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2009 में विस चुनाव लड़ राजनीति में आए थे राकेश दौलताबाद

11:48 AM May 26, 2024 IST
गुरुग्राम में शनिवार को बादशाहपुर के निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद की पार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित करते पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता व अधिकारी। -हप्र
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गुरुग्राम, 25 मई (हप्र)
गुरुग्राम जिले के बादशाहपुर विधानसभा हलके से निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद का शनिवार सुबह हार्ट अटैक से निधन हो गया। परिवर्तन संघ बनाकर समाजसेवा और फिर राजनीति में आए दौलताबाद 39 साल की उम्र में विधायक बन गए थे। राकेश दौलताबाद ने सबसे पहले 2009 का बादशाहपुर से विधानसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा था। इस चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री राव धर्मपाल थे।
राकेश दौलताबाद राव धर्मपाल से 11385 वोटों से हार गए थे। हालांकि वे दूसरे नंबर पर रहे थे। 2014 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव में राकेश दौलताबाद ने इनेलो की टिकट पर बादशाहपुर से चुनाव लड़ा। उनके सामने भाजपा की टिकट पर कद्दावर नेता एवं पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में कांटे की टक्कर थी। राव नरबीर सिंह को 86672 वोट मिले थे, जबकि 68540 वोट लेकर राकेश दौलताबाद दूसरे नंबर पर रहे थे।
भले ही आंकड़ों से राकेश दौलताबाद की इस चुनाव में हार हुई हो, लेकिन राजनीति में उनके पांव जम चुके थे। जनता के दिलों को काफी हद तक जीतने में वे कामयाब रहे थे। हार के बाद वे फिर से सक्रिय हुए। बादशाहपुर की जनता के बीच उनकी सक्रियता कम नहीं हुई। सेवा कार्यों को उन्होंने लगातार जारी रखा। उन्होंने दो प्रमुख कार्यों को सुचारू रूप से चलाए रखा। पहला तो कालेज में पढ़ने वाली बेटियों के लिए नि:शुल्क बस सेवा और दूसरा मरीजों के लिए नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा। ऐसा करके वे युवाओं के बीच भी पसंद किए जाने लगे।

2019 में लड़ा बतौर निर्दलीय चुनाव

2019 का जब चुनाव आया तो राकेश दौलताबाद ने किसी भी राजनीतिक दल से कोई संपर्क नहीं किया। इनेलो से वे पहले ही अलग हो चुके थे। ऐसे में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में ताल ठोंकी। इस चुनाव में राकेश दौलताबाद 1 लाख 6 हजार 827 वोट (47.6 प्रतिशत) वोट लेकर विधायक बन गए। चुनाव जीतने के बाद राकेश ने भाजपा को समर्थन दिया। मनोहर सरकार ने वर्ष 2020 में हरियाणा कृषि उद्योग निगम का चेयरमैन बनाया। एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकार ने उन्हें दोबारा नियुक्ति नहीं दी। उसके बाद यह पद जेजेपी के खाते में चला गया।

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