र दोनों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई। दल-बदल या निष्ठा बदल के इस खेल में खिलाड़ियों की पौ-बारह बेशक हो जाए, लोक और लोकतंत्र की रूह तो छटपटाती रह जाती है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
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दल-बदल की राजनीति
सतपाल, कुरुक्षेत्र
निष्ठा निभाएं
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
सख्त कानून बने
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
शुभ संकेत नहीं
ललित महालकरी, इंदौर, म.प्र.
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